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अणह - अणायरण
अह न [ अनभस् ] भूमि, पृथिवी (से ६,
|
३) । पण
[] नष्ट, विद्यमान (दे १,
४८) । अबश्य वि [ दे] तिरस्कृत, भारित ( पर)।
।
अणा [अधुना ] इस समय ( प्राह ८० ) हारपुं [दे] खल्ल, खला, जिसका मध्यनीचा हो वह जमीन (दे १, ३८ ) । अणहिअअवि [अहृदय] हृदय-रहित निष्ठुर, निर्दव (प्राप गा ४९ ) ।
for a [ अनधिगत ] १ नहीं जाना हुआ। २ पुं. वह साधु, जिसको शास्त्रों का ज्ञान न हो, अगीतार्थं (वव १) । अहिण देखो अणभिण्ण ( प्राप) । अगद्दियास [अनण्यास] मसहिष्णु, सहन नहीं करनेवाला (उव) । अहिल न [ अगहिल्ल] गुजरात देश की अणहिल प्राचीन राजधानी, जो श्राजकल 'पाटन' नाम से प्रसिद्ध है ( ती २६० कुमा) । 'वाड न [पाटक] देखो अणहिल (गु १० १०८८८) |
अणहीण व [अनधीन] स्वतन्त्र अनायत्त ( सँग १९९) ।
अहुल्लिय वि [दे] जिसका फल प्राप्त न हुआ हो वह (सम्मत्त १४३) । अणाइ वि [अनादि] प्रादि-रहित नित्य (सम १२५) । हिण, निण वि [निधन ] प्राद्यन्त-वर्जित शाश्वत ( उब सम्म ६५;
४) "मंत, "यंत वि [ मन्] धनादि काल से प्रवृत्त ( पउम ११५, ३२; भवि ) । अणाइल व [अनादेय] अनुपादेय ग्रहण करने के प्रयोग्य । २ नाम-कर्म का एक भेद, जिसके उदय से जीव का वचन, युक्त होने पर भी ग्राह्य नहीं समझा जाता है (कम्म १,२७) । अणाइय [अनादिक] चावि-रहित, निव्य (सम १२५ ) । अगाइयपि [अज्ञातिक] स्वजन हित (भग १, २)। अाइ [अजातीत ] पाये, पाठ (भग १.१) ।
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पाइअसदमद्दण्णवो
[ ऋणातीत ] संसार, दुनिया
अगाइय (भग १, १) ।
अणाइय वि [ अनाहत ] जिसका आदर न किया गया हो वह (उप ८३३ टी) । अणाइल वि] [अनाविल] १ कति निर्मल (२१) ।
अणाईअ देखो जनाइय (११०३१ टी. पि
७०) 1
अगा अणाय (१) । गाउल वि (सूप्र [अनाकुल] व्याकुल, धीर (सूम १, २, २० गाया १, ८) ।
[ अनायुक] १ जिग-देव (सूम पुं १, ६) २ बुकात्मा सिद्ध (ठा
।
अणात वि [ अनायुक्त ] उपयोग-शून्य, बेरूपाल, असावधान ( प ) ।
अनारज्य देखो अगाइज (सम १५१) । अणाय [अनागत ] १ भविष्य काल, 'अरमागयमपस्संता, पप्पन्नगवेसगा । ते पच्छा परितति, खीणे श्राउम्मि जोब्बर' । (१,३,४) २. भविष्य में होनेवाला ( सू १,२ ) । द्धा स्त्री [[द्धा ] भविष्य काल ( नव ४२) ।
Profa [ अनर्गलत ] नहीं रोका हुआ (उवा) ।
अणागलिय वि [अनाकलित ] १ नहीं जाना हुआ, अलक्षित (गाया १, ६) । २ अपरिमित, 'अरणगलियतिव्त्रचंडरोस सप्परूवं विउब्वाइ'
(उपा
अणगार व [अनाकार ] १ साकाररहित आकृति - शून्य (ठा १०)। २ विशेषता रहित ( कम्म ४,१२ ) । ३ न. दर्शन, सामान्य ज्ञान (सम ६५) । अणाजीव वि [ अनाजीव] १ आजीविकारहित । २ श्राजीविका की इच्छा नहीं रखनेवाला । ३ निःस्पृह, निरीह (दस ३ ) । अणाजीवि वि [अनाजीविन] ऊपर देखो, 'गिलाई जीवी' (१) । अगा [] नार, अपति (दे १, १०) । [ अन ] १ जिसका आदर न किया गया हो वह, तिरस्कृत (श्रव ३) । २ पुं. जम्बूद्वीप का अधिष्ठायक एक देव (ठा २,३) ।
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श्री. जम्बूद्वीप के देव को राज पानी (३) ।
अणाणुगामिय वि [ अनानुगामिक] १ पीछे नहीं जानेवाला (ठा २,१२ न.-ज्ञान का एक भेद (दि) ।
अणादि देखो अगाइ (६०३) । अगादिय) देखो अणाश्य (११० अणादीय ठा ३, १ ) । अणादेज देखो अगाइ (पह १, २) । अगाभिगह न [ अनाभिग्रह] का मिथ्यात्व एक भेद (पंच ४, २) । अगाभोग [अनाभोग] १ अनुप बेपाली सावधानी (मान ४) २ न. मिव्याव विशेष (कम्म ४, ४१) । अणामिय [अनामिक] राम २ पुं. असाध्य रोग (तंदु) । ३ स्त्री, कनिष्ठांगुली के ऊपर की अंगुली ।
अणाव [अज्ञात] नहीं जाना था, परिचित ( प २४, १७) ।
अगाय [अनाक] माथैलोक, मनुष्य-लोक पुं से १, १) ।
अाय पुं [अनात्मन् ] श्रात्म-भिन्न श्रात्मा से परे (सम १) ।
अणायगवि [अनायक ] नायक-रहित (पक्ष्म ५६, ७०) ।
गायगव [अज्ञात क] स्वजन-रहित, श्रकेला (नि ९) ।
अणायन व [अज्ञायक] धान, निर्वाध ( नि ११) ।
अणायतन [ अनायतन ] १ वेश्या श्रादि अणायण f नीचे लोगों का घर ( दस ५, १ ) । २ जहाँ सज्जन पुरुषों का संसर्ग न होता हो वह स्थान ( परह २, ४ ) । ३ पतित साधुयों का स्थान (श्राव ३ ) । ४ पशु, नपुंसक वगैरह के संसगंवाला स्थान (ग्रोध ७६३) । अणायत [अनावन्त ] पराधीन (पउम २१, २६) । अणावर (पान) । अणायरण न [ अनावरण] अनाचार, खराब
[अनादर] बहुमान, अपमान
श्राचरण ।
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