Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 957
________________ साउणिअ-साडिल्ल पाइअसहमहण्णवो ८८७ साउणि वि [शाकुनिक] १ पक्षि-घातक, | सागडिअ वि [शाकटिक] गाड़ीवान, गाड़ी सम्म ६५)। ३ आवाद-युक्त (भग ७, २पक्षियों के वध का काम करनेवाला (पएह चला कर निर्वाह करनेवाला (सुर १६, पत्र २६५; उप ७२८ टी)। पस्ति वि १,१२-पत्र २६ प्रणु १२६ टि: विपा २२३: स २६२, उत्त ५, १४; श्रा १२)। शिन] ज्ञानवाला (परण ३:-पत्र १, ८--पत्र २३)। २ शकुन-शान का सागय न स्वागत] १ शोभन आगमन, ७५६) । जानकार (सुपा २६७ कुप्र५)। ३ श्येन प्रशस्त प्रागमन (भग)। २ अतिथि-रात्कार, सागार वि सिागार] गृह-युक्त, गृहस्थ पक्षी द्वारा शिकार करनेवाला (अरण पादर, बह-मान (सुपा २५६)। ३ कुशल (पावम)। १२६ टि) (कुमा)। सामारि । विसागारिन्, 'रिक १ साउन देखो साउग (राज)। सागर पुंसाग] : समुद्र (पराह १. ३-- सागारिय। गृह का मालिक, आश्रय का साउथ विसायुष ] आयुवाला, प्राणी पत्र ४४; प्रासू १३४)। २ एक राज-पुत्र मालिक, साधु को स्थान देनेवाला गृहस्थ, (ठा २, १-- ३८)। (उप ६३७)। ३ राजा अन्धकवृष्णि का शय्यातर (पिंड ३१० पाचा २, २, ३,५; साउल वि [संकुल] व्याप्त, भरपुर (सुर | एक पुत्र (अंत ३) । ४ एक वरिण-व्यापारी सूत्र. ६, १६: प्रोघ १६६)। २ सूतक, (उप ६४८ टी)। ५ सातवें बलदेव तथा प्रसव पोर मरण की अशुद्धि, अशोच (सूप साउलय वि [साकुलत ] प्राकुलता युक्त, वासुदेव के पूर्व भव के धर्म-गुरु (सम १५३) । १.६, १६) । ३ गृहस्थ से युक्त; 'सागारिए व्याकुल, व्यग्र: 'इंदियसुहसाउलग्रो परिहिंडई ६ पुन. कूट-विशेष (इक)। ७ समय-परिमाण उवस्सए' (पाचा २, २, १.४, ५)। ४ न. सोवि संसार (पउम १०२, १६७)। विशेष, दश-कोटाकोटि-पल्यो म-परिमित काल मैथुन (पाचा १, ९, १, ६)। ५ वि. साउली स्त्री [दे) र वस्त्राञ्चल (गा २६६) । (नवः , जी ३६; पव २०५)। ८ एक शय्यातर गृहस्थ का, उपाश्रय के मालिक से २ बस्न, कपड़ा (गा ६०५)। देखो साहुली देव विमान (सम २)। कंत पुंन[कान्त] संबन्ध रखनेवाला; 'सागारियं पिंडं भुंजेमागे" सा उल्ल [६] अनुराग, प्रेम (हे ८, २४; एक देव-विमान ( सम २) चंद पुं ["चन्द्र] १ एक जैन प्राचार्य (काल)। २ सांगेय देखो साकेय = साकेत (णाया १, सारज देवो साइज्ज। साएज्जइ (भवि एक व्यक्तिवाचक नाम (उव; पडि: राज) -पत्र १३१: उप ७२८ टी)। 'चित्त पूंन चित्र] कूट-विशेष (इक)।- साड सक [शाटय , शातय.] सड़ाना, साएय न साकेत] अयोध्या नगरी (इक; दत्त पुं [दत्त १ एक जैन मुनि (सम विनाश करना । हेकृ. साडेत्तए (विपा १, सुपा ५५०; पि ६३)। पुर न [पुर] १५३)। २ तीसरे बलदेव का पूर्वजन्मीय ?-पत्र १६)।वही अर्थ (उप ७२८ टी)। पुरी स्त्री नाम (सम १५३) । ३ एक श्रेणि-पुत्र (महा)। साड पुं[शाट, शात] १ शाटन, विनाश [पुरी] वही (पउम ४, ४)। देखो ४ एक सार्थवाह का नाम (विपा १,७)। ५ (विसे ३.२१)। २ शाटक, उत्तरीय वस्त्र, साकेय। हरिषेण चक्रवर्ती का एक पुत्र (महा ४४)। चद्दर (पव ३८)। ३ वस्त्र, कपड़ा; एगसाडे साएया स्त्री [साकेता] अयोध्या नगरी "दत्ता स्त्री [ दत्ता], भगवान् धर्मनाथजी अदुवा अचेले' (प्राचा: सुपा ११) । (पउम २०, १. गाया १,८--पत्र १३१)।- की दीक्षा-शिविका (सम१५.)। २ भगवान् साडा पुन [शाटक वन, कपड़ा (सुपा सांतवण न [सान्तपन] व्रत-विशेष (प्रबो विमलनाथजी को दीक्षा-शिविका (विचार साडग १५३, राज)। १२६)। देव [देव ] हरिषेण चक्र- साङग न [शाटन, शातन] १ विशरण, साक देखो साग (दे ६, १३०)। वर्ती का एक पुत्र (महा) वूह पुं[व्यूह] विनाश (विसे ३३१६; स ११६)। २ छेदन साकेय न [साकेत] १ नगर-विशेष, सैन्य की रचना विशेष (महा)। देखो (सूअनि ७२)। अयोध्या (ती १:)। २ वि. गृहस्थ-संबन्धी। सायर = सागर । साडण स्त्री [शाटना, शातना] खण्ड-खण्ड ३ न. प्रत्याख्यान-विशेष (पव ४)। सागरित्र देखो सागारिय (पिंड ५६८ पव होकर गिराने का कारण, विनाश-कारण साकेय वि साङ्केत] १ संकेत का, संकेत- ११२) । + (विपा १, १-पत्र १६)। संबन्धी। २ न. प्रत्याख्यान का एक भेद सागरोवम पुन सागरोपम] समय-परिमारण साडि वि शाटित, शातित] सड़ाकर (पब ४)। विशेष, दस-कोटाकोटि-पल्योपम-परिमित काल गिराया हपा, विनाशित (सुर ५, ३, दे साग पुं[शा] १ वृक्ष-विशेष (पउम ४२, (ठा २, ४-पत्र ६० सम २,८.६.१ ७.८)।७; दे १, २७)। २ तक-सिद्ध बड़ा प्रादि ११, उवः पि ४४८)। साडिआ श्री [शाटिका] वस्त्र, कपड़ा (ोप; खाद्य; ‘सागो सो तक्कसिद्धं जं' (पव सागार वि [साकार] १ आकार-सहित, कप्प)। २५६)। ३ शाक, तरकारी (पि २:२; आकृतिवाला । २ विशेषांश को ग्रहण करने साडल्ल देखो साड = शाट नियसियग्राजाण३६४)। की शक्ति, विशेष-ग्रहण, ज्ञान (प्रौपः भग; मलिणसाडिल्लो' (सुपा ११)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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