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बनगार
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AJHALISADSNIVETERMISARMENDMITRAAJRAditiat1651STASSA
कोई सीमा नहीं ऐसे शर्म आत्मिक सुखरूपी अमृतको देनेवाला, अथवा बहुत कालतक जिसका अनुभव किया जा सके ऐसे सांसारिक सुखरूपी अमृतका देनेवाला है । संसारके समस्त क्लेशों-संतापोंको दूर करनेमें यह तत्पर है। और इसके निमित्तसे ही उत्कृष्ट देवपद अथवा मनुष्योंमें चक्रवर्ती या तीर्थकर आदि पद अथवा और अनेक प्रकारके अभ्युदय फल प्राप्त होते हैं। किंतु ये सब इसके गौण फल हैं । अथवा जिस पुण्यके उदयसे ये अभ्युदय प्राप्त होते हैं उस पुण्यकी प्राप्ति भी इस धर्मका ही एक गौण फल है।
यह सब होते हुए भी समस्त अभ्युदयोंमें उत्कृष्ट यह मानव जीवन भी निःसार ही है, इसी बातपर बाईस पद्योंमें विचार करते हैं। जिसमें सबसे पहले यहांपर शरीरके ग्रहण करनेमें जो दुःख होते हैं उनको बताते हैं:
प्राङ्मृत्युक्लशितात्मा द्रुतगतिरुदरावस्करेऽह्नाय नार्याः, संचार्याहार्य शुक्रार्तवमशुचितरं तन्निगीर्णान्नपानम् । गृद्धयाऽश्नन् क्षुत्तृषार्तः प्रतिभयभवनाद्वित्रसन्पिण्डितो ना,
दोषाद्यात्माऽतिशात चिरमिह विधिना ग्राह्यतेऽङ्ग वराकः ॥६४॥ पूर्व भवमें मृत्युने जब इस जीवको अत्यंत क्लेशित-नाना प्रकारके दुःखोंसे पीडित किया तब यह वहांसे शीघ्र निकलकर भागा। किंतु प्राक्तन कर्मने इसको फिर भी शीघ्र ही-एक दो या तीन ही समयमें स्त्रीके उदररूपी संडासमें प्रविष्ट कर दिया और वहांपर इसको अत्यंत अशुचि पिताके शुक्र और माताके रजके समूहको ग्रहण कराया । अत्यंत इसलिये कि मलमूत्रादिकमें जब भिन्न भिन्न एक एक चीज भी अशुचि है तब सबका समूह तो अवश्य ही अत्यंत अशुचि होगा । किंतु जब यह जीव उस जगह भी क्षुधा और तृषाके कारण अत्यंत पीडित हुआ तब इसने गृद्धि-मोजाकी तीन लालसासे उस स्त्रीके-माताके ही खाये हुए अन्नपानको वहांपर ग्रहण किया। जिस समय माता निम्नोन्नतादि स्थानोंमें गमन करती उस समय उससे उत्पन्न हुए क्षोभके कारण विविध प्रकारसे डरकर गर्भ में अपने प्रदेशोंको संकुचित करके रहने लगा। इस प्रकार नाना दुःखोंसे परतंत्र रहने के
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