Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 998
________________ ४२) ६२८ पाइअसहमहण्णवो सूरंग-सूसिय 'दीव पुं[द्वीप] द्वोप-विशेष (इक)। देब सूरद्धय दे] दिन, दिवस (दे८, ४२ (कुप्र ३७)। पृ. ब. देश-विशेष (पउम ९८, पु[दव] आगामि उत्सपिणी-काल में होने- षड् ) ६५) पाणि पु [पाणि] यक्ष-विशेष वाले भारतवर्ष के दूसरे जिनदेव (मम १५३) सुरल्लि पुत्री दे]१ मध्याह्न, दुपहर का समय (कम ५), धर पु[धर] शिव, महादेव पन्नत्ति स्त्री [ प्रज्ञप्ति] एक जैन उपाङ्ग(दे ८,५७; षड्)।२ कीट-विशेष, मशक (पिंग)। ग्रंथ (ठा, २-पत्र १२६) परिवेस पुं। के समान प्राकृतिबाला कीट (दे ८, ५७)। सूलच्छ न [दे] पल्वल, छोटा तालाब (दे [परिवेष] मेघ प्रादि से होता सूर्य का वल ३ तृण-विशेष, ग्रामणी नामक तृण (दे ८, ८, ४२) ।" याकार मंडल (अणु १२०). पव्वय पु ५७; जीव ३, ४: राय) सूलत्थारी स्त्री [दे] चण्डी, पार्वती (दे८, ["पर्वत] पर्वत-विशेष (ठा २, ३-पत्र सूरि पुरि ] आचार्य (जी १; सण) ८०) पाया स्त्री [पाका] सूर्य के किरण से होनेवाली रमोई (कुप्र ६६) 'प्पभ | सूरिअ वि (भन] भाँगा हुआ (कुमा)। सूला स्त्री [शूला] शूली. सुतीक्ष्ण लोह-कंटक पुंन प्रभ] एक देव-विमान (सम १०) सूरिअ देखो सुज (हे २, १०७; सम ३६; | (गा ६४; उप ३३६ टी; धर्मवि १३७)। cपमा, पहा स्त्री [प्रभा] १ सूर्य की भगः उप ७२८ टी), कंत पु [कान्त] | इय वि [चित, "तिग] शूली पर चढ़ाया एक अग्र-महिषी (इक, रणाया २--पत्र प्रदेशि-नामक राजा का पूत्र (भग ११, हुया (गाया १,६-पत्र १५७, १६३ २५२)। २ ग्यारहवें जिनदेव की दीक्षा- ६-पत्र ५१४: कुप्र १४:) कंता स्त्री | राय १३४)। शिविका (सम १५१)। ३ पाठवें जिनदेव कान्ता] प्रदेशी राजा की पत्नी (कुप्र सूला स्त्री [दे] वेश्या, वारांगना (दे ८, की दीक्षा-शिविका (विचार १२६) 'मल्लिया। १४६) पाग पुंस्त्री [पाक सूर्य के ताप स्त्री [ मल्लिका वनस्पति-विशेष (राय ७६) से होनेवाली रसोई (कुप्र ७०) । स्त्री. गा साल वि [शलिन १ शूल-रोगवाला; 'जह °मालिया स्त्री [ मालका] प्राभरण-विशेष (कुप्र ६८) लस्सा स्त्री [°लेश्या] सूर्य की विदलं सूलीण' (वि ३)। २ पु शिव, महादेव (प्रौप)। लेस पुन [°लेश्य] एक देव- प्रभा (सुज्श ५–पत्र ७६) भ पुं[भ] (पान) विमान (सम १०) वक्रय न | वक्रण] १ प्रथम देव लोकका एक देव (राय १४; धर्मवि आभूषण-विशेष (प्रौप)। वर पु [वर] १ ६)। २ पुंन. एक देव-विमान । ३ न, सूर्याभ । सूलिया स्त्री [शूलिका] शूलो, जिसपर वध्य एक द्वीप । २ एक समुद्र (सुज्ज १९) देव का सिंहासन (राय १४) वित्त को चढ़ाया जाता है (पएह १, १-पत्र 'वर भास पु [°वरावभास] १ द्वीप- [वर्त] मेरु पर्वत (सुज्ज ५, इक), वरण विशेष । २ समुद्र-विशेष (सुज्ज १९) पुं[वरण] मेरु पर्वत (सुज्ज ५; इक) सूब पृ[सूप] दाल (उवा; मोघ ७१४; चारु 'वल्ली स्त्री [°वल्ली] लता-विशेष (परण १- सूरिल [दे] श्वशुर पक्ष (?), 'महंतं मे | ६: पिड ६२४: पंचा १०, ३७)। यार, पत्र ३३), वेग पु ["वेग] एक राज- सोयणं ति साहिऊरण सुरिलस्स समागमो र पुं [कार] रसोइया, रसोः बनानेवाला कुमार (उप १०३१ टी)- सिंग पुन चं' (स ५१०) नौकर (पउम ११३, ७; सुर १६, ३८; [शृङ्ग एक देव-विमान (सम १०) सुरिस देखो सुउरिस (हे 1, ८) उप ३०२)। 'सिट्ठ पुन [सृष्ट] एक दैव-विमान (सम सूरुत्तरवडिंसग न [सूरोत्तरावतंसक] सूस अक [शुष्] सूखना। सूसइ, सूसंति, १०)। सिरी स्त्री ["श्री] सातवें चक्रवर्ती एक देव-विमान (सम १०)। सूसइरे (हे ४, २३६ प्राकृ ६८ कुमा ३७४, की स्त्री (सम १५२) सुअ पु [सुत] शनैश्चर-ग्रह (हाट-मृच्छ १६२) भ सूरुल्लि देखो सूराल्ल (राय ८० टो)। सूसर वि सुस्वर] १ सुन्दर अावाजवाला पुंन [भ] एक देव-विमान (सम १४, पव सूरोद पु[सरोद एक समुद्र (सुज्ज १९) (सुर १६, ४६) । २ न. नामकर्म का एक २६७) वित्त पुंन [विते] एक देव- सरोदय न [सरोदय नगर-विशेष (पउम ८, भेद, जिससे सुन्दर स्वर की प्राप्ति हो वह विमान (सम १०) । देखो मुज्ज । १८६)। कर्म (धर्मसं ६२० श्रावक २३; कम्म २, सूरंग पुंदे] प्रदीप, दीपक (दे ८, ४१ सरोवराग पू । सरोपराग 7 सूर्य-ग्रहण २२)M परिवादिणी स्त्री [परिवादिनी] षड् ) । (भग) एक तरह की वीणा (पण्ह २, ५--पत्र सूरंगय [सुराङ्गज] एक राजा (उप सूल पुंन [शूल] १ लोहे का सुतीक्ष्ण काँटा, १४६) १:३१ टी) शूली (विपा १, ३-पत्र ५३; प्रौप) । शत्र । सूसास वि [सोच्छ्वास] ऊर्व श्वासवाला सूरण पृद. सूरण] कन्द-विशेष, सूरन, प्रोल विशेष, त्रिशूल (पराह १, १--पत्र १८ (हे १, १५७ कुमा) । (दे ८, ४१ परण १--पत्र ३६, उत्त ३६ कुमा)। ३ रोग-विशेष (प्रासू १०५)। ४ सूसिय वि [शोपित] सुखाया हुप्रा (सुर ९६; पंचा ५, २.)। बबूल प्रादि का तीक्ष्ण अग्र भागवाला काटा १५, २४८) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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