Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 953
________________ सव्वंकस-सविढि पाइअसहमहण्णवो (पव १६४)। ६ एक नगर का नाम (विपा | (साधं ८०)। २ राजा कुमारपाल के समय ! १८१) णंद नन्द ऐरबत क्षेत्र के १, ५-पत्र ६१) ७ अच्युतेन्द्र का एक का एक सेठ (कुप्र १४३) इंसि देखो एक भावी जिन-देव (सम १५४)- णुभूइ पारियानिक विमान (ठा १०-- पत्र ५१८; दंसि (चेइय ३५) द्धा श्री [द्वा] पुं [नुभूति] १ भारत वर्ष में होनेवाले प्रौप) । ८ दृष्टिवाद का एक सूत्र (सम सब काल, अतीत आदि सर्व समय (भग) पांचवें जिन भगवान् (सम १५३)। २ भग१२८)। . यक्ष की एक जाति (राज)। धत्ता स्त्री धत्ता] व्यापक, सर्व-ग्राहक वान महावीर का एक शिष्य (भग १५---पत्र १० देव-विमान-विशेष (देवेन्द्र १३६; १४१) (विसे ३४६१)। न्नु देखो ज (मम १; ६७८) हा श्री [ारा विद्या-विशेष 'ओभद्दा स्त्री [ तोभद्रा] प्रतिमा-विशेष, प्रासू १७०; महा)। पग वि [त्मक] (पउम ७, १४४) व विप संपूर्ण एक व्रत (औप-ठा २, ३-पत्र ६४; अंत १ व्यापक । २ पुं. लोभ (सून १, १, २, । (भग) सा [शिन] प्राग्न. आग २६) 'कामस मिट्ठ पुकामसमृद्ध] १२) पभा स्त्री [प्रभा] उत्तर रुचक पक्ष का छठवा दिवस, षडी तिथि (सुज्ज पर्वत पर रहनेवाली एक दिपकुमारी देवी सव्वंकस वि (सर्व] १ सतिशायो, १०, १४)।कामा स्त्री [कामा विद्या- (राज), भक्ख वि [A] सबको खाने- सर्व से विशिष्ट (कप्पू)। २ न. पाप (आव) । विशेष, जिसको साधना से सर्व इच्छाएँ पूर्ण वाला, सर्व-भोजोः 'अरिगमिव सबभक्खे' सव्यंग वि [सर्वाङ्ग] १ संपूर्ण (ठा ४, २-- होती हैं (पउम ७, १०७) गय वि (णाया १, २--पत्र ७६). भद्दा स्त्री पत्र २०८)। सर्व-शरीर-व्यापो (राज) - [गत व्यापक (अच्चु १०) गा स्त्री [भद्रा] प्रतिज्ञा-विशेष, व्रत-विशेष (पव सुंदर वि ['सुन्दर] १ सर्व अगों में श्रेष्ठ । [गा] उत्तर रुचक पर्वत पर रहनेवाली २७१), "भावविउ पुं भावविद्]। २ पुंन. ता-विशेष (राजः पब २७१) । एक दिक्कुमारी देवी (ठा ८-पत्र ४३७)। आगामी काल में भारत वर्ष में होनेवाले सव्यगि वि सर्वाङ्गीण सर्व अवयवों 'गुत्त पुं [ गुन] एक जैन मुनि (पउम बाहरवें जिन-देव (सम १५३)। “य वि सव्वंगीण में व्याप्त (हे २, १५१, कुमाः २०, १६)। ज विज्ञ] १ सर्व पदार्थों ra] सब देनेवाला (पएह २, १-पत्र से १५, ५४); 'सबंगोणाभरणं पत्तेयं तेरण का जानकार । २ पुं. जिन भगवान् । ३ २६) या प्र[दा] हमेशा, सदा (रंभा) ताण कयं' (कुप्र २३५; धर्मवि १४६) बुद्धदेव । ४ महादेव । ५ परमेश्वर (हे २, रयण [ रत्न] १ एक महा-निधि (ठा | सव्वण देखो स-व्यण = स-व्रण । ८३ षड् ; प्राप्र)। पुं [ार्थ] १ ग्रहों- ६-पत्र ४४६)। २ पुंन. पर्वत-विशेष का सव्वराइअ वि [सार्वरात्रिक] संपूर्ण रात्रि रात्र का उनतीसवाँ मुहूत्तं (सुज्ज १२, १३)। एक शिखर (इक), रयणा स्त्री ["रत्ना] से सम्बन्ध रखनेवाला, सारी रात का (सूम २ न. सहस्रार देवलोक का एक विमान (सम ईशानेन्द्र की वसुमित्रा नामक इन्द्राणी की २, २, ५५; कप्प)। १०५) । ३ अनुत्तर देवलोक का सपर्थिसिद्ध- एक राजधानी (इक), रचणामय वि सव्वरी स्त्री [शर्वरी] रात्रि, रात (पाम गा नामक एक विमान (पव १६०) । ४ पुं. सब [रत्नमय] १ सब रत्नों का बना हुआ (पि अर्थ (प्राचा १, ८, ८, २५) । दृसिद्ध ७०; जीव ३, ४)। २ चक्रवर्ती का एक ६५३; सुपा ४६१)। पुंन [ार्थसिद्ध] १ अहोरात्र का निधि (उव ६८६ टी)। "विग्गहिअ वि सव्वल [दे. शर्वल] कुन्त, बी (राज उनतीसवाँ मुहूर्त (सम ५१) २ एक [विग्रहिक] सर्व-संक्षिप्त, सबसे छोटा (भग काल) । देखो सद्धल । सर्व-श्रेष्ठ देव-विमान, अनुत्तर देवलोक का १३, ४-पत्र ६६) - विरइ स्त्री सव्वला स्त्री [दे. शवला] कुशी, लोहे का पांचवा विमान (सम भग;अंतीप)। ३ पुं. विरति पाप-कर्म से सर्वथा निवत्ति. पां एक हथियार (६८, ६)। ऐरवत वर्ष में उत्पन्न होनेवाले छठवें जिनदेव संयम (विसे २६८४), संगय [ सङ्गन] सव्यवक्ख देखो स-व्यवेक्ख = स-व्यपेक्ष । (पव ७) सिद्धा स्त्री [ार्थसिद्धा] भग मृत्यु (पउम---पत्र० २१, पर्व ११०, सव्वाव देखो सव्य-गव = सर्वाप । वान् धर्मनाथजी को दोक्षा-शिविका (विचार गा० ४४) संजम पुं[संयम पूर्ण सव्वाव देखो स-व्याव = स-ध्याप । १२६) दृसिद्धि स्त्री [र्थिसिद्धि] एक संयम (राय) । सह वि [सह] सब सहन सव्वावंति प[दे] सर्व, सब, संपूर्ण, 'एयादेव विमान (देवेन्द्र १३७)। णु देखोज करनेवाला. पूर्ण सहिष्ण (पउम १४, ७६) वति सव्वावंति लोगंसि' (प्राचा), 'सवाति (हे १, ५६; षड् ; पोप)। त्त देखो त्य 'सिद्धा स्त्री [सद्ध] पक्ष की चौथी, च णं तीसे एं पुक्खरिणीए' (सूम २, १,५), (समु १५०), तो देखो 'ओ ( पाथ नववीं और चौदहवीं रात्रि-तिथि (सुज्ज १०, 'सब्वाति च णं लोगंसि' (सूम २, ३,१), अ [त्र सब स्थान में, सब में (गउड प्रासू १५)। सो अ[शस 1 सब ओर से, 'सव्वं ति सव्वावंति फुसमाएकालसमयंसि ३६६८), "दस, दारांस वि दशिन् सब प्रकार से (उत्त १, ४ प्राचा)। "स्स जावतियं खेत्तं फुसई (भग १, ६-पत्र १ सब वस्तुओं को देखनेवाला। २ पुं. जिन न [स्व] सकल द्रव्य, सब धन (स ४५६; ७७) । भगवान, महंन (राजा भग; सम १, पडि)। अभि ४०: कप्पू) हा प्रथा] सब प्रकार सविडिढ स्त्री [सद्धि] संपूर्ण वैभव °देव ["दव] १ एक प्रसिद्ध जैन प्राचार्य । से, सब तरह से (गा ८९७: महा: प्रासू ३; (गाया १,८--पत्र १३१) । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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