Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 1007
________________ सोहा-हंस पाइअसहमहण्णवो ६३७ सोहा श्री [शोभा] १ दीप्ति, चमक (से १, सोहि वि[शोभिन् ] शोभनेवाला (संबोध सोहिर वि [ शोभित ] शोभनेवाला (गा ४८; कुमाः सुपा ३१, रंभा)। २ छन्द- ४८ कप्पू, भवि)श्री. णी ( नाट- ५११)। विशेष (पिंग)। रत्ना १३) सोहिल्ल वि[शोभावत् ] शोभा-युक्त (गा सोहाव सक [शोधय ] सफा कराना। | सोहि पुत्री [दे] १ भूत काल। २ भविष्य ५४७ सुर ३, ११, ८, १०८ हे २, १५६; सोहावेह (स ५१६) । काल (दे ८,५८) चंड भविः सण)। सौअरिअ देखो सोअरिअ = सौदर्य (चंड)।सोहाविय वि [शोधित] साफ कराया हुआ सोहिअ न [दे] पिष्ट, आटा, चावल आदि सौंअरेअ न [सौन्दर्य] सुन्दरता (हे १, १). का चूर्ण ( षड्)। सौह देखो सउह =सौध (रुक्मि ५६; नाटसोहि स्त्री [शुद्धि, शोधि] १ निर्मलता | सोहिअ वि [शोभित] शोभा-युक्त (सुर ३, (णाया १, ५--पत्र १०५; संबोध १२)। ७२ महा: प्रोप; भग) स देखो स = स्व (गा २२६)। २ पालोचना, प्रायश्चित्त (ोष ७९१ | सोहिअ वि [शोधित] शुद्ध किया हुआ स्सास देखो सास = श्वास (गा ८५६) ७६७ प्राचा)। (पएह २, १; भग) स्सिरी देखो सिरी = श्री (गा ९७७)। सोहि वि [शोधिन् शुद्धि-कर्ता (प्रौप)। सोहिद देखो सोहद (नाट-शकु १०६)। | स्सेअ देंखो सेअ = स्वेद (अभि २१०) विशामिना " मालती १३६) । ॥इम सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि सयाराइसहसंकलणो सत्ततीस इमो तरंगो समत्तो। हंतव्व देखो हण। ह पुं [ह] १ कंठ-स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- । 'हंडण देखो भंडण (गा ६१२; पि ५८८)। हंदि प. इन अर्थों का सूचक अव्यय-१ विशेष (प्रापः प्रामा)। २ प. इन अर्थों का | हंत देखो हंता (धर्मसं २०२; राय २६; सणः विषाद, खेद । २ विकल्प । ३ पश्चाताप । सूचक अव्यय-संबोधन; 'से-भिक्खू गिलाइ, कप्पू: पि २७५) ।। ४ निश्चय। ५ सत्य। ६ 'लो', 'ग्रहण से हंद ह णं तस्साहरह (माचा २, १, ११, करों (पामा हे २, १८० षड्; कुमा)। १, २, पि २७५)। ३ नियोग। ४ क्षेप, हंता । ७ आमन्त्रण, संबोधन (पिड २१०; धर्मसं निन्दा । ५ निग्रह । ६ प्रसिद्धि । ७ पादपूर्ति | हंता अ[हन्त] इन अर्थों का सूचक अव्यय- | ४४)। ८ उपदर्शन (पंचा ३, १२, दसनि (हे २, २१७) १मभ्युपगम, स्वीकार (उवा; औपः भगः ३, ३७) । ह देखो हा = म. (हे १, ६७) । तंदु १४; अणु १६०णाया १, १-पत्र हंभो देखो हंहो (सुर ११, २३४, प्राचा: ७४)। २ कोमल मामन्त्रण (भग; अणु सूम २, २, ८१)। हइ स्त्री [हति] हनन, वध,मारण (श्रा २७)। १६०; तंदु १४० प्रौप)। ३ वाक्य का | हंस देखो हस्स- ह्रस्व (प्राप्र)। हं म.[हम् ] इन अर्थों का सूचक अव्यय- प्रारम्भ। ४ प्रत्यवधारण। ५ संप्रेषण। हंस व् [हंस] १ पक्षि-विशेष (णाया १, १ क्रोष (उवा)। २ असम्मति (स्वप्न २१) ६ खेद। ७ निर्देश (राज)। ८ हर्ष। ६ १-पत्र ५३; परह १, १--पत्र ८ कुमाः हंजय पुंदे] शरीर-स्पर्श-पूर्वक किया जाता - अनुकम्पा (राय)। १० सत्य (उवा)। प्रासू १३; १६९)। २ रजक, धोबो; 'वत्यशपथ-सौगंध (द ८, ६१)। हंतु वि [हन्तु] मारनेवाला (प्राचा; भगः धोवा हवंति हंसा वा' (सूप १, ४, २, हंजे प्र. इन अर्थों का सूचक अव्यय-१ दासी | पउम ५१,१६७ ७३, १६७ विसे २९१७) १७)। ३ सैन्यासि-विशेष (से १, २६ का आह्वान (हे ४, २८१; कुमाः पिंग)। २ | हंतूण देखो हण प्रौप)। ४ सूर्य, रवि (सिरि ५४७)। ५ सखी का आमन्त्रण (स ६२२, सम्मत्त | हंदि प्र. 'ग्रहण करों इस अर्थ का सूचक | मणि-विशेष, हंसगर्भ नामक रत्न की एक१७२). प्रव्यय (हे २, १८१; कुमाः प्राचा २, १, जाति (पएण १-पत्र २६)। ६ छन्द का 'हंड देखो खंड (हम्मीर १७)। । ११,१२:पि २७५) एक भेद (पिंग)। ७ निर्लोभी राजा। ८ ११८ Jain Education International For Personal & Private Use Only wwwinelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1005 1006 1007 1008 1009 1010