________________
सुद्धसणिअ-सुपरन्न
पाइअसद्दमहण्णवो खबर, खोई हुई चीज की प्राप्ति; 'वद्धाविजह सुनिग्गल वि [सुनिर्गल] चिर-स्थायी (विसे नाम (सुपा ३६) । ८ भाद्रपद भात का पियाइ सूद्धीए' (सुपा ५१७; कुप्र २०२; ७६६)
लोकोत्तर नाम (मुज्ज १०, १६)। पात्रसम्मत्त १७२, कुम्मा )
सुनिन्छय वि [सुनिश्चय] दृढ़ निर्णयवाला विशेष (राय)। १० न. एक नगर का नाम सुसणिअ वि [शुद्ध षणिक] निर्दोष (सुपा ४६८)।
विपा १, ६-पत्र ८८), म पुन [भ] द्वार की खोज करनेवाला (प .१- सुनिप्पकंप वि [सुनिष्प्रकम्प] अत्यन्त । एक देव-विमान (सम १४; पब २६७) - पत्र १०.) निश्चल (सुपा ६५३)
सुपाद्वय वि मुप्रतिष्टित] अच्छी तरह सद्धोअण शुद्धोदन] बुद्धदेव के पिता सुनिम्मल वि[सुनिमल ] अतिशय निर्मल प्रतिप्रा-प्राप्त । का नाम तणय पुं [तनय] बुद्ध देव (पउम २६, ६२) ।
मुपक्क वि सुपक्क] अच्छी तरह पका हुआ (सम्म १४५) । देखो सुद्धोदण - सुनिरूबिय वि [सुनिरूपित अच्छी तरह (प्रास १०२: नाट-मच्छ ५७ सदोअगिजीनोनिदेव वा तलासा हुआ (सुपा ५२३)।
सुपड़ाय वि [सुपनाक) सुन्दर ध्वजावाला सनिविन विसुनिविष्ण] अतिशय खिन्न (कूमा) 10 सुद्धोदण देखो सुद्रोअण पुत्त पुं[पुत्र]
(सुर १४, ५८ उब) - बुद्ध देव (कुप्र ४४०)।
सुपाडवुद्ध वि [सुप्रतिबुद्ध] १ सुन्दर रीति सुनिव्वुड देखो सुणिव्युय (द्र ४७)। से प्रतिबोध को प्राप्त (पाचा १, ५, २, सुधम्म पुं[सुधमेन ] १ भगवान् महावीर
सुनिसाय वि [सुनिशात] अत्यन्त तीक्ष्ण ३)। २ पृ. एक जैन महर्षि (कप्प):का पट्टधर शिष्य (कुमा)। २ एक जैन मुनि (सुपा ५७.)।
मुप डवत्त वि सुपरिवृत्त] जो अच्छी तरह (विपा २, ४)। ३ तीसरे बलदेव के गुरु
सुनिसिअ वि [सुनिशित] ऊपर देखो (दस हुपा हो वह (पउम ६४, ४५)। एक जैन मुनि (पउम २०, २०५)। ४ एक
१०, २) जैन मुनि, जो सातवें बलदेव के पूर्व-जन्म में
सुरणिहिय वि [सुप्रणिहित] सुन्दर प्रणिसुनिन्संफ वि सुनिःशङ्क] बिलकुल शङ्कागुरु थे (पउम २०, १६३)। ५ एक
धानवाला (पएह २, ३--पत्र १२३). रहित (सुपा १८) जैनाचार्य; तह प्रज्जमंगुसूरि प्रज्जसुधम्म
सुपण्ण देखो सुप्पन्न (राज)। च धम्मरय' (साधं २२) । देखो सुहम्म ।
सुनाविआ श्री सुनावका] सुन्दर नावा-सु- पुंसुवणे गरुड पक्षी (नाट: कुप्र वस्त्र-ग्रन्थिवाली स्त्री (कुमा)।
सुपन्न, ६३)। सुधा देखो छुहा - सुधा (कुमा)
सुनेत्ता स्त्री [सुनेत्रा] पाँचवें वासुदेव की सुपनत्त वि [सुप्राप्त ] १ सुन्दर रूप से सुनंद [सुनन्द] १ भारतवर्ष के भावी पटरानी (पउम २८, १८६) ।।
कथित (पाचा १,८,१, ३)। २ सम्यग दसवें जिनदेव के पूर्वभव का नाम (सम सुन्न न [शून्य १ बिन्दी (सुर १६, १४६)। प्रासेवित (दस ४, १)। १५४)। २ एक जैन मुनि (पउन २०, २-देखो सुण्ण (प्रासू १०; महा: भगः सुपभ देखो सुप्पम (राज)। २०) । देखो मुणंद । प्राचाः सं ३६, रंभा) + पत्तिया स्त्री
सुपम्ह पुंसुपक्ष्मन १ एक विजय-क्षेत्र सुनक्खत्त देखो मुणक्खत्त (भग १५-पत्र [प्रत्ययिका, पत्रिका] एक जैन मुनि
(ठा २. ३--पत्र ८०)। २ पुंन. एक देव६८ ६८७) शाखा (कप्प) ।
विमान (सम १५)।
सुपरिकम्मिय वि [सुपरिकर्मित ] सुन्दर करनेवाली स्त्री (सुपा २८६) १२) ।
संस्कारवाला (णाया १,७-पत्र ११६) । सुनयण सुनयन] १ राजा रावण के सुन्नार देखो मुण्णार (सुपा ५६२) ।
सुपर क्ख । वि [सुपरीक्षित] अच्छी अधीनस्थ एक विद्याधर सामन्त राजा (पउम मुन्हा देखो सुण्हा (वा ३७; भवि) । सुपरिच्छिय । तरह जिसकी परीक्षा की ८, १३३)। २ वि. सुन्दर लोचनवाला सप सकमज1 मार्जन करना, शोधन गई हो वह (उवः प्रासू १५) (माजम)N ___ करना । सुपइ (प्राप्र)।
सुपारे पट्ठिय । वि सुपरिनिष्ठित अच्छी सुनाम सुनाम] अमरकंका नगरी के सुपट्ट वि [सुप्रतिष्ट] १ न्याय-मार्ग में सुपा नदिअ ) तरह निपुण (राज) भग)। राजा पद्मनाभ का पुत्र (णाया १,१६-पत्र | स्थित । २ प्रतिज्ञा-शूर (कुमा १. २८) । ३ सुपारम्फु बि [सुपरिस्फुट] सुस्पष्ट (पउम २१४)
अतिशय प्रसिद्ध । ४ जिसकी स्थापना विधि- ४५, २६) सुनिउण वि [सुनिपुण] १ अत्यन्त सूक्ष्म पूर्वक की गई हो वह (बुमा २, ४०) । ५ सुपारसं वि [सुपरिश्रान्त] अतिशय पका (सम ११४)। २ अति चतुर (सुर ४, पुं. भगवान महावीर के पास दोक्षा लेकर मुक्ति प्रा (पउम १०२, ४५)।
पानेवाला एक गृहस्थ (अंत १८)। ६ अंग- सुपरन्न वि [सुप्ररुदित] जिसने जोर से रोने सुनिरण वि [सुनिगुण] अतिशय निश्चित विद्या का जानकार पचवाँ रुद्र पुरुष (विचार का प्रारम्भ किया हो वह (गाया १,१८गुणवाला (सम ११४)
४७३)। ७ भगवान् सुपाश्र्वनाथ के पिता का पत्र २४.)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org