Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 996
________________ २६ सुहग देखो सुभग ( रयण ४० गा ६६ नाट - मालवि २८) सुद[सुट] योद्धा (गुर २ प्रासू ७४; सरण) 1 सुहड वि [सुहृत] अच्छी तरह हरण किया हुआ (दस ७, ४१) सुदस्य [सुस्त ] हा हाथ की लघुतावाला हाथ से शीघ्र शीघ्र काम करने में समर्थ ( से १२, ५५) । २ दाता, दानशील (भवि) 1 सुहत्थि पुं [ सुहस्तिन् ] १ गन्ध- हस्ती ( या १, १ - पत्र ७४; उवा)। २एक जैन महर्षि (कप्प: पडि) 1 २६ मा 1 सुहद्द न [सौहार्द] १ स्नेह र मित्रता (भवि ) । सुक्ष्म न [सूक्ष्म] १ फूलपुरुष १ ३६) । २ देखो सह, सुडुम - सूक्ष्म (हे २, १०१३ चंड) | सुहम्म[सुधर्मेन] १- भगवान् महावीर का पट्टधर शिष्य (विपा १. १ - पत्र १ ) । २ बारहवें जिनदेव का प्रथम शिष्य ( सम १५२) । ३ एक यक्ष का नाम (विपा १, १ - पत्र ४ १, २ – पत्र २१ ) + सामि [["स्वामिन] ] भगवान् महावीर का पट्टधर शिष्य (भग)। देखो सुधम्म M सुहम्म° देखो सुहम्मा व पुं [पति इन्द्र (महा) ] सुहम्ममाण वि[सुहन्यमान ] जो अच्छी तरह मारा जाता हो वह (पि ५४० ) । दम्मा की [सुधर्मा] पमर आदि इन्द्रों की सभा, देव-सभा (सम १५; भग) सुहय देखो सुह-अ = सुखद, शुभ-द सुदय देशो सुभगः सहेका २७२ बुमा सुहय [वि] [सुरत]] अण्डी तरह जो मारा गया हो वह (कुप्र २२६) । Jain Education International पाइअसहमण्णषो सुहग सूअ सुहाय पुं [दे] १ वेश्या का घर । २ चटक, सुहिरण्णा श्री [सुहिरण्या, व्यिका ] गैरैया पक्षी (दे ८,५६) । सुहिरणिया वनस्पति-विशेष, ( पुष्प-प्रधान ) सुरझिया कृत-विशेष (राम २१ राज परह १७ - पत्र ५२६ ) । सुद्धी श्री [दे] सुत्र, बानन्द (२६) सुदयदेखी सुभग (६६) स्त्री थी (प्रा३७) । सुहिरीमण वि [ सुमनस ] श्रत्यन्त लज्जालु, अतिशय शरमिन्दा (सूत्र १४, २, १७ राम) - = सुहा अक [ सु + भा ] अच्छा लगना, सुहाइ गोमईएस (१५२) मुद्दा देखी हुद्दा तुषा (स २०२० साउन [] कारखाना (आाचा २, २, २, ६) । [ हार] देव, देवता ( स ७५५) । सुहा न मा सुहि पुं [सुहृद् ] मित्र, दोस्त (ठा ४, सुदिन ३ - २४२ खाया १, २ ३---पत्र २४३; गाया १, २ पत्र ६०; उत्त २०, ६ सुर ४, ७६६ सुपा १०७ ४१६; प्रयौ ३६; सुर ३, १५४, भवि सुदिवि [सुखत] -युक्त (से २, सुखी, ८ गा ४१८ः कुत्र ४०६६ उवः कुमा) । सुहिअ वि [सुहित ] १ तृप्त ( से २, ८) । २ सुन्दर हितवाला (धर्मं २ ) ।~ सुहर वि [सुझर] सुख से भरने योग्य (दस सुट्ठि वि [सुहृष्ट] प्रति हर्षित (उप ७२८ ८, २५) सुहरअ देखो सुहराव ( ब ) (षड् सुदरा श्री [4. सुदा] पक्षि-विशेष, सुपरी ( से ८,३६) । का हार पुं सुहाअ सुहाय [सुखाय ] सुख पाना । २ सक सुखी करना । सुहाइ, सुहाई, सुहावइ, सुहावेइ (भवि वज्जा ( से १, गा ६१७पि ५५८ से १२, ८६ १६४ भवि उव) । वकृ. सुदाअं २८ नाट - रत्ना ६१ ) सुहाव देखो सहाव = स्वभाव (गा ५०८; वज्जा १०) ४ पण [सुखायन] स-जगत ( वि भावि) 1 सुहावय वि [सुखायक] ऊपर देखो (चज्जा ४६४ भवि मुद्दासिय वि[सुभाषित] सम्ब उक ( परह १, १ - पत्र १) । २ न. सुन्दर वचन, सूक्त (७६१ पा ५१४) सुदिप []] (२१२ सुख-युक्त (सुपा ४३१) । For Personal & Private Use Only टी) । सुहिर देखो सुसिर 'अनाहि तो सुहिर व चरणाचाहि धर्मन १२४० ( रंभा ) । - सुदिहिया देो सुरेहि रसं सुराम्रो' (भत्त १४२) सुही वि [सुधी] पंडित, विद्वान् (सिरि ४० ) । मुटु वि[क्ष्म] बारीक अत्यन्त छोटा २ तीक्ष्ण (हे १, १८२, ११३३ कुमा जी १४) । ३ पुं. भारत वर्ष के एक भावी कुलकर पुरुष (सम १४३) ४ एकेन्द्रिय जीव-विशेष (ठा ८ कम्म ४, २, ५ ) । ५ न कर्म-विशेष (सम) संपराग ६ । संपरा पुन [ संपराय ] १ चारित्र - विशेष (ठा ५, २ – पत्र ३२२ ) । २ दशवाँ गुरणस्थानक (सम २६) । देखो सण्छ, सुहम = सूक्ष्म सुवि[सुहुत] [छी तरह होम किया हुआ (२६० टी. कप्पः श्रौष) 1 सु[ि.] सुख, धान्य, मजा (दे ८ ३६ पागा १०८ २११; २६१ २८८ ३६८ ५५६; ८६४ स ७२)। मुसिव [सुपिन] सुखाभिलाषी (पा २२७) सुन्दा अध्यय (नाट) - सृअ सक [ सूचय ] १ सूचना करना । २ जानना । ३ लक्ष करना । सूएइ, सूअंति मोसे १३६८ २४८ उड पिंड ४१७) कर्म सूरज (गा ३२९ ) । बकु सूर्यंत सूत (२६६ व (१०) अन्य (से १०, २८ ) 1 सूत्र [द] रसोइया (महा) सूअ [सृत] १ सारथि, रथ हाँक्नेवाला ( पाच ) । २ वि. प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह 'सु( सू गोधर (१, ३, २, ११) गड पुंन [कृत ] दूसरा जैनगन्य (सुपनि २ ) - www.jainelibrary.org

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