Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 984
________________ ६१४ पाइअसहमहण्णवी सुचोइअ-सुणंदा सुचोइअ वि [सुबोदित] प्रेरित (उत्त १, सुज पुंसूर्य] सूरज, रवि । २ आक का देव (णाया १, १६-पत्र २१७)। ३ पेड़ । ३ दैत्य-विशेष (हे २, ६४; प्राप्र)। आर्यसुहस्ति आचार्य का शिष्य एक जैन महर्षि सुच वि गोच्य] अफसोस करने योग्य, ४ पुंन. एक देव-निमान (सम १५)। कंत (कप्प) 'मुच्चा ते जियलाए जिरावयणं जे नरा न पुंन ["कान्त एक देव-विमान (सम १५) सुट असुष्टु] १ अच्छा, शोभन सुन्दर पारगीत' धर्मवि १७)। झय पुंन । ध्वज] देव-विमान-विशेष सट (पाचा भगः स्वप्न २३, सुर २, मुचा देखो सुग- श्रु (सम १५) पम न [प्रभ] एक देव- १७८)। २ अतिशय, अत्यन्त (सुर ४, २४ सुपिक न सुजल्पित] प्राशीर्वाद (गाया विमान (सम १५) लेस पुंन ["लेल्य] प्रासू १३७)। एक देव-विमान (सम १५) । वण्ण पुन , सुठि देखो सुदिअ (पान) सुजड सुट] एक विद्याधर-नरेश (पउम [वर्ण] देव विमान विशेष (सम १५)। १०, २ः)। "सिंग पुन [ 7 एक देव-विमान (सम सुढ सक [स्मृ] याद करना। सुढइ (प्राकृ सुढ सकस्म याद करना। सुजम पुं[सुयरास.] १ एक जिनदेव का । १५) । 'सिट्ठ पुंन मृष] एक देव-विमान ! ६३)। नाम (उर १०.१ टी) । २ वि. यशस्वी (श्रा STATH 7 सुढि वि दि] १ श्रान्त, थका हुप्रा (दे ८, ब्राह्मण-कन्या ( महानि २)। लिव पूं ३६; गउड सुपा १७६ ५३०, सुर १०, सुजसा स्त्रोसिपशस१चौदहवें जिन- शिवा एक ब्राह्मण का नाम (महानि २) २१८) । २ संकुचित अंगाला (महा)। देव की माता (सम १५१)।२ एक राज- हास पुं[हाल तलवार की एक उत्तम सुण सक [२] सुनना। सुणइ, सुरणेइ (हे ४, पत्नी (लप ६८६ टो)। जाति (पउम ४३. 18) भि न [भ] ५८ २४१; महा)। सुणउ, सुणेउ, सुरगाउ सुजह दिसुहाना मुख से जिसका त्याग हो वैतात्य की उत्तम-श्रेशि में स्थित एक विद्याधर- (हे ३, १५८)। भवि. सुरिणस्सइ, मुरिणसके वह (उत्त, ६)। नगर (इक) वित्त पुंन [वित] एक देव- स्सामो सोच्छिइ, सोचियहि सोच्छ, सुजाइ विसुजाति] प्रशस्त जातिवाला, विमान (सम १५)। देखो सूर, सूरिअ = सोच्छिस्सं, सोच्छिमि, सोच्छिहिमि, सोच्छिजात्य (महा) सूर, सूर्य । स्सामि, सोच्छिहामि (पि ५३१; प्रौप; हे सुजाण वि [सुन] सयाना, अच्छा जानकार सुजाण वि[सुज्ञान] सुजान, सयाना, सुज्ञ ३, १७२)। कर्म. सुरिणजइ, सुबइ, मुखए, (सिरि :६१: प्रासू १३; सुपा ५८८)। (षड् ; पिंग)। सुम्मइ, सुरणीमइ (हे ४, २४२, कुमा; महा: सुजाय विमुजात] १ सुन्दर जाति में सानताहिंसा न लियोनराम: पि ५३६)। वकृ. सुणंत, सुणित, सुगमाण, उत्पन्नः कुलोन, खानदानी (उस ७२८ टो)। - एक देव-विमान (सम १५)। सुणेमाण (हेका १०५, सुर ११, ३७; पि २ अच्छो तरह उपन्न, सुन्दर रूप से उत्पन्न सुज्म अक [ शुध् ] शुद्ध होना । सुज्झइ ५६१; विपा १, १; सुर ३, ७६)। कवकृ. (ठा ४, २..- २०८ प्रौप; जीव ३, ४, सुम्मत, सुवंत, सुवमाण (सुर ११, उवा) । ३ न. सुन्दर जन्म (आव)। ४ पुं. . (महा) । संकृ. सुजिमग (सम्यक्त्वो ८)। १६६, ३, ११ से २, १०, ६, ४६) । संकृ. एक राज कुमार (विपा २, ३) ! ५ पुन. एक सुर सुज्झत वि [दृश्यमान] सूझता, दीख पड़ता, सुणिअ, सुणिऊण, सुणित्ता, सुणेत्ता, एक देव-विमान (देवेन्द्र २७२)। मालूम होता; 'अन्नंगि गं असुज्झतं । भुंजंत सोऊण, सोउआण, सोउआणं, सोउं, एण रत्ति' (पउम १०३, २५) सुजाया स्त्री [सुजाता] १ कालवाल आदि सोचा, सोचं, सुच्चा (अभि ११६; षड्; लोकपालों की पटरानियों के नाम (ठा ४, सुझगया स्त्री [सोधना] शुद्धि (उप ८:४)। हे ४,२४१; पि ५८२ हे ४, २३७, २, १-पत्र २०४; इक)। २ राजा श्रेणिक सुझय न [दे] : रौप्य, चाँदी। २ पुं. १४६; कुमाः हे २, १५; पि ११४० ३४६%; को एक पत्नी (अंत २५)। रजक, धोबी (दे ८, ५६) । ५८७) । हेकृ. सोउं (कुमा)। कृ. सुणेयव्यः सुजिट्र स्त्री सुम्येष्टा] एक महासती राज-सज्झरय देश रजक, धोबी (दे, ३६) सोअव्व (भगः परह १,१-पत्र ५ से २, दुमारो, जो रेटकराज को पुत्री थी (पडि)।सुज्झवण न [शोधन] शुद्धि, प्रक्षालन (उप । १०; गउड; अजि ३८)सुनुत्ति ब्रा नियुक्ति सुन्दर युक्ति (सुपा ६८५) ।... सुगः देखो सुगय ।। सुज्झाइवि [सुध्याचिन] शुभ ध्यान करने- सुगंद पुं[सुनन्द] १ एक राजर्षि (धम्म)। सुजेट्ठा देखा सुजिट्ठा (राज)। वाला (संवोध ५२) । २ भगवान् वासुपूज्य को प्रथम भिक्षा-दाता सुजासि. विसुजुष्ट] अच्छी तरह सेवित सम्झाइय विसिध्याना अच्छी तरह चिन्तित गृहस्थ (सम १५१)। ३ न. एक देव-विमान (सून, २, २, २६)।(राज)। (सम २६)। देखो सुनंद। सुज.स. वि [सुजोक्ति] सुष्ठु क्षपित, सुदिअ वि [सुस्थित] ? सम्या स्थित सुगंदा स्त्री [सुनन्दा] । भगवान् पार्श्वनाथ सम्यग् विनाशित (सूम १, २, २, २६)। (कप्प) । २ पु. लवण समुद्र का अधिष्ठायक को मुख्य श्राविका (कप्प)। २ तृतीय चक्रवर्ती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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