Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 982
________________ ११२ पाइअमदमहणवो सुदेर-सुक्कव ३, १२०: वि १८)। ३ रावण की एक सुकण्हा श्री [सुप्रष्णा] राजा श्रोणिक की सुक अक[शुपा सूखना। सुक्का (विसे पत्नी (पउम ७४,९)। ४ छन्द-विशेष एक पत्नी (अंत २५)। ३:३२, पव ७०), सुक्कंति (दे ८, १८ (पिग)। ५ मनोहरा, शोभनाः 'सुंदरी । सुकद देखो सुध (संक्षि ) टो) देवाणप्पिया गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्म- सुकम्माण वि [सुमन्] अच्छा कर्म करने-सुक वि [शुष्क] सूखा हुमा (हे २, ५, पएणत्ती' (उवा)। वाला (हे ३, ५६; षड्) णाया १, ६--पत्र ११४; उवा; पिंड २७६; सुंदर । न [सौन्दर्य] सुन्दरता, शरीर सुक्य न [सुकृत] ? पुण्य (पएह १, २- सुर ३, ६५, १०, २२३; धात्वा १५६) सुंदेरिम का मनोहरपन (प्रातः १.५७ पत्र २८पान)। २ उपकार (से १,४६)। सुक्क न [शुक्ल] १ चुंगी, वेचने को वस्तु पर कुमाः सुपा ४, ६२२ धम्म ११ टी) ३ वि. अच्छी तरह निर्मित ( राज ) लगता राज-कर (णाया १, १-पत्र ३७; जाणुअ. bणु, ज्णुअ वि [ज्ञ] सुकृत सुंब न [शुम्ब] १ तृण-विशेष (ठा ४, ४-- कुमाः श्रा १४; सम्मत्त १५६) । २ स्त्री-धन का जानकार, उपकार की कदर करनेवाला पत्र २७१, सुख १०, १)। २ तृण-विशेष विशेष । ३ वर पक्ष से कन्या पक्षवालों को (प्राकृ १८; उप ७६८ टी) की बनी हुई डोरो-रस्सी (विसे १५४) । लेने योग्य धन । ४ स्त्री को संभोग के लिए सुफयस्थ बि [सुतार्थ] अत्यन्त कृतकृत्य सुंभ [शुम्भ] १ एक गृहस्थ जो शुभा दिया जाता धन । ५ मूल्य (हे २, ११)। (प्रासू १५५) नामक इन्द्राणी का पूर्व-जन्म में पिता था देखो सुंक सु फर देखो सुगर (प्राचा १, ६, १, ८) (णाया २, २-पत्र २५१) । २ दानव सुक्क [शुक्र] १ ग्रह-विशेष (ठा २, ३सुकाल पु[सुकाल] राजा श्रेणिक का एक विशेष (पि ३६०; ३६७ ए)- वडेंसय न पत्र ७८ सम ३६ वज्जा १००)। २ न. पुत्र (निर १, १)। [वितंसक] शुम्भा देवी का एक भवन एक देव-विमान (सम ३३, देवेन्द्र '४३)। सुकाली स्त्री [सुकाली] राजा श्रीणिक की (णाया २, २) सरी स्त्री [श्री] शुम्भा ३ न. वीयं, शरीरस्थ धातु-विशेष (ठा ३, एक पत्नी (अंत २५)। देवी की पूर्व-जन्मीय माता (पाया २, २)। सुकि देखो सुकय (हे ४, ३२६; भवि)। ३-पत्र १४४, धर्मसं १८४; वजा १००)। सुंभा स्त्री शुम्भा] बलि नामक इन्द्र की एक मकिट विमच्छी । एक सुकिट्ट वि सुकृष्ट] अच्छी तरह जोता हुआ सुक पु[शुक्ल] १ वर्ण-विशेष, सफेद रंग। तरह जो पटरानी (पाया २, २-पत्र २५१) (पउम ३, ४५)। २ सफेद वर्णमाला, श्वेत (हे २, १०६ सुंसुमा स्त्री [सुसुमा] धन सार्थवाह की कन्या सुकिट्टि [सुकृष्टि] एक देव-विमान (सम कुमा; सम २६)। ३ न. शुभ ध्यान-विशेष का नाम (णाया १, १८-पत्र २३५) । (औप)। ४ वि. जिसका संसार अधं पुलसुंसुमार पु[सुसुमार, शिशुमार] १ जल सुकिदि वि [सुकृतिन्] १ पुण्य-शाली । २ परावर्त काल से कम रह गया हो वह (पंचा चर प्राणी की एक जाति, सैंस, सोंस या सूसर सत्कर्म-कारी (रंभा)। १, २) उझाण, झाण न [ ध्यान (णाया १,४,पि ११७)। २ द्रह-विशेष (भत्त सुकिल) देखो सुक्क = शुक्ल (हे २,१०६; शुभ ध्यान-विशेष (सम ; सुपा ३७; अंत)। ६६)। ३ पर्वत-विशेष । ४ न. एक अरण्य सुकिल्लपि १३६)। 'पक्ख पुं पक्ष] १ जिसमें चन्द्र की कला (स ८६)। देखो सुसु-मार। सुकुमार । वि [सुकुमार] १ अति कोमल। क्रमशः बढ़ती है वह प्राधा महीना (सम सुकुमाल २ सुन्दर कुमार अवस्थावाला सुक देग्डो सुझ= शुक (सुपा २३४) पहा २६ कुमा) । २ हंस पक्षी । ३ काक, कौया। (महा; हे १, १७१; पि १२३; १६०)। स्त्री [प्रभा] भगवान् सुविधिनाथ की दीक्षा ४ बगला, बक पक्षी (हे २, १०६) शिविका (विचार १२६)। सुकुमालिअ वि [दे] सुघटित, सुन्दर बना पक्खिय वि [पाक्षिक] वह आत्मा जिसका हुआ (दे ८, ४०) संसार अधं पुद्गल-परावर्त से कम रह गया हो सुकइ ' [सुकवि अच्छा कवि (गा ५००; सुकुल पुंन [सुकुल] उत्तम कुल (भवि) (ठा २, २-पत्र ५६)। लस देखो °लेस ६००; महा) (भग), "लेला देखो "लेस्सा (सम ११ सुकंठ वि [सुकण्ठ] १ सुन्दर कराठवला। सुकुसुम न [सुकुसुम] १ सुन्दर फूल । २ २ पुं. एक वणिक-पुत्र (श्रा १६) एक । वि. सुन्दर फूलवाला (हे १, १७७; कुमा) ठा१-पत्र २८)J "लेस्स वि [लश्या] चोर-सेनापति (महा)। सुकुसुमिय वि [सुकुसुमित जिसको अच्छी शुक्ल लेश्यावाला (पएण १५-पत्र ५११) शु लेस्सा स्त्री [°लेश्या] आत्मा का अध्यवसुकच्छ पु [सुकच्छ] विजय-क्षेत्र-विशेष । तरह फूल आया हो वह (सुपा ५६८)। (ठा २, ३--पत्र ८८; इक) + कूड पुन साय-विशेष, शुभतम प्रात्म-परिणाम (पग्रह सकोसल पुं [सुशोशल] १ ऐरवत-वर्ष के [कूट] शिखर-विशेष (इक; राज) २, ४-पत्र १३०)। एक भावी जिनदेव (सम १५४; पब ७)। सुक्कड। देखो 'सुकय (सम १२५; पउम सुकड देखो सु.य (चउ ५८)। २ एक जैन मुनि (पउम २२, ३६) सुक्या १५, १००)। सुकण्ह पु [सुष्म] एक राज-पुत्र (निर सुकोसला स्त्री [सुकोशला] एक राज-कन्या सुकव सक [शोषय ] सुखाना। वकृ. १, १; पि ५२) । (उप १०३१ टी) सुक्कवेमाण (णाया १, ६--पत्र १:४)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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