Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 990
________________ ૨૩ पाइअसहमहण्णवो सुमण-सुर सुमण ।न [सुमनस ] १ पृष्प, फूल सुमराविय वि [स्मारित] याद कराया हुआ सुमुह पुं[सुमुख १ भगवान् नेमिनाथ के पास सुमणस (हे १, ३२; सुपा ८६)। २ पृ. (सुर १४, ४८, २४३)। दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवाला एक राज कुमार देव, सुर (सुपा ८६ ३३४)। ३ वि. सुन्दर समरिश देखो समर स्म । (अंत ३)।२ राक्षस-वंश का एक राजा, एक मनवाला, सजन (सुपा ३३४. पउम ३६, लंका-पति (पउम ५, २६१)। ३ न. छन्दसुमरिअ वि [स्मृत] याद किया हुआ (पान)। १३०० ७७. १७ रयण ३)। ४ हर्षवान्, विशेष (अजि २०) मानन्दित, सुखी (ठा ३,२-पत्र १३:)। सुमस्या स्त्री [सुनरुत् ] भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पानेवालो राजा सुमुही स्त्री [सुमुखी] छन्द-विशेष (पिंग)।५ पुन, एक देव-विमान (देवेन्द्र १३६) । भ६ पु सुमेघा स्त्री सुपेघा] ऊर्ध्व लोक में रहनेवाली श्रेणिक की एक पत्नी (अंत २५) । भद्र] १ भगवान महावीर के पास दीक्षा लेकर मुक्ति पाने वाला एक सुमहुर वि [सुमधुर] अति मधुर (विपा १, एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८---पत्र ४३७) गृहस्थ (अंत १८)। २ प्रार्य संभूतिविजय के ७ ... पत्र ७७) सुमेरु पुंसुमेरु] मेरु-पर्वत (पान; पउम एक शिष्य, एक जैन मुनि (कप)। सुमाणस वि [मुमानस] प्रशस्त मनवाला, | ७५, ३८)। सुमणमा स्त्री [सुमनस.] वल्ली-विशेष सजन (पउम १-२. २७)। सुमेहा देखो सुमेघा (इक)। (पराग १ --पत्र ३३)10 सुमाणुस — [सुमानुप] सजन, उत्तम मनुष्य सुमेहा स्त्री सुमेधा] सुन्दर बुद्धि (उप पृ सुमणा स्त्री सुमनस ] १ भगवान् चन्द्रप्रभ । (सुपा २५६)। की प्रथम शिष्या (सम १५२१६)। २ सुमालि सुमालिन्] एक राज-कुमार सुम्मत देखो सुण = श्रु भूतानन्द प्रााद इन्द्रों के एक-एक लोकपाल (पउम ६, २२.) । की एक-एक अग्न-महिषो का नाम (ठा ४, सुम्ह पुं. व. [सुम देश-विशेष (हे २, ७४)। सुमिण पुंन [स्वप्न] १ स्वप्न, सपना (हे १, १--पत्र २०४) ३ राजा श्रेणिक की एक ४६; कुमाः महा; पडि; सुर ३, ६१, ६७)। सुर पुं सुर १ देव, देवता (पएह १, ४पत्नी (अंत २५)। ४ एक जम्बू वृक्ष का २ स्वप्न के फल को बतलानेवाला शास्त्र पत्र ६८; कप्प, जी ३३; कुमा)। २ एक नाम ( इक)। ५ शक्र को पद्मा नामक (स्वप्न ४६ । पाढय वि [पाठक स्वप्न राजा का नाम (उप ७६५) + अण न इन्द्राणी की एक राजधानी (इक )। ६ के फल बतानेवाले शास्त्रों का जानकार [वन] नन्दन-वन (मे ६, ८६), "अरु मालती का फूल (स्वप्न ६१)। (णाया १, १-पत्र २०) । देखो सुविण । ["तरु] कल्प वृक्ष (नाट) । करडि पुं ["करटिन ऐरावरण हाथो (सुपा १७६). सुमित्त पुंसुमित्र] । भगवान् मुनिसुव्रतसुमणों देखो सुमण (उप पृ१८)। स्वामी का पिता-एक राजा (सम १५.)