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पाइअग्नहमहण्णवो
सुपवित्त--सुबंभ
सुपवित्त वि [सुपवित्र अत्यन्त विशुद्ध (सुपा सुपेसल वि [सुपेल] अति मनोहर (उत्त देव (सम १५४)। ३ भारतवर्ष का भावी ३५४) । १२, १३)।
तीसरा कुलकर पुरुष (सम १५३)। ४ हरिसुपवित्तिय [सुपवित्रित] अत्यन्त पवित्र सुप्प अक [स्वप्] सोना । सुप्पइ (हे २, कान्त तथा हरिसह नामक इन्द्रों के एक-एक किया हुया (मुग ३)
लोकपाल का नाम (ठा ४,१--पत्र १९७; सुपच पं[सुपर्वन १ देव । २ न. सुन्दर सुप्प पुन [सूर्य] सूप छाज, सिरकी का बना इक) । ५ पुंन. एक देव-विमान (देवेन्द्र पर्व (कप्र ४२)
एक पात्र जिससे अन्न पदोरा जाता है (उबाः । १४१) कंन पु न] हरिकान्त तथा सुपसाइअ वि सुप्रसादित] अच्छी तरह
पराह १,१-पत्र)। णह विनख हरिसह नामक इन्द्रों के एक-एक लोकपाल प्रसन्न किया हुअा (रंभा)।
सुप के जो नख्वाला (गाया १, ८-~-पत्र का नाम (ठा ४, १--पत्र १९७)। मुपमिट वि [सुप्रसिद्ध अति विख्यात
१३३)। .. ही स्त्री [न या] रावण । सुष्मा स्त्री [सुप्रभा] १ तीसरे बलदेव को की बहिन का नाम (प्राकृ. ४२)
माता (सम १५२)। २ धरण प्रादि दक्षिणसुपस्स वि सुदर्श सुख से देखने योग्य (ठा सुप्पइट्ठ देखो सुपर; (राज)।'
श्रेणि के कई इन्द्रों के लोकगलों को एक४.३-पत्र २५३: ५.१-पत्र २६६) सुपदि देखो सुपाटय (राज)।
एक अग्रहियो का नाम (ठा ४, १-वत्र सुपह सुपथ] शुभ मार्ग (उबः सुपा
२०४) । ३ धनवाहन नामक विद्याधर-नरेश सुप्पण्या स्त्री सुप्रतिजा दक्षिण रुचक सुप्पाइन्ना
की पत्नी (पउम ५, १३८)। ४ भगवान् पर रहनेवाली एक दिक्कुमारी
अजितनाथ की दोक्षा-शिविका (विचार १२६%; मुपहाय न सुिप्रभात माङ्गलिक प्रातःकाल देवी (राज इक)।
सम १५१) सुप्पलिय न. शीतहारक वन-विशेष (भव० सुपावय वि [सुपापक] प्रतिशय पापी (उत्त
सुप्पभूय वि [सुप्रभूत] प्रति प्रचुर (पउम । वृ० पत्र ३६५, श्लो. ४०, ४६)। १२.१४)
५५, ३६) सुप्पंजल वि मुराञ्जल] अत्यन्त ऋजु- सुप्पसण । वि [सुप्रन] अत्यन्त प्रसादमुपानमुपा १ भारतवर्ष में उत्पन्न
सीधा (कप्पू) ।
सुप्पसन्न युक्त (नाट-मालती १६१ सातवें जिन भगवान् (मम ४३: कपः सुपा
सुप्पडिआणंद विसुप्रत्यानन्द उपकृत भवि)। २) । २ भगवान महावीर के पिता का भाई
पुरुष के किये हुए उपकार को माननेवाला (ठा 8--पत्र ४५५; विचार ४७८)। ३
सुष्पसार विसुभ्रसारित] सुख से पसारने (ठा ४,३-पत्र २४८)।। एक कुलकर पुरुष का नाम (सम १५०)।
योग्य (सुख २, २६) सुप्पडिआर न [सुप्रतिकार ] उपकार का ४ भारतवर्ष के भावी तीसरे जिनदेव (सम
सुप्पसारिय वि [सुप्रसारित) अच्छी तरह बदला, प्रत्युपकार (ठा ३, १-पत्र ११७)। १५:)। ५ऐरक्त क्षेत्र में उत्पन्न एक जिन
पसारा हुपा (प्रौप)। देव ( मम १५३!। ६ ऐरवत क्षेत्र में आगामि सुप्पडिबुद्ध देखो सुपडिबुद्ध (राज)।
सुप्पसिद्ध देखो सुपसिद्ध (सम १५१; पि उत्सपिंगो-काल में होनेवाले अठारहवें जिनदेव
सुप्पडिलग्ग व सुप्रतिलग्न] अच्छी तरह (मम १५४: पब ७)। ७ भारतवर्ष के भावी
लगा हुआ, अवलम्बित (सुपा ५६१)। सुप्पसृय वि[सुप्रसूत सम्यग् उत्पन्न (प्रौप)। दूसरे जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम सुप्पाणहाण न सुप्रांगधान] शुभ ध्यान सुप्पहूब (अप) देखो सुप्पभूय (भवि)। १५४ (ठा ३, --पत्र १२१)।
सुप्पाडोस पुं[दे] अच्छा पड़ोस (श्रा २७) । मुपामा ब्रो सुपा] एक जैन साध्वी (ठा सुप्पणिय देखो सुपणिहिय (पएह २,
सुप्पिय वि [सुप्रिय] अत्यन्त प्रिय (उत्त ११; ६-पत्र ४५७)
१--पत्र १०१)।सुपा सुपीत] अहोरात्र का पाचवा सुप्पन्न वि[सु.] सुन्दर बुद्धिबाला (सूम
|८ सुपा ४६५) । मुह (मम ५१)
सुप्पुरिस देखो सुपुरिस (रयण २४)। मुपुन्छ न सुपु. एक देव-विमान (सम सुप्पबुद्ध पुन [सुप्रतुद्ध] एक ग्रैदेयक-विमान | सुफणि बीन [सुफणि] जिसमें तक्र ादि २२)। (देवेन्द्र १३६, पत्र १९४) ।।
उबाला जाय ऐसा बटुवा आदि पात्र (सूप्र १, मुपु न सुपुण्ड एक देव-विमान (सम सुप्पबुद्धा स्त्री प्रबुद्धा] दक्षिण रुचकपर २२):
रहनेवालो एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८-पत्र सुबंधु पुं[सन्धु] ? दूसरे बलदेव का सुपुष्क न सुपु प] एक देव-विमान (सम ४३६; इक)।
पूर्वजन्मीय नाम (सम १५३) । २ भारतवर्ष सुप्पभ सुप्रीवर्तमान अवसपिणी-काल | का भावी सातवाँ कुलकर (सम १५३) । मुपुरिस पुंसुदुरूप सज्जन, साधु पुरुष में उत्पन्न चतुर्थ बलदेव (सम ७१)। २ सुबंभ पुंन [सुब्रह्मन् ] एक देव-विमान (हे २, १८४; गउड; प्रामू)।
पागामी उत्सपिणी में होनेवाला चौथा बल- । (सम १९)।
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