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सुवन्न-सुवेल पाइअसहमइण्णवो
ह२३ सुवन्न न [सुवर्ण] १ सोना (सं ५० प्रासू सुविउल वि [सुविपुल अति विशाल (उव) सुविर वि [स्वप्त] स्वपन-शील, सोने की
२. कुप्र१, कुमा) । २ वि. सुन्दर अक्षरवाला सुविक्कम पु [सुविक्रम] भूतानन्द नामक प्रादतवाला (ोघभा १३३; दे ८. ३६)।(कुप्र १) कुमार [कुमार] भवनपति इन्द्र के हस्ति सैन्य का अधिपति (ठा ५, सुविरइय वि [सुविराचत] मच्छी तरह देवों की एक जाति (भग; सम ८३) १-पत्र ३०२; इक)
घटित, सुघटित (उवा २०६)। कूलप्पवाय पुंकूलप्रपात] एक ह्रद सुविक्खाय वि [सुविख्यात] सुप्रसिद्ध (सुर
सुविराइय वि [सुविराजित] सुशोभित जहाँ से सुवर्णकूला नदी बहती है (ठा २, ६,६४)
(सुपा:१०) ३-पत्र ७२)- गार [ कार] सोनी सुविगा श्री [सुकिका, शुकी] मैना (उप
सुधिराहिय वि सुविराधित] अतिशय (णाया १, 6-पत्र १४०; उप पृ ३५३) ९७३, ६७५) -
विराधित (उव) जूहिया स्त्री [युथिका] लता-विशेष सुविज्जा स्त्री [सुविद्या] उत्तम विद्या (प्रासू
सुविलास वि सुविलास] सुन्दर दिलासवाला (परण १७–पत्र ५२६) यार देखो ५३)।
(सुर ३, ११४) 'गार (सुपा ५६५)। देखो सुवण = सुषिण देखो सुमिण (सुर ३, १.१ महा। सुविवेइय वि [सुविवेचत] सम्यग् विवेचित सुवर्ण ।। रंभा)। न्नु वि [s] स्वप्न-शास्त्र का
(उव)। सुवन वि [सौवर्ण] सोने का बना हुआ जानकार (उप पृ ११६, सुर १०, ६८) । सुविवेच सक[सुवि+विच अच्छी तरह (कुप्र ४)।
सुविगढ़ वि [सुविनष्ट] बिलकुल नष्ट (गा व्याख्या करना । संकृ. सुविवेचित (?य) सुवन्नालुगा श्री [दे] दतवन करने का ७४०)।
(धर्मसं १३११)। पात्र--लोटा प्रादि (कुप्र १४०)
सुविणिच्छिय वि [सुविनिश्चित] अच्छी सुविस वि [सुविकसित] अच्छी तरह सुवप्प [सुवा] एक विजय-क्षेत्र (ठा २, तरह निर्णीत (उव) ।
| विकसित (सुर ३, १११)। ३-पत्र ८०)
सुविणिम्मिय बि [सुविनिर्मित 1 अच्छी सुविसत्थ ( [दे] व्यभिचारी पुरुष (वजा सुवयण न [सुवचन] सुन्दर वचन (भग)। तरह बनाया हुआ (णाया १,१-पत्र १२) ६८)। सुवर । (अप) देखो सुमर। सुवरइ, सुवँरहि सुविणीय वि [सुविनीत] १ अतिशय दूर
सुविसाय पुन [सुविसात] एक देव-विमान सुवर(भवि पि २५१)। किया हुप्रा (उत्त १, ४७)। २ अत्यन्त
(सम ३८)। सुवहु देखो सुबहु (प्राप)। विनय-युक्त (दस ६, २, ६)।
सुविहाणा स्त्री [सुविधाना] विद्या-विशेष
(पउम ७, १३७) सुवाय पुंन [सुवात] एक देव-विमान (सम सुवित्त न [सुवृत्त] अत्यन्त गोलाकार ।
सुविहि [सुविधि] १ नववाँ जिन भगवान् २ सदाचार, अच्छा प्राचरण (सुर १, २१)।
(सम ८५; पडि)। २ पुंस्त्री. सुन्दर अनुष्ठान सुवास पुं(सुवर्ष] १ सुन्दर वृष्टि (उप सुवित्थड वि [सुविस्तृत प्रति विस्तारयुक्त
(पएह २, ५ टी-पत्र १४६)। ३ न. ८४६) । २ छन्द-विशेष (पिंग)। (अजि ४०; प्रासू १२८ द्र ६८)।
रामचन्द्र तथा लक्ष्मण का एक यानः 'चंकमणं सुवासणी देखो सुवासिणी (धर्मवि १२३)। सुवित्थिन्न वि [सुविस्तीर्ण] ऊपर देखो (सुर | हवइ सुविहि-नामेणं' (पउम ८०, ४) सुवासव ( [सुवासव] एक राज-कुमार १, ४५, १२, १)।
सुविहिअ वि सुविहित] सुन्दर पाचरण(विपा २, ४). सुविधि देखो सुविहि (सम ४३)।
वाला, सदाचारी (सम १२५; भास १, उत्र; सवासिणी स्त्री दे.सुवासिनी] जिसका सुविभज वि [सुधिभज] जिसका विभाग
स १३०; साधं ११५; द्र ३२) पति जीवित हो बद स्त्रो (सिरि १५६)। अनायास हो सके वह (ठा ५, १-पत्र
सुवीर [सुवर] १ यदुराज का एक पौत्र सुवाहा प[स्वाहा] देवता को हविष आदि २६६) ।
(अंत)। २ पुंन. एक देव-विमान (सम १२)।। मर्पण का सूचक अव्यय (सिरि १९७) सुविभत्त वि [सुविभक्त] अच्छी तरह सुवीसत्थ वि [सुविश्वस्त] अच्छी तरह सुविआजअ वि सुिव्यजित] विशेष रूप विविक्त (गाया १,१टी--पत्र ५ प्रौपः विश्वासप्राप्त (सुर ६, १५६; सुपा २११)।। से उपाजित (तंदु ५६)। | भग)।
सुवुण्णा स्त्री [दे] संकेत, इशारा (दे ८, सुविअद्ध वि [सुविदग्ध] अत्यन्त चतुर सुविम्हिअ वि [सुविस्मित] अतिशय (नाट-रत्ना)
| आश्चर्यान्वित (उत्त २०, १३)। सुबुरिस देखो सुपुरिस (गउड) । सुविइय वि [सुविदित] अच्छी तरह ज्ञात सुवियक्खण वि [सुविचक्षण] प्रति चतुर सुवे म [श्वस.] अागामी कल (हे २, (उव, सुपा ४०४)। (सुपा १५०)।
११४, चंडः कुमा) सुविउ वि सुविद्] अच्छा जानकार (श्रा सुवियाण न [सुविज्ञान] अच्छा ज्ञान, सुन्दर सुवेल पू[सुवेल] १ पर्वत-विशेष (से ८, २८)जानकारी, पंडिताई (सट्ठि १६) ।
८०)।२न. नगर-विशेष (पउम ५४,४३)।।
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