। कार (करिन् वही अर्थ (सुपा २६१) सुमणाहर वि [सुमनोहर ] अत्यन्त मनोहर २ द्वितीय चक्रवर्ती का पिता (सम १५२) । कुंभि पु[कुम्भिन्] वही (सुपा २०१) (उप पृ१८)। ३ चतुर्थ बलदेव के पूर्व जन्म का नाम (पउम कुभर पु[कुमार] भगवान् वासुपूज्य का सुमर सक [स्मृ] याद करना। सुमरइ (हे २०, १६.)। ४ छठवें बलदेव के धर्मगुरु -- ४, ७४) । भाव. सुमरिस्मास (पि ५२२) । शासन-यक्ष (पब २६) कुसुम न [ कुसुम] एक जैन मुनि (पउम २०, २०५) । ५ एक लवंग, लौंग (पि १४) कम. सुमरिजइ (हे ४, ४२६; पि ५३७) । गय पु [गज वणिक् का नाम (उप ७२८ टी)। ६ अच्छा इन्द्र-हस्ती, ऐरावण (पान; से २, २२)। वकृ. सुमरंत (सुर ६, ६४: मुपा ४०८ मित्रा 'सुमित्ताव जिरणवम्मो' (सुपा २३४)। "गिरि पु [गिरि] मेरु पर्वत (सुपा २; पउम ७८, ५६)। कवकृ. सुमरिज्जत (पउम ३१, ३५४ सरण) गिह देवो घर (उप ५, १८६% नाट--मालती ११०)। संक ७ भगवान् शान्तिनाथ को प्रथम भिक्षा देनेवाले एक गृहस्थ का नाम (सम १५१) । ७६८ टो) गुरु [गुरु] १ बृहस्पति सुमरिअ, सुमारजण (कुमा; काल)। हेकृ. (पान सुपा १७६)। २ नास्तिक मत का सुमरउ, सुमारत्तए (पि ४६५; ५७८)। सुमित्ता स्त्री सुमित्रा] लक्ष्मण को माता प्रवर्तक एक प्राचार्य (मोह १०१) गोव कृ. सुमरियव्य, सुमरेयव्य, सुमरणीअ और राजा दशरथ की एक पत्नी (पउम २५, पू[गोप] कीट-विशेष, इन्द्रगोप (णाया (सुपा ९५३,८२, २१५, अभि १२०) ४) तणय पुं[तनय] लक्ष्मण (से ४, १५; १४, ३२) । १, ६-पत्र १६०; पा) घर न [गृह] सुमर पुं[स्मर) कामदेव (नाट-चेत ८१)। सुमित्ति मामित्रि] सुमित्रा का पुत्र १ देव-मन्दिर (कुप्र ४) । २ देव-विमान सुमरण श्रीन [स्मरण] याद, स्मृति (कुमा; (सरण) चमू स्त्रो ['चमू] देव-सेना लक्ष्मण (पउम ४५, ३६)। हे ४, ४२६, वसु, प्रापः सुपा ७१,१५६ (सुपा ४५) चाव पु [चाप] इन्द्र३६७. ३:४)। स्त्री. णा (स ६७०% सुमुइय वि [सुमुदित प्रति-हर्षित (प्रौप)। धनुष (गा ५८५: ८०८ सुपा १२४) ।। सुपा २२०) सुमुखी देखो सुमुही (पिंग) जाल न [जाल] इन्द्रजाल (राज)णई मुमरा भक [स्मारय ] याद दिलाना । सुमुणि वि सुज्ञात] अच्छी तरह जाना स्त्री [नदा] गंगा नदी (पाप्र) गाह पु वकृ. मुमरावंत (कुप्र ५६) । । हुआ (सुपा २८२)। [नाथ] इन्द्र (गा ८६४; दे) + तरंगिणि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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