________________
११६ पाइअसहमहण्णवो
सुत्थिय-सुद्धि सुत्थिय देखो सुदिअ (सुपा ६३२) सुदाम [सुदाम] अतीत उत्सपिणी-काल सुदुल्लह वि [सुदुर्लभ] अत्यन्त दुर्लभ (राज)।४ सत्थिर विस्थिर अतिशय स्थिर, अति- में उत्पन्न भारतवर्ष का दूसरा कुलकर पुरुष सुदूसह वि [सुदुःसह] अत्यन्त दुःख से निश्चल (प्राकृ १६%; सुपा ३४८ कुमा)- (सम १५०)।
सहन करने योग्य (सुर ६, १५८)। सुभेव वि [लुतोक] प्रत्यल्प (पउम ८,
सुदेव पुं[सुदेव] उत्तम देव (सुपा २५६) । १५२) सुदारुण पुंदे] चंडाल (दे ८, ३६)
सुद्द शूद] मनुष्य की अधम जाति, चतुर्थ सुदंती स्त्री सुदती] सुन्दर दातवालो (उप सदिट वि सदृष्ट सम्यग् विलोकित (गा वर्ण (विपा १, ५-पत्र ६१; पउम ३, ७६८ टो)२२५)।
११७; श्रु १३)। सुदंसग [सुदर्शन] १ भगवान् अरनाथ
सुदिप प्रकसु दीप ] अतिशय सुहय शुद्रका एक राजा का नाम (मोह के पिता का नाम (सम १५१)। २ तीसरे
चमकना । वकृ. सुदिप्त (सुपा ३५१) । १०५; १०६)।वासुदेव तथा बलदेव के धर्म-गुरु (सम १५३)।
सुदीह । वि सुर्द घ] अत्यन्त लम्बा (सुर सुद्दिणी (अप) स्त्री [शूद्रा] शूद्रजातीय श्री ३ भारतवर्ष में होनेवाला पाचवाँ बलदेव
सुदीहर ) २, १२५: , १६८)। कालीय, (पिंग)। (सम १५४): ४ धरणेन्द्र के हस्ति-सैन्य का ।
वि [कालिक] सुदीर्घ-काल-सम्बन्धी (सुर , अधिपति (ठा ५, १-पत्र ३०२)। ५ एक
र सुद्ध पुं[दे] गोपाल, ग्वाला (दे ८, ३३)।
१५, २२)। दास वि [दर्शिन् ] अन्तकृद् भुनि (अंत ८)। ६ मेरु पर्वत परिणाम का विचार कर कार्य करनेवाला
सुद्ध वि [शुद्ध] १ शुक्ल, उज्वल; 'वइसाह(सन १.६,६ सुज्ज ५) । ७ एक विख्यात (३२)
सुद्धपंचमिरत्तीए सोहणं लग्गं (सुर ४, श्रेष्ठी (पडिः वि १६)। ८ देव-विशेष (ठा
१०१: कुप्र ७०, पंचा ६, ३४)। २ पवित्र । सुदुक्कर वि [सुदुष्कर जो अत्यन्त दुःख से २, ३--पत्र ७६)। ६ विष्णु का चक्र
३निर्दोष । ४ केवल, किसी से अमिश्रित । ५ किया जा सके वह, प्रति मुश्किल (उप पू (सुपा ३६०)। १० भगवान् अरनाथ का
न. सेंधा नून-नमक। ६ मरिच, मिर्चा (हे १, १६०) पूर्वभवीय नाम । ११ भगवान पार्श्वनाथ का
२६०)। ७ लगातार १८ दिनों के उपवास सुदुक्खत्त वि सुदुःखात] अति दुःख से पूर्वजन्मोय नाम (सम १५१)। १२ पुंन.
(संबोध ५८)। ८ पुं. छन्द-विशेष (पिंग)। पीड़ित (सुर ७, ११)। एक देव-विमान (देवेन्द्र १३६)। १३ वि.
