Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 1004
________________ पाइअसद्दमण्णवो सोभिय-सोमित्ति सोभिय देखो सोहिअ = शोभित (पाया १,1 १ क्षत्रियों के सोमवंश का मादि पुरुष, बाहु- ५ एक देव-विमान, छठवाँ बेयक-विमान १ टी-पत्र ३)। बलि का एक पुत्र (पउम ५, १०% कुप्र (देवेन्द्र १३७; १४३: पब १६४) । ६ सौमसोम पुं[सोम १ चन्द्र, चाँद, एक ज्यो- | २१२)। २ तेरहवीं शताब्दी का एक जैन नस-पर्वत का एक शिखर (ठा २, ३-पत्र प्राचार्य और ग्रंथकार (कुप्र ११५)। ३ ____८०)। ७ न. मेरु-पर्वत का एक वन (ठा २, तिष्क महाग्रह (ठा २, ३-पत्र ७७ विसे चमरेन्द्र के सोम-लोकपाल का उत्पात-पर्वत १८८३; गउड)। २ भगवान् पार्श्वनाथ का ३-पत्र ८०) पाँचवाँ गणधर (सम १३; ठा ५-पत्र (ठा १०--पत्र ४८२) । भूइ पुं [भूति] सोमणा न [सौमनस्व] १ सुन्दर मन, ४२६)। ३ एक प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश (पउम एक ब्राह्मण का नाम (गाया १, १६--पत्र संतुए मन (रायः कप्प)।५, २)। ४ चतुथं बलदेव और वासुदेव का १९६) भूइय न [भूतिक] एक कुल सोम गसा स्त्री [सौमनसा] १ जम्बू-वृक्ष पिता (ठा | विशेष, जिससे यह द्वीप जम्बूद्वीप कहलाता का नाम (कप्प)। य न [क] एक गोत्र, -पत्र ४४७; पउम २०, १०२)। ५ एक विद्याधर नर-पति, जो जो कौत्स गोत्र भी शाखा है (ठा ७-पत्र है (इक)। २ एक राजधानी (इक)। ३ | ३६०) व वा, वि [प, पा] सोमज्योति:पुर का स्वामी था (पउम ७, ४३)। सौमनस वन की एक वापी (जं ४)। ४ ६ एक सेठ का नाम (सुपा ५६७)। ७ एक रस पीनेवाला (पड़)। सिरी स्त्री | श्री] पक्ष की पांचवीं रात्रि (सुज्ज १,२४) ब्राह्मण का नाम (णाया १,१६-पत्र एक ब्राह्मणी (अंत) सुंदर पुं[सुन्दर] सोमणसिय वि [सौमनस्यित] १ संतुष्ट एक प्रसिद्ध जैनाचार्य तथा ग्रन्थकार (संति | मनवाला । २ प्रशस्त मनवाला (कप्प)।। १६६)। ८ चमरेन्द्र, बलीन्द्र, सौधर्मेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के एक-एक लोकपाल के नाम (ठा १४: कुलक ४४)। भूरि पुं [सरि एक सोमणस्स देखो सोमणस = सौमनस्य (कप्प; जैनाचार्य, पाराधना-प्रकरण का कर्ता एक औप)। ४, १-पत्र २०४; भग ३, ७--पत्र जैनाचार्य (आप ७०) सोमणस्सिय देखो सोमणसिय (कप्पः प्रौपः १६४)। ६ लता-विशेष, सोमलता। १. पाया १,१-पत्र १३)। उसका रस । ११ अमृत (षड्) । १२ आर्य- सोम वि [सौम्य १ अरौद्र, अनुग्र (ठा; सोमल्ल देखो सोअमल्ल (प्राकृ २०० ३०) सुहस्ति सूरि का एक शिष्य-जैन मुनि भग १२, ६-पत्र ५७८)। २ नोरोग, (कप्प)। १३ पुंन. देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र रोग-रहित (भग १२, ६)। ३ सोमहिंद न [दे] उदर, पेट (दे ८, ४५) ।। प्रशस्त, सोमहिड्ड [दे] पंक, कादा (दे ८, ४३) १३३, १४३, १४५)। १४ वि. कीतिमान्, श्लाघ्य (कण)। ४ प्रिय-दर्शन, जिसका सोमा स्त्री सोमा] १ शक्र के सोम आदि यशस्वी (कप्प) + काइय कायिक] दर्शन प्रिय मालूम हो वह । ५ मनोहर, चारों लोकपालों की एक-एक पटरानी का सोम लोकपाल का प्राज्ञाकारी देव (भग ३, सुन्दर । ६ शान्त पातिवाला (प्रोघभा २२; नाम (ठा ४.