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पाइअसहमहण्णवो
कित्तय-किरण कित्तय वि [कीर्तक] कीर्तन-कर्ता (पव | किब्बिस न [किल्बिष] १ पाप, पातक २१६ टी)।
(पएह १, २)। २ मांस; 'निग्गयं च से | वस्त्र (दे २, ३३)। कित्तवोरिअ देखो कत्तवीरिअ (ठा ८)।
बीयपासेणं किब्बिसं' (स २६३)। ३ पुं. किमु प्र[किमु] इन अर्थों का सूचक अव्ययकित्ता देखो किच्चा = कृत्या (प्राकृ ८)।
चाण्डाल-स्थानीय देव-जाति (भग १२,५)। १ प्रश्न । २ वितर्क। ३ निन्दा । ४ निषेध
४ वि. मलिन । ५ अधम, नीच (उत्त ३)। (हे २, २१७, पिंग)। कित्ति स्त्री [कीर्ति] १ यश, कोत्ति, सुख्याति
६ पापी, दुष्ट (धर्म ३)। ७ कर्बुर, चितकबरा | किमय प्र[किमुत] इन अर्थों का सूचक (ौपः प्रासू ४३, ७४ ८२) । २ एक विद्या
(तंदु)। देवी (पउम ७, १४१)। ३ केसरि-द्रह की
अव्यय--१ प्रश्न । २ विकल्प । ३ वितर्क । किब्बिसिय पुं [किल्बिषिक] १ चाण्डालअधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३-पत्र ७२)। ४
४ अतिशय (हे २, २१८);'अमरनररायमहियं स्थानीय देव-जाति (ठा ३, ४-पत्र १६२) । ति पूइयं तेहिं, किमय सेसेहिं (विसे १०६१)। देव-प्रतिमा-विशेष (गाया १,१ टी-पत्र
२ केवल वेषधारी साधु (भग)। ३ वि. किम्मिय न [दे. किम्मित] जड़ता, जाज्य ४३)। ५ श्लाघा, प्रशंसा (पंच ३)। ६
अधम, नीच (सूअ १, १, ३)। ४ पाप- (राज)। नीलवन्त पर्वत का एक शिखर (जं ४)।
फल को भोगनेवाला दरिद्र, पंगु वगैरह किम्मीर वि [ किर्मीर] १ कर्बुर, कबरा ७ सौधर्म देवलोक की एक देवी (निर)। ८
(गाया १,१)। ५ भाएड-चेष्टा करनेवाला (पान)। २ गुं. राक्षस-विशेष, जिसको पुं. इस नाम का एक जैन मुनि, जिसके पास (ोप)।
भीमसेन ने मारा था (वेणी ११७)। ३ वंशपाँचवें बलदेव ने दीक्षा ली थी (पउम २०,
किब्बिसिया स्त्री कैल्बिषिकी] १ भावना- | विशेष: 'जाया किम्मीरवंसे' (रंभा)। २०५) कर वि [कर] १ यशस्कर,
विशेष, धर्म-गुरु वगैरह की निन्दा करने की | किय देखो कीय (पिंड ३०६)। ख्याति-कारक (पाया १, १) । २ पृ.