गंधारा स्त्री [गन्धारा] गन्धार-ग्राम की सुदुक्खिा वि [सुदुःखित] अत्यन्त दुःखित जिसका दर्शन सुन्दर हो वह (वि १६)।
एक मूर्च्छना (ठा ७--पत्र ३६३), दंत (सुण ३०४). १४ न. पश्चिम रुचक पवंत का एक शिखर सुदुग्ग वि [सुदुर्ग] जहाँ दुःख से गमन
पुं [दन] १ भारतवर्ष में होनेवाले चौथे (ठा ८-पत्र ४३६)। किया जा सके वह (पउम ३०, ४६)
जिनदेव (सम १५४) । २ एक अनुत्तर-गामी सुदंसणा स्त्री सुदर्शना] १ जम्बू नामक
जैन मुनि (अनु २)। ३ एक अन्तर्वीप। ४ एक वृक्ष, जिससे यह द्वीप जंबूद्वीप कहलाता सुदुच्चा नि [मुदुस्त्यज] मुश्किल से जिसका
उसमें रहनेवाली एक मनुष्य-जाति (इक)/ है (सम १३: परह २, ४-पत्र १३०)। २ त्याग हो सके क, सहावो वि सुदुच्चों
पक्ख पुं ["पक्ष] शुक्ल पक्ष (पउम ६, भगवान महावीर की ज्येष्ठ बहिन का नाम (श्रा १२)।
२७) प पुं [त्मन् ] पवित्र आत्मा सुदुत्तार विसुदुस्तार] कठिनता से जिसको । (पाचा २.१५, ३: कप्प)। ३ धरण आदि
(कप्प) पवेस वि [प्रवेश्य] पवित्र पार किया जा सके वह (औप; पि ३०७) इन्द्रों के कालवाल प्रादि लोकपालों की एक
और प्रवेश के लिए उचित (भग) पवेस एक अग्रमहिषी (ठा ४.१--पत्र २०४)। ४
सुदुद्धर वि सुदुर्धर] प्रति दुःख से जो वि [आत्मवेश्य] पवित्र तथा वेशोचित काल तथा महाकाल-नामक पिशाचेन्द्रों की धारण किया जा सके वह (श्रा ४६ प्रासू । (भग) बायt वात वाय-विशेष. अग्रमहिषियों के नाम (ठा ४, १-.-पत्र
मन्द पवन (जी ७)। विराड न [विट २०४)। ५ भगवान ऋषभदेव की दीक्षा
सुदुन्निवार वि सुदुर्निवार] अति कठिनाई उष्ण जल (कप्य), सज्जा स्त्री [पड्जा] शिविका (विचार १२६)। ६ चतुर्थ बलदेव
से जिसका निवारण किया जा सके वह षड्ज ग्राम की एक मूर्छना (ठा ७-पत्र की माता (सम १५२)।
(सुपा ६४) सुदक्खिन्न वि [सुदाक्षिण्य] दाक्षिण्यवाला
सुप्पिच्छ वि[सुदुदेश] अतिशय मुश्किल सुद्धत पुंसुद्वान्त] अन्तःपुर (उप ७६८
से देखने योग्य (सुर १२, १६६) (धम्म १५; सं ३१)
टोः कुप्र ५५; कुम्मा २६; कस) प्रति वा सपा सुभेअ वि सुदुर्भेद] प्रति दुःख से सुद्धवाल वि[३] शुद्ध-पूत, शुद्ध और पवित्र ५१७)।
जिसका भेदन हो सके वह (उप २५३ टी) (दे ८, ३८) सुदा सण देखो सुदसण ( हे २, १०५; सुदुम्मणिआ स्त्री [दे] रूपवती स्त्री (दे सुद्धि स्त्री [शुद्धि] १ शुद्धता, निर्दोषता, पउम २०, १७६; १६: पद १६४ इक) ५,४०)।
निर्मलता (सम्मत्त २३०; कुमा)। २ पता,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org