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पाइअसहमहण्णवो
समुद्दणवणीअ-समुल्लविअ समुद्दणवणीअ न [दे. समुद्रनवनीत] १ समुद्धाइअ वि [समुद्धावित] समुत्थित, समुप्पित्थ वि [दे] उत्त्रस्त, भय-भीत (सुर अमृत, सुधा । २ चन्द्रमा (दे ८, ५०)। उठा हुमा (स ५६६; ५६७)।
१३, ४४) । समुद्दव सक [समुद् + द्रावय ] १ समुद्धाय अक[समुद् + धान्] उठना । समुप्पेक्ख समुपेह । वकृ. समुप्पेखभयंकर उपद्रव करना । २ मार डालना । वकृ. समुद्धायंत (पएह १, ३–पत्र ४५) समुप्पेह माण, समुप्पेहमाण (राज; समुद्दवे (गच्छ २, ४)।
समुद्धिअ देखो समुद्धरिअ (गच्छ ३, २६) प्राचा १, ४, ४, ४)। संकृ. समुप्पेहं (दस समुद्दहर न [दे] पानीय-गृह, पानी-घर (दे |
७, ३)। देखो समुवेक्ख । समुधुर वि [समुधुर] दृढ़, मजबूत (उप ८, २१)। १४२ टी)।
समुप्फालय वि[समुत्पाटक] उठाकर लानेसमुद्दाम वि [समुद्दाम] अति उद्दाम, प्रखर; समुधुसिअ वि [समुधुषित] पुलकित,
वाला, 'पहए जयसिरिसमुप्फालए मंगलतूरे' "थुई समुद्दामसद्देण' (चेइय ६५०)। रोमाजितः 'घणागमे कयंबकुसुमं व समुग्धु- (स २२)।समुद्दिस सक [समुद् + दिश्] १ पाठ (?धु)सियं सरीरं' (कुप्र २१०; स १८%
समुप्फालिय वि[समुत्फालित] आस्फालित को स्थिर-परिचित करने के लिए उपदेश धर्मवि ४८)।
(भवि)। देना । २ व्याख्या करना । ३ प्रतिज्ञा करना। समदसिमटी १एक देव-विमान (देवेन्द्र समुप्फुद सक। समा + क्रम् । माक्रमण ४ प्राश्रय लेना । ५ अधिकार करना । कम. १४३) । २. देखो समुद्द (हे २, ८०)।
करना। वकृ. समुप्पंदंत (से ४, ४३) समुद्दिस्सइ (उवा), समुद्दिस्सिज्जंति (अणु |
समन्ना स्त्री सिमन्नति] अभ्युदय (साधं समुप्फोडण न समुत्स्फोटन] प्रास्फालन ३)। संकृ. समुदिस्स (पाचा १, ८,२,
(पउम ६, १८०)। १, २, २, १, ४, ५) । हेकृ. समुद्दिसित्तए समुन्नद्ध वि [ समुन्नद्ध] संनद्ध, सज; समुब्भड वि [समुद्भट] प्रचंड (प्रासू (ठा २, १-पत्र ५६)।
'जनमिया सयलनिवा
१०२) समुद्देस पुं [समुद्देश] १ पाठ को स्थिर- जिणस्स अचंतबलसमुन्नद्धा। समुब्भव अक [समुद् + भू] उत्पन्न होना । परिचित करने का उपदेश (प्ररण ३)। २ तेण विजएण रत्ना
समुन्भवंति (उपपं २५)।व्याख्या, सूत्र के अर्थ का अध्यापन (वव १)।
नमित्ति नामं विरिणम्मवियं' समुब्भव पु[समुद्भव] उत्पत्ति (उवः ३ ग्रंथ का एक विभाग, अध्ययन, प्रकरण,
(चेइय ६१३)। भवि)। परिच्छेद (पउम २, १२०)। ४ भोजन समुन्नय वि [समुन्नत अति ऊँचा (महा)। समुब्भिय बि समश्चित] ऊँचा किया हमा 'जत्थ समुद्देसकाले' (गच्छ २, ५६) समुपेहं सक [समुत्प्र + ईक्ष ] १ अच्छी (सुपा ८८; भवि)। समुद्देस वि [सामुद्देश] देखो समुद्देसिय तरह देखना, निरीक्षण करना । २ पर्यालोचन
समुन्भुय (अप) नीचे देखो (सण)। (पिंड २३०)।
करना, विचार करना। वकृ. समुपेहमाण समुद्देसण न [समुद्देशन सूत्रों के अर्थ का (सूत्र १, १३, २३)। संकृ. सपेहिया,
समुन्भूअ वि [समुद्भूत] उत्पन्न (स
४७६; सुर २, २३५; सुपा २६५) प्रध्यापन (रणंदि २०६)। समुपेहियाणं (दस ७, ५५; महा)।
समुयाण देखो समुदाण = समुदान (विपा समुदसिय वि [समुद्देशिक] १ समुद्देश- समुप्पज प्रक [सपुत् + पद्] उत्पन्न सम्बन्धी । २ विवाह आदि के उपलक्ष्य में होना । समुप्पजइ (भग; महा)। समुप्पजिज्जा
१, २-पत्र २५ प्रोघ १८४)। किये गये जोमन में बचे हुए वे खाद्य पदार्थ (कप्प) । भूका. समुप्पजित्था (भग)। समुयाण देखो समुदाण = समुदानय। वकृ. जिनको सब साधु-संन्यासियों में बाँट देने का समुप्पण्ण वि [समुत्पन्न] उत्पन्न (पि समुयाणित (सुख ३, १) संकल्प किया गया हो (पिंड २२६) समुप्पन्न । १०२, भग; वसु)।
समुयाणिअ देखो समुदाणिय (ोघ ५१२) समुप्पयण न [समुत्पतन] ऊँचा जाना, समुद्धर सक [समुद् + ह] १ मुक्त करना।
समुयाय सक समुदाय (राज)। ऊर्ध्व-गमन, उड्डयन (गउड)। २ जीर्ण मन्दिर प्रादि को ठीक करना । समुद्धरइ (प्रासू ५) । वकृ. समुद्धरंत (सुपा
समुप्पाअअ वि [समुत्पादक] उत्पत्ति-कर्ता समुल्लव सक [समुत् + लप्] बोका, (गा १८८)
कहना। समुल्लवइ (सण)। वकृ. समुल्ला४७०) । संकृ. समुद्धरेऊण (सिक्खा ६०)। समुप्पाड सक [ समुत् + पादय ] उत्पन्न
(सुर २, २६)। कवकृ. समुल्लविजंत (स हेकृ. समुद्धत्तुं (उत्त २५, ८)। करना । समुप्पाडेइ (उत्त २६, ७१)।
२, २१७) । समुद्धरण न [समुद्धरण] १ उद्धार । २ वि.
समुप्पाय पु[समुत्पाद] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव समुल्लवण न [समुल्लपन] कथन, उक्ति (से उद्धार करनेवाला (सण)।" (सूत्र १, १, ३, १०; प्राचा)।
१२, ७४) समुरिअ वि [समुद्धृत] उद्धार-प्राप्त | समुप्पिजल न [दे] अयश, अपकीत्ति । २ समुल्लविअ वि [समुल्लपित] उक्त, कथित (गा ५६३ सण)। । रज, धूलि (दे ८, ५०)।
(सुर २, १५१, ५, २३८ प्रासू ७) ।
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