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सुअरिअ - सुंदरी
पाइअसरमणको
सुअरिअन [सुचरित] सदाचार, सद्वर्तन सुइल देखो सुक्क = शुक्ल (हे २, १०६) । (अभि २५३) । वि [ श्वस्तन ] श्रागामी कल से संबन्ध रनेवाला कल होनेवाला (२४१) सुई स्त्री [] बुद्धि, मति (८,३६) । सुई स्त्री [शुकी] शुक पक्षी की मादा, मैना (सुपा ३६०) । -
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सुनुवार [सुधर] प्रतिशय संयम में रहनेवाला सुसंयमी ( सू २, १३.७) । उज्जयार वि[सुऋजुचार ] श्रतिशय सरल आचरणवाला (सूत्र १, १३, सुउमार ) देखो सुकुमाल ( स्वप्न ६० सुउमाल कुमा ) 1
अलंकिय[स्कृत]] [[बच्छी तरह विभूषित खाना १, १११) । [सुआ श्री [सुता] पुत्री लड़की (गा ३०२ ८६३ (कुमा) 1
सुआ (शौ ) प्रक [शी] शयन करना, सोना । सुनादि ( प्राकृ ९४ ) IV
सुआ श्री [] यज्ञ का उपकरण विशेष घी श्रादि डालने की कड़छी या कलछी ( उत्त १२, ४३, ४४ ) 1आइक्य वि[स्वाख्येय ] सुख से - अनायास से कहने योग्य (ठा ५, पत्र २६६ ) ।
आउत वि[स्वायुक्त ] अच्छी तरह ख्याल रखनेवाला ( उव) ।
सुइ [ शुचि ] १ पवित्रता, निर्मलता; विषम्म मुखियो य वच्ख दोति सुइरहिया' (सुपा १६६ ) । २ वि श्वेत, सफेद (कुमा) । ३ पवित्र, निर्मल (श्रौप कप्पः श्रा १२; महा; कुमा) । ४ स्त्री. शक्र की एक अग्र महिषी (इक) 1
sat [श्रुति] १ श्रवण, श्राकन, सुनना स्त्री (उत्त ३, १ वसु विसे १२५ ) । २ कर्ण, कान (गा ६४१; सुर ११, १७४ सम्मत्त ८४ सुपा ४६६ २४७) । ३ वेद-शास्त्र (पात्र ४. कुमा) ४ शान विद्वान् (वा ७; प्रासू ४६) । - सुइ स्त्री [स्मृति] स्मरण (विपा १, २ - पत्र ३४) । -
सुइअ देखो सृइअ = सूचिक (दे १, ६९ ) 1सुइण देसी सुमिण (गुर १२ उप ७२६ टी; हे ४, ४३४ ) । V सुइदि स्त्री [सुति] १ पुण्य । २ मङ्गल, कल्याण । ३ सत्-कर्म (प्राः पि २०४ ) 1 सुइयाणिया स्त्री [दे. सृतिकारिणी] सूतिकर्म करनेवाली स्त्री (सुपा ५७८) १ सुइरन [सुचिर] अन्त दीर्घ काल, बहु काला ११७४११२७ महा) -
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सुर [पुरुष] सज्जन, भला प्रादमी (मात्र हे १, कुमा) । सुए अ [ श्वस] श्रागामी कल ( स ३६ वै ४१ ) 1
सुंक न [शुल्क ] १ मूल्य ( खाया १, ८-पत्र १३१६ विपा १, ६-- पत्र ३) । २ चुंगी, विक्रेय वस्तु पर लगता राज-कर (धम्म १२ टी सुपा ४४७) । ३ वर पक्ष के पास से कन्या पक्षवालों को लेने योग्य घन ( विपा १, ११४) ठाण न ["स्थान ] पुंगी पर (धम्म १२ टी पालय वि [*पालक] बुंदी पर नियुक्त राजगुरु (सुपा ४४७) । देखो सुक्क = शुल्क |
काणि ' [ ] नाव का डांड़ खेनेवाला व्यक्ति, पतवार चलानेवाला (सिरि ३८५) । सुंकार पु [ सूत्कार ] अव्यक्त शब्द- विशेष (सुर २, ८ गउड ) ।
सुंकिअ वि [शौक्लिक] शुल्क लेनेवाला, चुंगी पर नियुक्त पुरुष (उप पृ १२० ) सुख देखो सुक्ख = शुष्क (संक्षि १६ ) 1 संग देखक शुल्क (हे २०११ कुमा) गायण [शौङ्कायन] गोत्र विशेष (मुज्ज १०, १६)
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६११
सुंब स [दे] सूँघना । वकृ. सुंघंत (सिरि ६२२ ) 1 सुधिअवि [] घ्रात सुँघा हुप्रा (दे८, (३७)
सुंचल न [दे] काला नमक, 'सुंठिसुचलाईयं' (कुत्र ४१४) -
सुंठ न [] प वनस्पति-विशेष (पा १-पत्र ३३) ।
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सुंठय पुंन [शुण्ठक] भाजन-विशेष, 'मीरासु य सुंठएसु य कंड्नु य पयंडएसु य पर्यंत' (सूमनि ७६ ) 1 सुंठी श्री [गुण्डी] अँड या सोंड (पमा १४ कुप्र ४१४ पंचा ५, ३० ) 1४
सुंड वि [शौण्ड ] १ मत्त, मद्यप दारू पीनेवाला ( हे १, १६० प्राकृ १०६ संक्षि ६ ) । २ दक्ष, कुशल (कुमा) । देखो सोंड | V सुंडा देखो सोंडा ( श्राचा २, १, ३, २० श्रावम) 1
सुंकअ । पुंन [दे] किशारु, धान्य श्रादि का सुंडीर देखो सोंडीर (भवि ) । सुंकल अग्र भाग (दे ८ ३८ ) । लिन [दे] पत्र ३३) ।
विशेष (१-
सुकविय वि [शुक्लित] जिसकी चुगी दी गई हो वह (सुपा ४४७ ) |
सुंडिअ पुं [ शोण्डिक] कलवार, दारू बेचनेवाला (प्राकृ १०; संक्षि ६) सुंडिआ स्त्री [शौण्डिका ] मदिरापान में ५२,३६) डिकदेखी सुंडिज ( ६, ७) I डिकिणी श्री [सीण्डिकी] कलवार की की (प्रयो १०९) IV
सुंद[सुन्द] राजा रावण का एक भागनेय, खरदूषण का पुत्र ( पउम ४३,१८) | सुंदर वि [सुन्दर ] १ मनोहर, चार, शोभन
( परह १, ४, सुपा १२८; २६५; कप्पूः कात्र ४०८) २. एक सेठ का नाम (सुपा १४३) ३ तेरहवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (सम १५१ ) । ४ न. तप-विशेष, तेला, तीन दिनों का लगातार उपवास (संबोध ५०) बाहु [वाह] सातवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (राम १४१) सुंदरिअ देखो सुंदर (हे २, १०७ ) 1 सुंदरम पुंस्त्री. देखो सुंदर (कु २२१) | सुंदरी श्री [सुदरी] उत्तम श्री (प्रा५७ वि १८ ) । २ भगवान् ऋषभदेव की एक पुत्री (ठा ५ २ – पत्र ३२६ सम ९०; पउम
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