Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas
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९३६
पाइअसहमहाया
सोवरी-- साहल सोवरी स्त्री [शाम्बरी] विद्या-विशेष (सूत्र सोसणी स्त्री दि] कटी, कमर (दे ८, ४५) । सोहगंजण न [सौभाग्याञ्जन] सौभाग्य२, २, २७)
सोसविअ वि [शोपित] सुखाया हुमा (हे जनक अंजन (सुपा ५६७). सोववत्तिअ वि [सोपपत्तिक] सयुक्तिक, ३, १५०, उव)।
सोहग्गिअ वि [सौभागित] भाग्य-शाली, युक्ति-युक्त (उप ७२८ टो)। सोसाव देखो सोस = शोषय । हेकृ.सोसावेटुं
सुन्दर भाग्यवाला (उप पृ ४७; १०८)। सोवाअ वि [सोपाय] उपाय-साध्य (गउड) (शा) (नाट)
सोहण पुशोभन] १ एक प्रसिद्ध जैन सोवाग पुं [श्वपाक] चाण्डाल, डोम (प्राचा; | सोसास वि [सोच्छ्वास] ऊवं श्वास-युक्त
मुनि ( सम्मत्त ७५ )। २ वि. शोभा-युक्त, ठा, ४, ४-पत्र २७१; उत्त १३, ६; उवः |
सुन्दर (सुर १, १४७, ३, १८५; प्रासू सुपा ३७०; कुप्र २६२, उर १, १५)। सोसिअ देखो सोसविक्ष (हे ३, १५०; सुर
१३२) । स्त्री.°णा,°णी (प्राकृ ४२) वर ३,१.६; महा)। सोवाग स्त्री [श्वापाकी] विद्या-विशेष (सूम
न [°वर] वैताव्य की उत्तर श्रेरिण का एक | सोसिअ वि [सोच्छित] ऊँचा किया हुआ विटारगर २, २, २७) ।
विद्याधर-नगर (इक)। (कप्प) सोवाण न [सोपान] सीढ़ी, निसेनी, पैड़ी सोसिल्ल वि[शोफवन् ] शोफ युक्त, सूजन
सोहण न [शोधन] १ शुद्धि, सफाई (अ (सम १०६ गा २७८; उव; सुर १, ६२) रोगवाला (विपा १, ७--पत्र ७३) ।
५६७ टी; सुज्ज १०, ६ टी; कप्प)। २ सोवासिणं देखो सबारिणी (भवि) सोह प्रक [शुभ ] शोभना, चमकना।
_ वि. शुद्धि-जनक (श्रा ६) । सोविअ विस्थापित सुलाया हुआ, शायित:
सोहइ, सोहए सोहंति (हे १, १८७; पानः
सोहणी स्त्री [दे] संमार्जनी, झाडू (दे ८, 'कमलकिसलयरइए सत्थरए सोवियो तेण कुमा)। वकृ. पाहंत, सोहमाण (कप्प सुर ।
| सोहद न [सौहृद] १ मित्रता। २ बन्धुता
३, १११; नाट--उत्तर ८) । (सुर ४, २४४ उप १०३१ टी) सोह सक [शे भय ] शोभा युक्त करना।
(अभि २१८ अच्छु ५:)। सोवियल्ल पुंस्त्री [सौविदल्ल] अन्तःपुर का |
सोहेइ (उवा)।
सोहम्म देखो सुधम्म, सुहम्म - सुधर्मन् रक्षक (गउड) । स्त्री.ल्ली (सुपा ७)
सोह सक [ शोधय ] १ शुद्धि करना । २ (सम १६) सोवीर ब. [मौवीर] १ देश-विशेष (पव
खोज करना, गवेषणा करना । ३ संशोधन सोहम्म पु [सौधर्म प्रथम देवलोक (सम २७५; सून , ५, १, १-टी)। २ न.
करना । सोहेइ (उव)। वकृ. 'लूसिग्नं सगिह २; रायः अणु)। इप्प पुं[कल्प पहला काजिक, कॉजी (ठा, ३-पत्र १४७
दछु सोहिंतो दइयं निग्रं' (था १२)। देवलोक, स्वर्ग-विशेष (महा)। वह पूं पाप) मजन-विशेष, सौवीर देश में होता
सोहेमाण (उवा; विपा १, १-पत्र ७)। [पति] प्रथम देवलोक का स्वामी, शक्रेन्द्र सुरमा (जी ४) । ४ मद्य-विशेष (कस)
कवकृ. सोहिज्जत (उप ७२८ टी)। कृ. (सुपा ५१), वडिंसय पुंन [वतंसक] सोवीरा स्त्री [सौवीरा मध्यम ग्राम की एक सोहणीअ, सोहेयव्य (णाया १, १६-- एक देव-विमान (सम ८, २५, राय ५६) मूर्छना (ठा ७-पत्र ३६३)
पत्र २०२; नाट-शकु ६६; सुपा ६५७)। सामि पुं[स्वामिन् प्रथम देवलोक का सोव्य वि [द] पतित-दन्त, जिसका दात संकृ. सोहइत्ता (उत्त २६, १)।
इन्द्र (सुपा ५१)।। गिर गया हो वह (दे ८, ४५) ।
सोह देखो सउह् = सौध (रुक्मि ६१, प्रति मोहन
। सोहम्म देखो सहम्मा (महा) सोस सक [शोषय ] सुखाना, शोषण
४१; नाट--मालती १३८)।
सोहम्मण देखो सोहण = शोधनः 'रयणंपि करना । सोसइ (भवि)। वकृ. सोसयंत सोहंजण [दे. शोभाञ्जन] वृक्ष-विशेष,
गुणुक्करिसं उबेइ सोहम्मरणगुणणं' (कम्म सहिजने का पेड़ (दे ८, ३७कप्पू)।
६, १ टी)। सोस देखो सुस्स । सोसउ (हे ४, ३६५)। सोहग देखो सोभग (कप्प ३८ टी)।
सोहम्मिद पुं[सौधर्मेन्द्र शक्र, प्रथम देवसोस पुं [शोष] १ शोषण (गउड प्रासू सोहग [शोधक] धोबी, रजक (उप पृ लोक का स्वामी (महा)। ६४) । २ रोग-विशेष, दाह रोग (लहुन २४१) । देखो सोहय = शोधक । साहम्मिय वि[सौर्मिक] सौधर्म-देवलोक १५)
| सोहग्ग न [सौभाग्य] १ सुभगता, लोक- का (सण)।सोसण पुं[दे] पवन, वायु (दे ८, ४५) । प्रियता (प्रौप; प्रासू ६६)। २ पति-प्रियता सोय वि [शोधक] शुद्ध कर्ता, सफाई सोसण न [शोषण १ सुखाना । २ कामदेव (सुर ३, १८१; प्रासू ८५)। ३ सुन्दर
करनेवाला (विसे ११६६) । देखो सोहग = का एक कारण (कप्पू)। ३ वि. शोषण-कर्ता, भाग्य (उप पृ ४७; १०८)। कप्परुक्ख शोधक। सुखानेवाला (पउम २८, ५; कुप्र ४७)। [ कल्पवृक्ष] तप-विशेष (पव २७१)। सोहय देखो सोहग =शोभक (उप पृ.२१६)। सोसणा । स्त्री [शोपा] शोषण (उवाः "गुलिया स्त्री [गुटका] सौभाग्य-जनक सोहल वि [शोभावत् ] शोभा-युक्त (सणः सोसणा उत्त३,५)
मन्त्र-विशेष से संस्तृत गोली (सुपा ५६७)। भवि)
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