आदत (धर्म ३)। २ केवल वेष-धारी साधु कियंत वि [कियत् ] कितना ( सम्मत्त भगवान् आदिनाथ के एक पुत्र का नाम की वृत्ति (भग)।
२२८)। (राज)। चंद पुं [चन्द्र] नृप-विशेष
किम (अप) [कथम् ] क्यों, कैसे? (हे कियस्थ देखो कयस्थ (भवि)। (धम्म)। धम्म पुं[धर्म] इस नाम का
४,४०१)।
कियब देखो कइअव (उप ७२८ टी)। एक राजा (दस)। धर पुं[धर] १ नृपविशेष (तंदु)। २ एक जैन मुनि, दूसरे किमण देखो किवण (प्राचा)।
| किया देखो किरिया: 'हयं नाणं कियाहीणं बलदेव के गुरु (पउम २०, २०५)। पुरिस किमस्स पुं[किमश्व] नृप-विशेष, जिसने
(हे २, १०४); 'मग्गरणसारी सद्धो पन्नपुं[पुरुष] कोत्ति-प्रधान पुरुष, वासुदेव इन्द्र को संग्राम में हराया था और शाप
वरिणज्जो कियावरो चेव' (उप १६६; विसे वगैरह (ना)। म वि [मत् ] कोति- लगने से जो मरकर अजगर हुआथा (निचू १)।
३५६३ टी; कप्यू)। युक्त । मई स्त्री [मती] १ एक जैन किमी पुं [कृमि] १ क्षुद्र जीव, कीट-विशेष
कियाडिया स्त्री [दे] कानबूट्टी, कान का साध्वी, (माक)। २ ब्रह्मदत्त चकवर्ती की (पएह १, ३) । २ पेट में, फुनसी में और
ऊपरी भाग (वव १)। एक स्त्री (उत्त १३) । य वि [द] कोत्ति- बवासीर में उत्पन्न होनेवला जन्तु-विशेष
कियाणं देखो कर = कृ। कर, यशस्कर (प्रौप)। (जी १५)। ३ द्वीन्द्रिय कीट-विशेष (पएह १,
कियाणग न [क्रयाणक] किराना, नमक, कित्ति स्त्री [कृत्ति] चर्म, चमड़ा; 'कुत्तो १-पत्र २३)। य न [°ज] कृमि-तन्तु
मसाला आदि बेचने योग्य चीजें (सुर १,६०)। अम्हाण वग्धकित्तीय' (काप्र ८६३; गा ६४०
से उत्पन्न वस्त्र; 'कोसेज्जपटुमाई जं, किमियं किर पुं[दे] सूकर, सूअर (दे २, ३० षड्)। वज्जा ४४)।
तु पवुच्चई' (पंचभा)। राग, राय पुं किर अ[किल] इन अर्थों का सूचक कित्तिम वि [कृत्रिम ] बनावटी, नकली [ राग] किरमिजी का रंग (कम्म १, २०; अव्यय--१ संभावना । २ निश्चय । ३ हेतु, (सुपा २४; ६१३)।
दे २, ३२; पण्ह २, ४)। 'रासि पं निश्चित कारण। ४ वार्ता-प्रसिद्ध अर्थ। कित्तिय वि [कीर्तित] १ उक्त, कथितः [ राशि] वनस्पति विशेष (पएण १- ५ अरुचि । ६ अलीक, असत्य । ७ संशय, 'कित्तियवंदियमहिया (पडि)। २ प्रशंसित, । पत्र ३६)।
संदेह (हे २, १८६; षड् गा १२६, प्रासू श्लाषित (ठा २, ४)। ३ निरूपित, प्रति- किमिघरवसण [दे] देखो किमिहरवसण १७ दस १)। ८ पाद पूर्ति में भी इसका पादित (तंदु)।
प्रयोग होता है (कम्म ४, ७६)। कित्तिय वि [कियत् ] कितना (गउड)।
किमिच्छय न [किमिच्छक] इच्छानुसार किर सक [क] १ फेंकना। २ पसारना,
दान (गाया १, ८-पत्र १५०)। किन्न वि [क्लिन्न भाद्र, गीला (हे ४, ३२६)।
फैलाना । ३ बिखेरना । वकृ. किरत (से ४, किमिण वि [कृमिमत् ] कृमि-युक्त; ५८ १४, ५७)। किन्ह देखो कण्ह (कप्प)।
| 'किमिणबहुदुरभिगंधेसु' (पएह २, ५)। किरण पुंन [किरण] किरण, रश्मि, प्रभा किपाड वि [दे] स्खलित, गिरा हुआ (षड्)। किमिराय वि[दे] लाक्षा से रक्त (दे २, ३२)। (सुपा ३५१; गउड प्रासू ८२)।
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