Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 975
________________ सिरीस--सिव पाइअसहमहष्णवो ९०५ पग्रहद की अधिष्ठात्री देवी (ठा २, ३- सिलाइच पु [शिलादित्य] वलभीपुर का सिलेन्छिय पुं [शिलैक्षिक] मत्स्य-विशेष पत्र ७२)। ५ उत्तर रुचक पर रहनेवाली एक प्रसिद्ध राजा (ती १५)। (जीव १ टी. पत्र ३६) एक दिक्कुमारी देवी (ठा-पत्र ४३७)। सिलागा देखो सलागा (सं ८४)। सिलेम्ह देखो सिलिम्ह (षड् )।६ देव प्रतिमा-विशेष (णाया १, १ टी-पत्र | सिलाघ (शौ) नीचे देखो । कृ. सिलाघणीअ सिलेस सकश्लिष] आलिङ्गन करना, ४३)। ७ भगवान् कुन्थुनाथ जी की माता (प्रयौ ६७) भेंटना सिलेसइ (हे ४, १६०)। का नाम (पब ११)। ८ एक श्रेष्ठि-कन्या | सिलाह सक [शाय] प्रशंसा करना। सिलेस कृ. सिलाहणिज (रयण १६) (कुप्र १५२)। ६ एक श्रेष्ठि-पत्नी (कुप्र श्लेष १ वज्रलेप आदि संवान २२)। १० देव, गुरु आदि के नाम के सिलाहा स्त्री [श्लाघा] प्रशंसा (मै ८८)। (सूनि '८५) । २ आलिङ्गन, भेंट (सुर १६, २५३)। ३ संसगं । ४ दाह (हे २, पूर्व में लगाया जाता आदर-सूचक शब्द सिलिंद पु[शिलन्द ] धान्य-विशेष (पव । १०६. षड्)। ५ एक शब्दालंकार (मुर (पब ७; कुमा; पि६८)। ११ वाणी। । १५६; संबोध ४३; था १८ दसनि ६, ८) १,३६ १६, २४३)। १२ वष-रचना। १३ धर्म आदि पुरुषार्थ । सिलिंध पुन शिलीन्ध्र] १ वृक्ष-विशेष, १४ प्रकार, भेद। १५ उपकरण, साधन । छत्रक वृक्ष, भूमिस्फोट वृक्ष (णाया १, १ सिलेस देखो सिलिम्ह (अनु ५) ।। १६ बुद्धि, मती। १७ अधिकार । १८ प्रभा, पत्र २५, ६-पत्र १६०; औपः कुमा)। सिलो पुंश्लोक १ कविता, पद्य, तेज। १६ कीति, यश। २० सिद्धि । २१ । २. पर्वत-विशेष (स २५२) निलय सिलोग काव्य (मुदा १९८; सुपा ५६४; वृद्धि । २२ विभूति । २३ लवंग, लौंग। पु[निलय] पर्वत-विशेष (स ४२४) । अजि ३, महा)। २ यश, कीर्ति (सूम १, २४ सरल वृक्ष । २५ बिल्व-वृक्ष । २६ सिलिंब १३, २२; हे २, १०६)। ३ कला-विशेष, दा शिशु, बच्चा (दे८, ३०%, पोषधि-विशेष । २७ कमल, पद्म (हे २, कवित्व, काव्य बनाने की कला (प्रौप)। सुर ११, २०६; सुपा ३४) १०४). देखो सिअ, सिरि, सी= श्री। सिलोच्चब देखो सिलुच्चय (पान; सुर १, ७, सिलिट्ठ वि [श्लिष्ट] १ मनोज्ञ, सुन्दर सिरीस देखो सिरिस (णाया १, ६-पत्र राज) 'अइक्कंतविसप्पमारणमउयसुकुमालकुम्मसंठिय१६०, औप; कुमा) सिलिट्ठचरणा' (पएह १, ४-पत्र ७६)। सिल्ल पु[दे] १ कुन्त, बरछा, शस्त्र-विशेष सिरीसिव ' [सरीसृप] सर्प, साँप (सूत्र २ संगत, सुयुक्त (औप)। ३ आलिङ्गित । (सुपा ३११, कुप्र २८ काल, सिरि ४०३)। १, ७, १५; पि ८१, १७७)। ४ संसष्ट । ५ श्लेषालंकार-युक्त (हे २,१०६ २ पोत-विशेष, एक प्रकार का जहाज (सिरि सिरों° देखो सिर = शिरस् । धरा (शौ) प्राप्र)। देखो हरा (पि ३४७) मणिपु[मणि] सिलिपइ देखो सिलिवइ (राज)। सिल्ला देखो सिला। रj [कार] शिलाप्रधानः अग्रणी, मुख्या 'प्रलससिरोमणी' सिलिम्ह पुत्री श्लेष्मन् ] श्लेष्मा, कफ वट, पत्थर गढ़नेवाला शिल्पी (ती १५)।(गा ६७०सुपा ३०१ प्रासू २७)। रुह (हे २, ५५, १०६; पि १३६)। देखो सिल्हग न [सिह लक] गन्ध-द्रव्य-विशेष पु[रुह] केश, बाल (पान) । 'विअणा सेम्ह। (राज)।स्त्री ["वेदना] सिर की पीड़ा (हे, सिलिया स्त्री शिलिका]१ चिरैता आदि सिल्हा स्त्री [दे] शीत, जाड़ा (से १२, ७)। १५६), वत्थि देखो सिर-बस्थि (राज) तृण, ओषधि-विशेष। २ पाषाण-विशेष, | सिव न शिव] १ मङ्गल, कल्याण। २ हरा स्त्री धरा ग्रीवा, गला, डोक (पाय; शन को तीक्षण करने का पाषाण (गाया १, | सुख (पाग्र कुमाः गउड) । ३ अहिंसा (परह णाया १, ३: स ८ अभि २२४)।-- १३–पत्र १०१) २, १-पत्र ६९)। ४ न. मुक्ति, मोक्ष सिल देखो सिला (कुमा)। °cपवाल न सिलिखिअ देखो सिलिट्ठ (कुमा ७, ३५)।- (पात्र; सम्मत्त ७६; सम १; कप्प; औप; [प्रवाल] विद्रुम (प्रौप)। सिलिवइ वि [श्लंपादन ] श्लीपद नामक पडि)। ५ वि. मङ्गल-युक्त, उपद्रव-रहित सिलंब देखो सिलिंब (पास)। रोगवाला, जिससे पैर फुला हुआ और कठिन (कप्प; प्रौपः सम१; पडि)। ६ पुं. महादेव सिलद पु[दे] उच्छ, गिरे हुए अन्न-कणों हो जाता है उस रोग से युक्त (प्राचा; बृह १) (णाया १, १-पत्र ३६% पापा कुमाः - का ग्रहण (दे८, ३०)। सिलीमुह पुं[शिल मुख] १ बाण, तीर सम्मत्त ७६)। ७ जिनदेव, तीर्थंकर, अर्हन सिला स्त्री [शिला] १ सिल, चट्टान, पत्थर । (पाम; सुर ६, १४)। २ रावण का एक (पउम १६, १२)। ८ एक राजषि, जिसने (पान. प्राधा कप्प; कुमा)। २ अोला (दस योद्धा (पउम ५६, ३६) भगवान महावीर के पास दीक्षा ली थी (ठा ८, ६) । जउ पुन [जतु] शिलाजित, सिलीस देखो सिलेस = श्लिष् । सिलीसइ ८--पत्र ४३०; भग ११, ६)।पाचवें पर्वतों से उत्पन्न होनेवाला द्रव्य-विशेष, जो (भवि) । सिलीसंति (सूम २, २,५५)। वासुदेव तथा बलदेव का पिता (सम.५२)। दवा के काम में आता है, शिला-रस (उप सिलञ्चय ( [शिलोच्चय] १ मेरु पर्वत १. देव-विशेष (रायः अणु)। ११ पौष ७२८ टी; धर्मवि १४१)। (सुज ५) । २ पर्वत, पाहाड़ (रंभा)। मास का लोकोत्तर नाम (सुज्ज १०, १६) ११४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010