Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 1005
________________ सोमिल-सोवरिअ पाइअसहमहण्णवो ६३५ सोमिल [सोमिल] एक ब्राह्मण (अंत (विपा १, ८)वडिंसग न [वतंसक] | सोवण न [स्वपन] शयन, सोना (उप पू एक उद्यान (विपा १, ८-पत्र ८२)। २३७)। सोनेत्ति देखो सोमित्ति = सौमित्रि (से सोलम त्रि. ब. [षोडशन] १ संख्या-विशेष, सोवण न [दे] १ वास-गृह, शय्या-गृह, रति मन्दिर (दे८, ५८स ५०३: पाम)। २ १२.८८) सोलह, १६ । २ सोलह संख्यावाला (भग स्वप्न । ३ पुं. मल्ल (दे ८,५८)।' सोमेसर ( [सोमेश्वर] सौराष्ट्र का सोमनाथ ३५, १-पत्र ९६४: ६६७; उवा; सुर १ ३५; प्रासू ७७; पि ४४३) । ३ वि. सोवण (अप) देखो सोवण्ण (भवि) । महादेव (सम्मत्त ७५)। सोलहवाँ, १६ वा (राज)। म वि [°श] सोम्म वि [सौम्य , रमणीय, सुन्दर (से सोवणि वि शौचनिक] १ श्वान-पालक, १ सोलहवाँ, १६ वाँ (णाया १, १६---पत्र १, २७) । २ ठंढा. शीतल (से ४, ८)। कुत्तों को पालनेवाला। २ कुत्तों से शिकार ३ शीतल प्रकृतिवाला, शान्त स्वभाववाला १९६: सुर १६, २५१ पत्र ४६)। २ लगा करनेवाला (सूम २, २, ४२) तार सात दिनों के उपवास (गाया १,१---- (से ५, १६, विसे १७३१)। ४ प्रिय-दर्शन, सोवणी श्री [स्वापना] विद्या-विशेष (पि पत्र ७२)। य न [क] सोलह का समूह जिसका दर्शन प्रिय लगे वह । ५ जिसका (उत्त ३१, १३) । विह वि [विध] सोवण्ण वि[सौवर्ग] स्वर्ण-निर्मित, सोने अधिष्ठाता सोम-देवता हो वह । ६ भास्वर, सोलह प्रकार का (पि ४५१)। का (महा सम्मत्त १७३)। कान्तिवाला । ७. बुध ग्रह । ८ शुभ ग्रह। ६ वृष प्रादि सम राशि । १० उदुम्बर वृक्ष । सोलसिआ स्त्री [षोडशिका] रस-मान-विशेष, सोवण्णमक्खिआ स्त्री [दे] मधुमक्षिका की ११ द्वीप-विशेष । १२ सोम-रस पीनेवाला सोलह पलों की एक नाप (अणु १५२)। एक जाति, एक तरह की शहद को मक्खी ब्राह्मण (प्राप्र)। देखो सोम= सौम्य । सोलह देखो सोलस (नाट; भवि)। सोवणि वि [सौवर्णिक] सोने का, सोजि (अप) प्र[स एव ] वही (प्राकृ सोलहावत्तय पुं[दे] शंख (दे ८, ४६) । सोवणिग सुवर्ण-घटित (प्रति ७ स साल सकपच् पकाना। सल्लिइ (हे ४, ४५८)-पव्यय पुं [पर्वत] मेरु पर्वत सोरट सौराष्ट१ एक भारतीय देश, ६० धात्वा १५६)। वकृ. सोल्लंत (विपा (पउम २.१८) सोरठ, काठियावाड़ (इक ती १५)। २ वि. १, ३----पत्र ४३)। सोवण्णेअ पुंस्त्री [सौपर्णेय गरुडपक्षी। स्त्री. सोरठ देश का निवासी (श्रावक ६३)। ३ सोल्ल सक [क्षिप् ] फेंकना। सोल्लइ (हे ४, आ, °ई (षड्) । न. छन्द-विशेष (पिंग)। १४३; षड्)। कर्म. सोल्लिज्जइ (कुमा) । सोवत्थ नदे] १ उपकार । २ वि. उपभोग्य, सोरट्ठिया स्त्री [सौराष्टिका] १ एक प्रकार सोल्ल सक [ ईर , सम् + ईर ] प्रेरणा उपभोगयोग्य (दे ८, ४५)। को मिट्टी, फिटकिरो (प्राचा २, १,६,३; करना । सोल्लइ (धात्वा १५६; प्राकृ ६६) सोवस्थि । वि [सौवस्तिक] १ माङ्गलिक दस ५, ६, ३४) । २ एक जैन मुनि-शाखामोल न दे माँस (दे८.४४)। देखो सोवत्थिअ) वचन बोलनवाला, मागष मादि (कप्प)।सुल्ल = शूल्य । स्वस्ति-वाचक (ठा ४, २-पत्र २१३; सोरब्भ, न [सौरभ] सुगन्ध, खुशबू (विक्र सोल्ल वि [पक] पकाया हुआ (उवाः विपा औप) । २ पुं. ज्योतिष्क महाग्रह-विशेष सोरंभ ११३, कुप्र २२३ भकि, उप १,२-पत्र २७; १, ८- पत्र ८५ ८६ (ठा २. ३–पत्र ७८)। ३ त्रीन्द्रिय जन्तु सोरभ । ६८६ टी)। औप)। की एक जाति (पएण १-पत्र ४५)। सोरसेणी श्री [शौरसेनी] शूरसेन देश की सोल्लिय वि [पक्क] १ पकाया हुआ, 'इंगाल- सोवस्थिअ ' [स्वस्तिक] १ साथिया, एक प्राचीन भाषा, प्राकृत भाषा का एक भेद । सोल्लिय' (प्रौप)। २ न. पुष्प-विशेष (प्रौप)। मङ्गलचिह्न (प्रौप) । २ न. विद्युत्प्रभ नामक (विक्र ६७) सोच देखो सुव = स्वप् । सोवइ, सोवंति (हे | वक्षस्कार पर्वत का एक शिखर (इक)। ३ पूर्व सोरह देखो सोरभ (गउड)।' १, ६४; उव; भविः पि १५२)। रुचक-पर्वत का एक शिखर (राज)। ४ एक सोरिअ न [शौथ] शूरता, पराक्रम (प्राप्रः सोवकम । विसोपक्रम निमित्त-कारण देव-विमान (देवेन्द्र १४१) । देखो सत्थिअ, प्राकृ १६) सोवकम । से जो नष्ट या कम हो सके वह सोथिअ = स्वस्तिक ।सोरिअन [शोरिक] १ कुशावर्त देश की कम. प्राय, आपदा आदि (सूपा ४५२, सोवन्न देखो सोवण्ण (अंत १७ श्रा २८ प्राचीन राजधानी (इक)। २ एक यक्ष (विपा ४५६)। सिरि ८११, भवि):१, ५-पत्र ८२) दत्त पुं[दत्त] १ सोवचिय वि [सोपचित] उपचय-युक्त, सोचन्निअ देखो सोवण्णिअ (णाया १,१एक मच्छीमार का पुत्र (विपा १, १-पत्र स्फीत, पुष्ट (कप्प)। पत्र ५२)।४ विपा १, ८) २ एक राजा (विपा १, सोवञ्चल पुंन [सौवर्चल] एक तरह का नोन, सोवरिअ देखो सोअरिअ = शौकरिक (सूप ५-पत्र ८२)नपुर न [पुर] एक नगर काला नमक (दस ३, ८ चंड)। । २, २, २८)। सोवस्थि । वचन बोलनेवाला पत्र २१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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