Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 997
________________ ह२७ म २ (दस दिया सूअ---सूर पाइअसद्दमहण्णवो सूअ [शूक] धान्य प्रादि का तीक्ष्ण अग्र सूइ स्त्री [सूचि देखो सूई (प्राचाः सम सूणिय वि [शूनिक १ सूजन का रोगवाला. भाग (गउडः गा ५६८) १४६; राय २७)। जिसका शरीर सूज गया हो वह । २ न. सूअ वि [शून फुला हुमा, सूजनवालाः 'स्य सूहअ वि सूचित] जिसकी सूचना की गई सूजन (प्राचा)। मुहं सुग्रहत्थं सयपा' (विपा १.७-पत्र हो वह (महा)। २ उक्त, कथित (पास) सणुपं सना पुत्र, लडका (कप्र ३१६)। ३ व्यजनादि-युक्त (खाद्य) (दस ५, १, १८) । सूतक देखो सूअय = सूतक (वव १) सूअ [सप] दाल (पंव ६१, टीः उवाः । सूइअ वि सूत प्रसूत, जिसने जन्म दिया। पएह २, ३-१२३, सुपा ५७) गार, हो वह, व्यायी. साणं सूइयं गावि' (दस सूप दखा सूअ = सूप (परह २, ५-पत्र 'यार, पुं[कार) रसोइया (स १७; कुप्र ५,१.१२) ५, १. १ ६६ ३४ श्रावक ६३ टी) रिणी स्त्री सूइसचिका दरजी (कूप्र ४०१) सूभग देखो सभगः 'सूभग दूभगनामं सुसर [कारणी] रसोई बनानेवाली स्त्री (पउम सूरपु सूइअ पु[दे] चण्डाल (दे ८, ३६) तह दूसरं चेव' (धर्मसं ६२ श्रावक २३)। चरनाल (, २६) सूइय न [सुन] निद्रा; 'सेजं प्रत्थरिऊण सूभग देखो सोभम्ग (पिंड ५०२) ।। सूअ देखो सुत्त = सूत्र गड पुन [कृत] | अलियसूइयं काऊण अच्छति' (महा)। समाल देखो सुरमाल (पएह १, ४-पत्र दूसरा जैन अंग-ग्रन्थ; 'पायारो सूयगडो' (सूत्र सूइय वि [दे सूप्य, सूपिक] भीजा हुआ ७८ णाया १.१--पत्र ४७; १,१६-पत्र २. १, २७. सम :)। (खाद्य); 'प्रवि सूइयं वा सुकं वा' (प्राचा) । २०० कप्पः सुर १३, ११८ कुप्र ५५) । सुअअ. वि [सूचक १ सूचना करनेवाला सूइया स्त्री सूतिका] प्रसूति-कर्म करनेवाली सूर सक[भञ्] तोड़ना, भांगना। सूरइ सअक (वेणी ४५, श्रा ११, सुर २, स्त्री (सम्मत्त १४५) सूअग । २२६) । २ पुं. पिशुन, खल, दुर्जन सूई स्त्री [सूची] कपड़ा सीने की सलाई, सूई सूर वि [शूर] पराक्रमी, वीर (ठा ४, (पएह १, २--पत्र २८)। ३ गुप्त दूत, (पराह १, ३-पत्र ४४ गा ३६४,५०२)। ३-पत्र २३७; कप्प; सुपा २२२, ४१२, जासूस (प्राप्र)। २ परिमारण-विशेष, एक अंगुल लम्बी एक प्रासू ७१) । २ पृ. एक राजा (सुपा ६२२)। सूअग, न [सूतक] सूतक, जनन और मरण प्रदेशवाली श्रेणी (प्रण १५८)। ३ दो तख्तों ३ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४३)। सूअय । की अशुद्धि (पंचा १३, ३८ वव के जोड़ने के काम में प्राती एक तरह की सेण पुसेन] एक भारतीय देश, जिसकी पतलो कील (राय २७, ८२) फलय न प्राचीन राजधानी मथुरा थी (विचार ४६; सूअण न [सूचन] सूचना (उवः सुर २, [कलक] तख्ते का वह हिस्सा, जहाँ सूची पउम ६८,६६; तो १४ विक्र ६, सत्त २३३)। कीलक लगाया गया हो (राय ८२) मुह पं ६७ टी)। २ ऐवत वर्ष के एक भावी जिनसूअर दुशूकर] सूअर, वराह (उवाः विपा [मुख] १ पशि-विशेष (पएह १. १-पत्र देव (सम १५४)। ३ एक जैनाचार्य (उप १, ३-पत्र ५३; प्रयौ ७०) वल्ल पुं ८)। २ द्वीन्द्रिय जन्तु की एक जाति (पएण ७२८ टो। ४ भगवान आदिनाथ का एक [वल्ल] अनन्तकाय वनस्पति-विशेष (पव ४ | १-पत्र ४४)। ३ न. जहाँ सूची-कीलक तख्ते का छेद कर भीतर घुसता है उसके पुत्र (ती १४) श्रा२०) सूअरिअ वि [दे] यन्त्र-पीड़ित (दे ८, ४१ समीप की जगह (राय ८२)। सूर [सूर, सूर्य] १ सूर्य, रवि (हे २, ६४ ठा २, ३-पत्र ८५, उव; सुपा २२२; टी)। सूई स्त्री [दे मंजरी (दे ८, ४१) । सुरिया, स्त्री [दे] यन्त्र-पीड़ना (सुर १३, सूई देखो सूइ = सूति (सुपा २६५)। ६२२: कप्प; कुमा) । २ सतरहवें जिन देव सूअरी १५७; दे ८, ४१)। का पिता (सम १५१)। ३ इक्ष्वाकु-वंश का सूड सकभञ्ज , सूदु] भागना, तोड़ना, सूअल न दि] किंशारु, धान्य का तीक्ष्ण एक राजा (पउम ५, ६)। ४ एक लंकाविनाश करना । सूडइ (हे ४,१०६)। कर्म. अग्र भाग ( दे ८, ३८) पति (पउम ५, २६३)। ५ एक द्वोर का सूडिजंतु (परह १, २-पत्र २६)। नाम (सुज्ज १९)। ६ एक राजा (सुपा सूआ श्री [ सूचा] सूचन, सूचना (पिंड सूडण न [सूदन] १ भजन, विनाश (गउड)। ५५६) । ७ छन्द का एक भेद (पिंग) ८ ४३७ उप ५०; सूअनि २) + कर वि २ वि. विनाशक (पव २७१)। पुन. एक देव-विमान (सम १०) अंज, [कर] सूचक (उप ७६८ टी)। सूग वि [शून] सूजा हुअा, सूजन से फुला हुआ। 'कत पुं[कान्त १ मणि-विशेष (स ६, सूआ, स्त्री सूति] प्रसव, प्रसूति, जन्म (पउम १०३, १४८; गा ६३६; स ३७१, ५०; पउम ३, ७५, पएण १-पत्र २६; सूइ (पउम २६, ८५, १, ६१, सुपा ४८०) ! उत्त ७७) । २ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र २३)+ कम्म न [कर्मन] प्रसव-क्रिया (सुर | सूर्ण स्त्री [सूना] वध-स्थान (निर १, १; १४४; सम १०) कूड पुंन [°कूट] एक १०, सुपा ४०)। हर न [गृह] प्रसूति- सूणा ) मा ३४ कुप्र २७६) वइ पुं| देव-विमान-देव-भवन (सम १०) उभय गृह (पउम २६, ८५) [पनि] कसाई (दे २,७०) पुंन [वज] एक देव-विमान (सम १०) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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