Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 979
________________ सीस-सीह पाइअसहमहङ्ग्णवो सीस सक [शिप्] १ वध करना, हिंसा सीह पु[सिंह] १ श्वापद जन्तु-विशेष, केसरी, ३-पत्र ४५), 'निकीलिय, निक्कीलिय करना। २ शेष करना, बाकी रखना । ३ मृग-राज (पराह १,१-पत्र ७ प्रासू ५१ देखोणि कोलिय (पव २७१; अंत २८ विशेष करना । सीसइ (हे ४, २३६ षड्) १७१)। २ वृक्ष-विशेष, सहिजने का पेड़ णाया १,८--पत्र १२२) निसाइ वि सीस सक [कथय ] कहना । सीसइ (हे (हे १, १४४ प्राप्र)। ३ राशि-विशेष, मेष [निषादन] सिंह की तरह बैठनेवाला ४, २; भवि)। से पाँचवीं राशि (विचार १०६)। ४ एक (सुज्ज १०, ८ टी)"णिसिज्जा स्त्री सीस न (सीस] धातु-विशेष, सीसा (दे २, अनुत्तर देवलोक-गामी जैन मुनि (अनु २)। [निषद्या] भरत चक्रवर्ती द्वारा प्रापद पर्वत २७)। ५ एक जैन मुनि, जो प्रायं-धर्म के शिष्य थे पर बनवाया हुप्रा जैन मन्दिर (ती ११) सीस देखो सिस्स = शिष्य (हे १, ४३ (कप्प)। ६ भगवान महावीर का शिष्य एक पुच्छ न [पुच्छ] पृष्ठ-वधं, पीठ की कुमाः दं ४७ गाया १,५–पत्र १०२) मुनि (भग १५-पत्र ६८५) । ७ एक चमड़ी (सूअनि ७७) । "पुच्छण न सीस पुन [शीर्ष] १ मस्तक, माय! (स्वप्न विद्याधर सामन्त राजा (पउम ८, १३२)। [पुच्छन] पुरुष चिह्न का तोड़ना, लिंग६० प्रासू ३)। २ स्तबक, गुच्छा (आवा एक श्रेष्ठि-पुत्र (सुप) ५०६)। एक प्रोटन (पएह २,५---पत्र १५१) पुच्छिय २, १, ८, ६)। ३ छन्द-विशेष (निंग) ।। देव-विमान (सम ३३; देवेन्द्र १४०)। १० वि [पुच्छित] १ जिसका पुरुष-चिह्न तोड़ "अ न [क] शिरस्त्राण (वेणी ११०)। एक जैन आचार्य, जो रेवतीनक्षत्र नामक दिया गया हो वह । २ जिसको कृकाटिका घडी स्त्री [घटी] सिर की हड्डी (तंदु आचार्य के शिष्य थे (दि ५१) । ११ छन्द- से लेकर पुत-प्रदेश-नितम्ब तक की चमड़ी ३८) । पकंपिअन [प्रकम्पित] संख्या विशेष (पिंग) °उर न [पुर] नगर-विशेष उखाड़ कर सिंह के पुच्छ के तुल्य की जाय विशेष, महालता को चौरासी लाख से गुनने (सण) कंत न [कान्त] एक देव- वह (प्रौप), 'पुरा, पुरी स्त्री [पुरी] पर जो संख्या लब्ध हो वह (इक) पहेलिअ विमान (सम ३३). "कडि पुं [कटि] नगरी-विशेष, विजय-क्षेत्र की एक राजधानी स्त्रीन [प्रहेलिक] संख्या-विशेष, शीपंप्रहे रावण का एक योद्धा (पउम ५६, २७). (ठा २, ३--पत्र ८०० इक), "मुह पुं लिकांग को चौरासी लाख से गुनने पर जो कण्ण पुं[कर्ण] एक अन्तर्वीप (इक) ["मुख] १ अन्तर्वीप-विशेष । २ उसमें संख्या लब्ध हो वह (इक)। स्त्री. "आ (ठा कण्णी स्त्री [कर्णी] कन्द-विशेष (उत्त रहनेवाली मनुष्य-जाति (ठा ४, २--पत्र २, ४-पत्र ८६, सम ६०; अणु ६६) ३६, १००)। केसर पुं ["केसर] १ २२६; इक)। रव पुं[व] सिंह-गर्जना, पहेलियंग न [प्रहेलिकाङ्ग] संख्या-विशेष, मास्तरण-विशेष, जटिल कम्बल (गाया १. सिह-नाद, सिंह की तरह आवाज (पउम ४४, चूलिका को सौरासी लाख से गुनने पर जो ; १-पत्र १३)। २ मोदक-विशेष (अंत ६; ३५) रह [रथ गन्धार देश के पुंड्र. संख्या लब्ध हो वह (ठा २, ४--पत्र ८६; पिंड ४८२) गइ पुं[गति] अमितगति वर्धन नगर का एक राजा (महा), वाह अणु ६६) "पूरग, पूरय पु पूरक] तथा अमितवाहन नामक इन्द्र का एक-एक पुं[वाह] विद्याधर-वंश का एक राजा मस्तक का प्राभरण (राज; तंदु ४१) लोकपाल (ठा ४, १-पत्र १९८) "गिरि (पउम ५, ४३) वाहण पुं[वाहन] रूपक, रूअ (अप) । पुन रूपक] पुं[गिरि] एक प्रसिद्ध जैन महर्षि (उव; राक्षस-वंश का एक राजा (पउम ५, २६३)। छन्द-विशेष (पिंग)। विढ पु[वेष्ट] उप १४२ टी पडि), गुहा स्त्री [गुहा] वाहणा स्त्री [वाहना] अम्बिका देवी गोले चमड़े आदि से मस्तक को लपेटना एक चोर-पल्ली (णाया १,१८--पत्र २३६) (राज)। विक्कमगइ पू["विक्रमगति] (सम ५०)। चूड पु [चूड] विद्याधर-वंश का एक अमितगति तथा अमितवाहन नामक इन्द्र का सीस देखो सास = शास् । राजा (पउम ५,४६), °जस [यशस] एक-एक लोकपाल (ठा ४, १-पत्र १९८ सीसक न [दे. शीर्षक] शिरस्त्राण, मस्तक भरत चक्रवर्ती का एक पौत्र (पउम ५, ३)। इक) को पुन [°वीत एक देव-विमान का कवच (दे ८, ३४; से १५, ३०) °णाय पुं[नाद] सिंहगर्जन, सिंह की (सम ३३)। सेण पुं["सेन] चौदहवें सीसम पुन [दे] सीसम का गाछ, शिशपा गर्जना के तुल्य आवाज (भग), "णिकीलिय जिनदेव का पिता, एक राजा (सम १५१)। न [निक्रीडित] १ सिंह की गति । २ (उप १०३१ टी) २ भगवान् अजितनाथ का एक गणधर (सम तप-विशेष (अंत २८) "णिसाइ देखो १५२)। ३ राजा श्रेणिक का एक पुत्र सीसय वि [दे] प्रवर, श्रेष्ठ (दे ८, ३४) । "निसाइ (राज) 'दुवार न [द्वार] (अनु २)। ४ राजा महासेन का एक पुत्र सीसय न [सीसक] देखो सीस = सोस राज-द्वार, राज-प्रासाद का मुख्य दरवाजा (विपा १,६--पत्र ८६)। ५ ऐवत क्षेत्र (महा)। (कुप्र ११६) द्धय पु [ध्वज] १ में उत्पन्न एक जिनदेव (राज)। 'सोआ स्त्री सीसवा स्त्री [शिंशपा] सोसम का गाछ विद्याधरवंश का एक राजा (पउम ५, ४३)। [स्रं ता] एक नदी (ठा २, ३–पत्र ८०)। (पएण १-पत्र ३१) २ हरिषेण चक्रवर्ती के पिता का नाम (पउम वो इअ न [वलोकित] सिंहावलोकन, सीह देखो सिग्ध = शीघ्र (राज)। ८,१४४), नाय देखो गाय (पण्ह १, । सिंह की तरह चलते हुए पीछे की तरफ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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