Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 956
________________ ८८६ सहिआ देखो सही (महा सहिज्ज वि देखो सहाअ = सहायः 'हुति सहिया विहरे कुनिया सोयरा चेव' (सुदा ४२७ महाः कुप्र १२) + खो. 'ज्जी (सुपा १६ टि) सहिण देखो सह + श्लक्ष्ण (प्राचा २, ५, १, ७; स २६४० ३२९ ३३३ ) | सहि [ [ सहिष्णु ] सहन करने की सहिण्डु } श्रादतवाला (राज) पि ५६६ ) । स्त्री. री (गा ४७पि ५६६) । सही स्त्री [सखी] सहेली संगिनी (स्वप्न १४१३ कुमा) सहो देखो सहि । 'वाय पुं [वाद] मित्रतासूचक वचन ( सूत्र १, ६.२७) सहीण वि [ स्वाधीन ] स्वायत्त, स्व-वश ( पउम २५, १७ उवः दस ८, ६) । सहु वि [सह ] समर्थ, शक्तिमान् ( श्रोष ७७; श्रोघभा ६८ उबर १४२ व ४) । सहु (अप) देखो संघ (संति ३१) सहुँ (घर) ४१६ कुमा) । IM [स] साथ संग ( ४, सहेज देखी सहज (महा) सहेर ( ) [ शेखर ] षट्पद छन्द का एक भेद (पिंग). सहेल [सहेल] हेसायुक्त, अनायास होनेवाला, सरल, गुजराती में 'सहेलु" (प्रवि ११) । सहोअर वि [सहोदर ] १ तुल्य, सदृश ( से ६, ४) । २ पुं. सगा भाई (पान काल ) सहोअरी श्री [सहोदरी ] सगी बहिन (राज) । - सहोढ वि [ सहोड ] चोरी के माल से युक्त, स-मोष (पिंड ३८०६ गाया १, २पत्र ८६) । सहोदर देखो सहोर (मुपा २४० महा) । सहस वि[सहोपित ] एक-स्थान- वासी (१४) साअड्ढ सक [प] १ चाष करना, कृषि करना । २ खींचना । साग्रड्डइ (हे ४, १८७ वड् ) । Jain Education International वि सहिआ - साउज साअअ [2] लोचा हुआ (कुमा साक्ष तक [स्वादु सात्मी+] १ ७, ३१) स्वाद लेना, खाना । २ चाहता, अभिलाष करना। ३ स्वीकार करना. ग्रहण करना । ४ श्रासक्ति करना। ५ अनुमोदन करना । ६ उपभोग करना। साइज्जइ, साइज्जामो ( यात्रा कस कप्प - टी; भग १५ पत्र ६८०; श्रप), साइज्जेज्ज ( आचा २. १, ३. २ ) । भवि साइज्जिस्पामि ( श्राचा) 1 हे. साइज्जित्त (ग्रप) 1 • साइजन [स्वादन] धाि (२६८५) पाइजसम साजद (शी) देखो सागद ( अभि १०२ नाट- मृच्छ ४ प १८५) । साइ[िशाखिन] सोनेवाला शयन-कर्ता (सूत्र १, ४, १, २८ श्राचा; दस ४ २६ ) । साइवि [साहि] १ आदि सहित, उत्पत्तियुक्त (सम्म ६१ ) । २ न. संस्थान - विशेष, शरीर की श्राकृति विशेष जिल शरीर में नाभि से नीचे के अवयव पूर्ण और नाभि के ऊपर के प्रवयत्र होन हो ऐसी शरीराकृति (सम १४६: अणु) । ३ कर्म- विशेष, सादिसंस्थान की प्राप्ति का कारण-भूत कर्म (कम्म १, ४). साइन [साचि] १ सेमल का पेड़ - शाल्मली वृक्ष । २ संस्थान विशेष, देखो साइ - सादि का दूसरा और तीसरा अर्थ (जीव १ टीपत्र ४३ ) । साइी [स्पाति] नक्षत्र-विशेष (सम २९: कप्प ); 'ला साई तं च जलं पत्तविसेसेरा अंतरंग (प्रा २९) २. भारतवर्ष में होनेवाले एक जिनदेव का पूर्वजन्मोय नाम (सम १५४ ) । ३ एक जैन मुनि (दि ४२४ पर्यंत का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३ - पत्र ६६) ~1 (05 साइ पुं [ सा दिन ] घुड़सवार (उप ७२८ टी) । साइ पुंस्त्री [सात] १ श्रच्छी चीज के साथ खराब चीज का मिश्रण, उत्तम वस्तु के साथ हीन वस्तु की मिलावट ( सू २, २, ६५) । २ श्रविश्रम्भ, अविश्वास । ३ असत्य वचन, झूठ ( परह १, २ पत्र २६) । ४ सातिशय द्रव्य, अपेक्षाकृत अच्छी चीज ( राज ११४ ) | जोग पुं ["योग ] १ मोहनीय कर्म (सम ७) । २ अच्छी चीज से हीन चीज की मिलावट ( राय ११४) संजोग ["संप्रयोग ] वही अर्थ ( राय १४ ) ~ साइ पुत्री [] केसर, 'सालतले सारिठिया श्रचच चंडि ससाइपरमेहि' (दे ८ २२) For Personal & Private Use Only J । सागया श्री [स्वादन] उपभोग वा (ठा ३, ३ टी -पत्र १४७) सा[] साइजिअ वि [ स्वादित ] ( कप्प - टी) । २ उपभुक्त सम्बन्धी । स्त्री. *या (कण्य) - (२६) उपभुक्त साइम वि [स्वादिम] पान, सुपारी प्रादि मुखवास (ठा ४, २--पत्र २१६६ प्राचाः उवा श्रौपः सम २६ ) 1 साइप वि[सादिक ] धादिसाम ६ नव ३६ ) । साइय देखो सागय = स्वागत ( सुर ११, २१०) । - साइयन [दे] संस्कार (८२५) सायंकारवि [ दे ] स प्रत्यय, विश्वस्त (४२) । साइरेग वि [ सातिरेक] साधिक, सविशेष (सम २भग ) । साइसय वि [ सातिशय ] श्रतिशयवाला ( महा सुपा ३६७ ) । साई देखो सी (इक = साउ वि [स्त्रादु] स्वादवाला, मधुर ( पिंड १२८ उप ६७ से २, १८ कुमाः हे १५) । साउन वि[स्वायुफ] स्वादिष्ट भोजनाला मधुर भोजनवाला 'कुलाई जे धावइ साउगाई' ( सू १, ७, २३) । साउन [सायुज्य ] सहयोग, साहाय्य (मण्ड ६५) ।. www.jainelibrary.org

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