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६२४ पाइअसहमहणणको
सुवो-सुसिर सुवो देखो सुवे (षड ; प्राप)
सुसंपरिग्गहिय वि [सुसंपरिगृहीत] खूब सुसर पृन [सुस्वर] १ एक देव-विमान (सम सुव्य न [शुल्ब] १ ताँबा, ताम्र (ती २)। अच्छी तरह ग्रहण किया हुमा (राय ६३) १७) । २ न. नामकर्म का एक भेद, जिसके २ र रस्सी । ३ जल-समीप । ४ प्राचार ।
सुसंपिगद्ध वि [सुसंपिनद्ध] खूब अच्छी उदय से सुन्दर स्वर की प्राप्ति हो वह कर्म ५ यज्ञ का कार्य (हे २, ७६) तरह बँधा हुआ (राय)।
(सम ६७; कम्म १, २६, ५१)। देखो सुसंभंत वि [सुर भ्रान्त] अतिशय व्याकुल | सुस्सर, सुसर। सुव्वंत देखो सुग।। (उत्त २०, १३)
सुसा स्त्री [स्वसू ] बहिन, भगिनी (सूम १, मुव्वत देखो मुव्यय (ठा २, ३--पत्र ७८)
सुसंमिअ वि [सुसंभृत] अच्छी तरह संस्कृत ३, १, १ टी)। सुवन वि सुव्यक्त] स्फुट, सुस्पष्ट (अंत | (स १८६ उप ६४८ टी)।
सुसा देखो सुण्हा = स्नुषा (कुमा)। २०; प्रौपः नाट-मृच्छ २८)। सुसंमय वि[सुसंमत] अच्छी तरह संमति
सुसागय न [सुस्वागत] सुन्दर स्वागत सुबमाण देखो सुण ।
युक्त (सुर १०, ८२)।
(भग). सुव्यय सत्रन]१ भारतवर्ष में उत्पन्न सुसंवुअवि [सुसंवृत] १ परिगत, | सुसागर पुन सुसागर] एक देव-विमान बीसवें जिनदेव, मुनिसुव्रत स्वामी (ती; सुसंवुड, व्याप्त । २ अच्छी तरह पहना।
मात
१९" (सम२) पव ३५)। २ ऐरवत वर्ष के एक भावी । हुपा (गाया १,१-पत्र १६; पि २१६)।
सुसाण न [ श्मशान ] मुर्दाघाट, मरघट जिन देव (सम १५४)। ३ छठवें जिनदेव के ३ जितेन्द्रिय । ४ रुका हुमा (उत्त २, ४२) (णाया १.२-पत्र ७६: हे २,५६ स गरणधर (१५२)। ४ एक जैन मुनि जो सुसंहय वि [सुसंहत] अतिशय संश्लिष्ट ५६७; धा १४; महा)। तीसरे बलदेव के पूर्व जन्म में गुरु थे (पउम (प्रौप) ।
| सुसामण्ण न [सुश्रामण्य] अच्छा साधुपन २०, १९२)। ५ आठवें बलदेव के धर्म-गुरु सुसज्ज वि [सुसज्ज अच्छी तरह तय्यार
(उवा)। (पउम २०,२०६)। ६ भगवान् पाश्वनाथ (सुपा ३११)
सुसाय विसुस्वाद] स्वादिष्ठ, सुन्दर स्वादका मुख्य श्रावक (कप्प)। ७ एक ज्योतिष्क
सुसण्णप्प देखो सुसन्नप्प (राज) वाला (पउम ८२, ६85 १०२, १२२) । महा-ग्रह (राज)। ८ एक दिवस का नाम |
सुसद वि [सुशब्द] १ सुन्दर प्रावाजवाला। सुसाल पूंन[सुशाल ] एक देव-विमान (प्राचा २, १५, ५, कप्प) । न. एक
२ प्रसिद्ध, विख्यात (सुपा ५६६) । (सम ३५)। गोत्र (कप्प) । १० वि. मुन्दर व्रतवाला (पव ३५), 'गि ' [ग्नि] एक दिवस का
सुसन्नप्प विसुिसंज्ञाप्य] सुख-बोध्य (कस) सुसाग। [सुश्रावक] अच्छा श्रावकनाम (कप्प) ।
सुसमत्थ वि [सुसमर्थ] सुशक्त, अतिशय सुसावय ) जैन गृहस्थ (कुमा; पडि द्र २१)।सामथ्यंवाला (सुर १, २३२) ।
सुसाय देखो सुसंय (पएह १, ४-पत्र सुव्यया स्त्री [सुव्रता] १ भगवान् धर्मनाथ को माता (सम १५१) । २ एक जैन साध्वी |
सुसमदुरुसमा। स्त्री सुषमदु प्षमा] काल
सुसमदूसमा । विशेष, अवपिणी-काल सुसाहु पुं [सुसाधु] उत्तम मुनि (परह २, (सुर १५, २४७; महा)।
का तीसरा और उरिणी का चौथा पारा १-पत्र १०१; उव)। सुविआ श्री [दे] अम्बा, माता (दे ८० ३८)- (हक; ठा २, ३-पत्र ७६)।
सुसिअ वि [शुष्क] सूखा हुमा (सुपा २०४६ सुस देखो सृस; 'सृसइ व पंकं न वहति सुसमसुसमा स्त्री सुषमसुषमा] काल-विशेष, कुप्र १३)। निज्झरा वरहिणो न नच्चंति (वजा १३४ ।
अवसपिणी का पहला और उत्सपिणी का सुसिअ वि [शोषित] सुखाया हुमा (महा: भवि) । कृ. सुसियव्व (सुर ४, २२६)।
छठवां पारा (इक, ठा १-पत्र २७)। वज्जा १५०; कुप्र १३)। सुमंगद वि [सुसंगत अति-संबद्ध (प्राकृ ससमा श्रीसपमा१ काल-विशेष, प्रव-सुसिक्खिअ वि [सुशिक्षित अच्छी तरह १२) ।
सपिणी का दूसरा और उत्सर्पिणी का पांचवाँ शिक्षा को प्राप्त (मा २०)। सुसुमिअवि [सुसंयमित] अति-नियन्त्रित । पारा (ठा २, ३-पत्र ७६; इक) । २ सुसिणिद्ध वि सुस्नग्ध अत्यन्त स्नेह-युक्त छन्द विशेष (पिंग)।
(सुर ४, १६६) सर्वडिआ स्त्रीदे] शुला-प्रोत मास (दे, सुसमाहर सक [सुनमा + ह] अच्छी तरह ससिस्थ देखो सुत्थ = सौस्थ्य (संक्षि १२)
। ग्रहण करना । सुसमाहरे (सून १, ८, २०) । ससिन्न वि [सुशीर्ण] अति सड़ा हुआ (सुपा सुसं वि [सुसत्क] अति सुन्दरः 'अहो | सुसमाहिअ वि[सुसमाहित] अच्छी तरह YEE
जगा कुणह तवं मुसंतय' (पउम , ५६) समाधिसंपन्न (दस ५, १, ६ उत्त २०, ४)। ससिर विशिषिर१पोला, खाली। छछा मुसंनिविट्ठ वि [सुसंनिवि] अच्छी तरह सुसमिद्ध वि[सुसमृद्ध] अत्यन्त समृद्ध (उप ७२८ टी; कुप्र १९२)। २ पुंन. एक स्थित (सुपा १३३)। (नाट-मृच्छ १५६)।
देव-विमान (सम ३७)।
अयससमा त्री सुषमा
सुर ४, २२६
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