१-पत्र २०४)। २ सातवें ७-पत्र १६५), 'ग्गहण न ["ग्रहण] उवः सुपा १८०; ६२२)। ७ शोभा-युक्तः । जिनदेव को प्रथम शिष्या (सम १५२, पव चन्द्र-ग्रहण (हे ४, ३६६).। चंद पुं दीप्तिमान (जं २)। देखो सोम्म । ६)। ३ सोम लोकपाल की राजधानी (भग चिन्द्र ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न सातवें सोमइअ वि [दे] सोने की आदतवाला (दे। ३,७–पत्र १६५)। जिन-देव (सम १५३) । २ प्राचार्य हेमचन्द्र सोमा स्त्री [सौम्या] उत्तर दिशा (ठा १.-- का दीक्षा समय का नाम (कुप्र २१)। जस पुं[यशस ] एक राजा (सुर २, १३४) सोमंगल पं. [सौमङ्गल] द्वीन्द्रिय जन्तु की पत्र ४७८ भग १०, १-४६३)। एक जाति (उत्त ३६, १२६)। सोमाण न [श्मसान मसान, मरघट (दे ८, "णाह देखो नाह ( राज) दत्त पूं ["दत्त १ एक ब्राह्मण का नाम (णाया १, सोमणंतिय वि स्वापनान्तिक, स्वाप्ना सोमाणस पं सोमानस] सातवां ग्रैवेयक १६-पत्र १६६) २ एक जैन मुनि, जो भद्र- न्तिक] १ सोने के बाद किया जाता प्रति विमान (पब १६४) बाहु-स्वामी का शिष्य था (कप्प)। ३ भगवान् क्रमण-प्रायश्चित्त-विशेष । २ स्वप्न-विशष सोमर) देखो सकुमार (गा १८६ स चन्द्रप्रभ स्वामीको प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ में किया जाता प्रतिक्रमण (ठा ६--पत्र सामाल । ३५६; मै ७ षड् प्राप्र; हे १, (सम १५१)। ४ राजा शतानीक का एक ३७६)। १७१: कुमाः प्राकृ २०; ३८ भवि)। परोहित (विपा १,५-पत्र ६०)। देव सोमणस पुसौमनस] १ महाविदेह-वर्ष सोमाल न द] मांस (दे ८, ४४)। [°देव] १ सोम नामक लोकपाल का सामा- का एक वक्षस्कार-पवंत (ठा २, ३-पत्र सोमिति सौमित्रि] राम-भ्राता लक्ष्मण निक देव (भग ३, ७-पत्र १६५)। २ ६६ सम १०२; 5 ४) । २ उस पर्वत पर (गा ३५) । भगवान पद्मप्रभ को प्रथम भिक्षा-दाता गृहस्थ रहनेवाला एक महद्धिक देव (जं ४)। ३ सोमित्ति स्त्री सुमित्रा] लक्ष्मण की माता । (सम १५१)। 'नाह [नाथ] सौराष्ट्र पक्ष का आठवाँ दिन (सज्ज १०, १४) ४ पुत्त पुं[पुत्र] लक्ष्मण; 'रामसोमित्तिदेश की सुप्रसिद्ध महादेव-मूत्ति (ती १५; पुन. सनत्कुमार नामक इन्द्र का एक पारि- पुत्ता' (पउम ३८, ५७)- सुय पुं [सुत] सम्मत्त ७५), पभ, पह पु. [ प्रभ] | यानिक विमान (ठा ५-पत्र ४३७; प्रौप)। वही अर्थ (पउम ७२, ३)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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