Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 989
________________ सुबंभण-सुमग्ग पाइस महणव सुभग पुं [सुब्राह्मण] प्रशस्त विप्र (पि सुभंकर न [ शुभंकर ] वरुण नामक लोकान्तिक २५०) देवों का विमान (राज)। देखो सुहंकर । सुबद्ध वि [सुबद्ध] अच्छी तरह बँधा हुया सुभग वि [सुभग] १ मानन्द जनक ( कप्प ) । (उ) 1 २ सौभाग्य युक्त, वल्लभ, जन-प्रिय (सुज्ज २० ) । ३ न. पद्म-विशेष ( सू २, ३, १८ राय ८२) । ४ कर्म विशेष (सम ६७ कम्म १, २६३ ५० धर्मंसं ६२ टी) सुभगा स्त्री [सुभगा ] १ लता - विशेष (पराग १--पत्र ३३) । २ सुरूप नामक भूतेन्द्र की एक पटरानी (ठा ४, १ – पत्र २०४ गाया २-पत्र २५३ इक) सुभग्ग वि [सुभाग्य ] नाग्यशाली, जिसका भाग्य अच्छा हो वह (उव ०३१ टी) सुभड देखो सुहड (नाट - - मालती १३८ ) । सुभणिय व [सुभणित] वचन-पुरा ( सुद्द [सुभद्र] ४ का एक राजा (परम २८, १३६) । २ दूसरे वासुदेव तथा बलदेव के धर्म-गुरु (सम १५३) । ३ न. एक देव-विमान (देवेन्द्र १४१ ) । ४ नगर - विशेष (उप १०३१ टी) । सुभद्दा श्री [सुभद्रा ] १ दूसरे बलदेव की माता (सम १५२ ) २ प्रथम श्री राम भरत चक्रकर्त्ती की अग्र महिषी (सम १५२ ) । ३ बलि नामक इन्द्र के सोम आदि चारों लोक । - पत्र पालों की एक-एक महियो का नाम (ठा ४, १ - - पत्र २०४ ) । ४ भूतानन्द आदि इन्द्रों के कालवाल नामक लोकपाल की एकएक श्रग्र-महिषी का नाम (ठा ४, १२०४) । ५ प्रतिमा विशेष, एक व्रत (ठा ४, १ - पत्र २०४) । ६ राम के भाई भरत की पत्नी (पउम २८, १३६) । ७ राजा कोरिएक की स्त्री (प) । ८ राजा श्रेणिक की एक स्त्री अंत २५) एक सती श्री (पडि १० एका विपा १, २ - २२) । विशेष जिससे यह ११ द्वीप कहलाता है (इक) । सुबल [सुबल] १ सोमवंश का एक राजा ( प ५, ११) २ पहले बलदेव का पूर्वजन्मीय नाम (पउम २०, १२० ) /सुबलिट्ठ वि [सुबलिष्ट ] श्रतिशय बलवान् (श्रु१८) वि सुबहु [ब] प्रतिप्रभूत ( वि सुबहु [सुत्र] ऊपर देखी (1 सुबाहु [सुबाहु ] १ एक राज कुमार ( दिपा २, १ - पत्र १०३) । २ स्त्री रुक्मिराज की एक कन्या (पाया १, - पत्र १४० ) IV -3 सुबुद्धि [सुदुद्धि] १ सुन्दर प्रज्ञा (था १४) २ . राम-भ्राता भरत के साथ लेनेवाला एक राजा ( पउम ८५, ३) । ३ एक मन्त्री (महा) 1 सुभवि [शुभ्र ] २ सफेद, श्वेत (सुपा ५०६ ) । २ न. एक प्रकार की चाँदी (राय ७५) । सुन्भ न [शौय ] सफेदी, श्वेतता (संबोध ५२) । | सुभि [ सुरभि ] १ सुगन्ध, खुशबू ( सम ४१, भग, गाया १, १२) । २ वि. सुगन्धी, सुगन्ध युक्त (उत्त ३६, २८ आाचा १, ६, २३) मनोहर, मनोज सुन्दर १, १२ - पत्र १७४) । सुम्पिन [सुभिक्ष] मुकाल (सुपा ३५८ ) ! सुभु स्त्री [ सुत्र ] नारी, महिला ( रंभा ) । सुभ पुं [शुभ ] १ भगवान् पार्श्वनाथ का प्रथम गणधर (ठा पत्र ४२६ सम १३ ) । २ भगवान् नमिनाथ का प्रथम गणधर (सम १५२ ) । ३ एक मुहूर्त (पउम १७, ८२ ) । ४ न. नाम कर्म का एक भेद (सम ६७; कम्म १, २६) । ५ मंगल, कल्याण । ६ वि. मंगल-जनक, मांगलिक, प्रशस्त (कप्पः भगः | कम्म १. ४२ : ४३) घोस पुं ['घोष ] भगवान् पार्श्वनाथ का द्वितीय गणधर (सम १३) धम्म [धुर्मन् ] राक्षसवंश का एक राजा (पउम ५, २६२ ) । देखो | सुह = शुभ 1 Jain Education International सुभा स्त्री [शुवा] १ वैरोचन बलीन्द्र की एक अप्र-महिषी (ठा ५. १ – पत्र ३०२ ) । २ ६१६ एक विजय-क्षेत्र (ठा २, ३ - पत्र ८० ) । ३ रावण की एक पत्नी ( पउम ७४, १ ) । सुभासि देखो सुहासि (उत २०, ५१; दस ६.१.१७) 1 सुधासिर वि[सुभाषित ] सुन्दर बोलनेवाला । स्त्री. (सुपा ५६८ ) । सुभिक्ख देखो सुभिक्ख ( उवः सार्धं ३६ ) | सुभिच्च [ सुभृत्य ] अच्छा नौकर (सुपा ४६५: हे ४, ३३४) 16 सुभम वि[सुभीम | प्रति भयंकर (सुर ७. २३३) । For Personal & Private Use Only [भीषण ] रावल का एक सुभट (पउम ५६, ३१) सुभूम पुं [सुभूम] १ भारतवर्ष में उत्पन्न आठवां चक्रवर्ती राजा (ठा २, ४–पत्र ६६) । २ भारतवर्ष के भावी दूसरा कुलकर पुरुष (सम १५३) । भगवान् अमरनाथ का प्रथम श्रावक ( विचार ३७८) । सुभूमण [सुभूषण] विभीषण का एक पुत्र ( पउम ६७, १६) । - सुभोगा श्री [ सुभोगा ] लोक में रहने वाली एक दिक्कुमारी देवी (ठा -पत्र ४३७; इक) सुभो न [सुभोजन] व्रत विशेष एकाशन उप संयोष १८) सुमन [सुम] पुष्प, फूल (सम्मत्त १६१) । ~ "मर पुं. [ "शर] कामदेव ( रंभा ) | सुबइ पुं [सुमति] १ पाँचवाँ जिन भगवान् ( सम ४३ ) । २ ऐरवत क्षेत्र में होनेवाला दसवाँ कुलकर पुरुष (सम १५३) । ३ एक जैन उपासक (महानि ४) । ४ वि. शुभ बुद्धि वाला (गउड) । ५ पुं. एक नैमित्तिक विद्वान् (सुर ११, १३२) । " [सुमङ्गल] ऐरक्त वर्ष में होने सुमय देखो सुभग ( भग १२, ६ – पत्र सुमंगला स्त्री [सुमङ्गला ] १ भगवान् ऋषभ५७८) 1 देव की एक पत्नी ( पउम ३, ११६) । २ सुभरिय वि [सुभृत] प्रच्छी तरह भरा हुआ, सूर्यवंशीय राजा विजयसागर की पत्नी ( पउम भरपूर, परिपूर्ण ( उव)। ५ २) । सुमंगल बाले प्रथम जिनदेव (सम १५४) । सुप्रग्ग पुं [ सुमार्ग ] प्रच्छा रास्ता (सुपा 330) Iv www.jainelibrary.org

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