Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 976
________________ င် कर न १२ एक देव विमान (देवेन्द्र छन्द - विशेष (पिग ) + शैलेशी अवस्था की प्राप्ति । २ मुक्ति-मागं ( सूमनि ११५) गइ स्त्री [गति] १ मुक्ति, मोक्ष । २ वि मुक्त, मुक्ति प्राप्त (राज)। ३ पुं. भारतवर्ष में अतीत उत्सपिशी काल में उत्पन्न चौदहवें जिन देव ( पर्व ७) तत्व [] काशी बनारस (हे ४, ४४२) । नंदा स्त्री [नन्दा] श्रानन्द-श्रावक की पत्नी (उवा) [["भूति] १ एक जैन महारूप्प बोटिक मत - दिगंबर जैन संप्रदाय का स्थापक एक मुनि (विसे २५५१) । रन्ति श्री [] फाल्गुन (गुजराती माघ मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि (सहि ७८ ये सेण ["सेन] ऐखत वर्ष में उत्पन्न एक ग्रहन (सम १५३ ) । सिवंकर पुं [शिवङ्कर ] पांचवे केशव का पिता (पउम २०, १८२) - भूइ पुं २ J १४३) । [° कर] १ १३ सिवक [शिवक] १ बढ़ा तैयार होने सिवय के पूर्व की एक अवस्था (विसे २३१६)। २ वेलन्धर नागराज का एक श्रावास पर्वत ( इक ) 1 सिवा की [शिवा] भगवान नेमिनाथजी की माता का नाम (सम १५१ ) । २ सौधर्मं देवलोक के इन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा ८ - पत्र ४१६६ गाया २ – पत्र २५३ ) । पर जिनदेव की प्रतिमुख्य साध्वी (पव ९ ) । ४ शृगाली, मादा सियार (अ) वज्जा ११८ ) । ५ पावती ( पाच ) 1सिवाणंदा देखो सित्र- नंदा (उवा) । सिवासि [शिवाशिन् ] भरतक्षेत्र में प्रतीत उत्सर्पिणी-काल में उत्पन्न बारहवें जिनदेव ( पव ७ ) 1. सिविग देखो सुमिंग (हे १, ४६ प्र रंभा कुमा; कप्पू) । सिविर न [शिविर ] कक्षावार सैन्य निवासस्थानी (कुमा) २ सैन्य सेना, लश्कर (सुपा ६) । Jain Education International पाइअसहयो सिन्व सक [ सांव्] सीना, साँधना सिव्ह (षड्, विसे १३६८ ) । भवि. सिव्वि सामि श्राचा १, ६, ३, १) सिव्व देखो सव= शिव (प्राकृ २६ संक्षि १०) 1 सिव्विपि [स्यून] शिया हुआ (६२) । सिठिवणी स्त्री [दे] सूची सूई (दे ८, } सिडी २६ ) 1 श्लिष् । सिसइ (षड् ) 1दही (दे ८, ३१ सिस देखो सिलेस सिसिर न [दे] दधि, पत्र २०८; सून १, ३, १, १ उप ६४८ टी: कुछ ५५६) यवन [य] - विशेष (पण १ - पत्र ३३) ५ बाल देखो पाल ( सू १, ३, १, १ टी सिस्स पुंत्री [ शिष्य ]१ चेला, छात्र, विद्यार्थी (गाया १, १ पत्र ६०० सूत्रनि १२०) श्री. रेखा "सिगी मागाया १, १४ - पत्र १८८ ) - सिस्स देखो सीस= शीर्ष (सत ५० ) - सिविया स्त्री [शिविका] सुखासन, पालकी, सिस्सिरिली स्त्री [दे] कन्द-विशेष (उत डोलो (पः श्रीपः महा) - TE) Iसिसिर [शिशिर ] १ ऋतु- विशेष माघ तथा फागुन का महिना (उप ७२८ टी हे ४, ३५७ ) । २ माघमा का लोकोत्तर (सुज्ज १०, १९) । ३ फागुन मास; 'सिसिरो , माही (पाप) ४ वि जड़ ठंडा, शीतल (पाच उप ७६८ टो) । ५ हलका ( उप ७६८ टी) । ६ न. हिम (उप ९८६ टी) किरण [ "किरण ] चन्द्रमा (धर्मवि ५) महीहर ["महीधर ] हिमालय पर्वत (उप ८६ टी) 1सिसिरली देखो सिसिरिली (राज) । सिसु पुंन [शिशु] बालक, बच्चा ( सुपा ५८८ सम्मत्त १२२); 'सा खाइ पायमेक् निणि मी पदमपरे (कुत्र १०३ ) । "आख [का] बाबा-काचैत ३७) नागपु[नाग] क्षुद्र कीटविशेष, अलस (उत्त ५, १०) ५ पाल [*पाल] एक प्रसिद्ध राजा (खाया १, १६ ३६, ६८ ) 1 सिह सक [ स्पृह ] इच्छा करना चाहना । सिहइ (हे ४, ३४ प्राकृ २३) । कृ. सिहणिज्ज (दे ८, ३१ टो) । For Personal & Private Use Only सिकंकर - सिहि सिंह ' [दे] भुजपरिसर्प की एक जाति ( सू २, ३, २५) । सिहंड [शिखण्ड] शिक्षा, पूल, पोटो पुं ( पाम: अभि १५१) । सिहंडइल पुं [दे] १ बालक, शिशु । २ दधिसर, दही की मलाई मजूर मोर दि ५४) सिहंडहिल ' [दे] बालक, बच्चा (षड् ) 1सिहंडि वि [शिखण्डिन् ] १ शिखा ( भत्त १०० प्रौप ) । २ पं. मयूर पक्षी, मोर (पा; उप ७२८ टी ) । ३ विष्णु (सुपा १४२ ) । सिहण देखो सिहिण ( रंभा ) । सिहर न [शिखर ] १ पर्वत के ऊपर का भाग, शृङ्ग (पाद्य; गउड सुर ४, ५६ से ६, २८) । २ अग्रभाग ( खाया १, ९) । ३ लगातार अठाईस दिनों के उपवास (संबोध [ग] शिखरों से सिद्ध २८) (से ९, १८) सिहरिकरम १ पहाड पर्वत ( पास गुपा ४६) २ वर्षपर पर्यंत विशेष (ठा २, ३ – पत्र ६६; सम १२; ४३ ) । ३ पुंन. कूट - विशेष (ठा २ ३ – पत्र ७० ) 1[पति] हिमालय पर्वत से ८, २) सिहरिणी । स्त्री [दे. शिखरिणी] मार्जिता सिहरिल्ला | खाद्य-विशेष, दही-चीनी मादि } से बनता एक तरह का मिष्ट खाद्य (दे १, १५४ ८, ३३; परह २, ५ पत्र १४८ पत्र ४ पभा ३३० कसः सण ) | सिहली सिहा स्त्री [शिखा ] १ चोटी, मस्तक पर के बालों का गुच्छा (पंचा १०, ३२; पव १५३ पात्र गाया १, ५ - पत्र १८ संबोध ३१ ) । २ अग्नि की ज्वाला (पाच कुमा गड) 1सिहाल वि [शिखावत् ] शिखावाला, शिखायुक्त (गउड) 1 सिहि पुं [शिखिन् ] १ अग्नि, आग (गा १३० पान सुपा ५१९ ) । २ मयूर, मोर ( पा हेका ४५ ; गा ५२; १७३ ) । ३ रावण का एक सुभट ( पउम ५६, ३० ) । ४ पर्वत । ५ ब्राह्मण । ६ मुर्गा ७ केतु www.jainelibrary.org

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