Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 969
________________ सिंचाविअ-सिंह पाइअसहमहण्णवो ८९९ सिंचाविअ वि [सेचित] छिड़कवाया हुआ सिंदोलन [दे] खजूर, फल-विशेष (पान)। सिंबलि देखो संबलि = शाल्मलि (हे १, (उप १०३१ टी; स २८० ५४६)। सिंदोला स्त्री दे] खजरी, खजर का पेड १४६, ८, २३; पाप्रा सुर १४, ४३; पि सिंचि वि [सिक्त] सोचा हुआ, छिड़का (दे ८, २९)। १०६ संथा ८५; उत्त १६, ५२)। हुआ (कुमा)। सिंधव न सैन्धव १ सिंध देश का लवरण, सिंबलि स्त्री [शिम्बलि, शिम्बा] कलाय सिंज अक [शि ] प्रस्फुट पावाज करना। प्रादि की फली, छीमी, फलियाँ (भग १५__सेंधा नोन (गा ६७६; कुमा)। २ पुं. घोड़ा वकृ. सिंजंत (सुपा ५०; सण) । कृ. सिंजि पत्र ६८०, प्राचा २, १,१०, ३, दस ५, (हे १, १४६) अव्य (गा ३६२)। १,७३), थालग पुन [स्थालक] १ सिंजण न [शिञ्जन] १ अस्पष्ट शब्द, भूषण सिंधविया स्त्री [सैन्धविका] लिपि-विशेष । फली की थाली। २ फली का पाक (प्राचा को पावाज। २ वि. अस्प आवाज करने- (विसे ४६४ टी) २, १, १०, ३) । देखो संबलि । वाला (सुपा ४) । सिंधु स्त्री [सिन्धु] १ नदी-विशेष, सिन्धु सिबलिका स्त्री [सिम्बलि] टोकरी (जिनसिंजा स्त्री [शिआ] भूषण का शब्द (कप्पू नदी (धर्मवि ८३, ४--पत्र २६०, सम दताख्यान)। प्राप), २७)। २ नदीः 'सरिमा तरंगिणी निएण्या सिंबा स्त्री शिम्बार फली, छीमीः 'कोसी सिंजिणी स्त्री [शिञ्जिनी] धनुगुण, धनुष नई पावगा सिंधू (पान)। ३ सिन्धु नदी की समीय सिंबा' (पान) - की डोरी (गा ५४)। अधिष्ठायिका देवी (जं ४)। ४ पुं. समुद्र, सिंजाली मोटे नाक की प्रावाज (दे सिंजियन [शिञ्जित अव्यक्त आवाज (उप सागर (पामा कुप्र २२ सुपा १, २६४)। ८. २६) १०३१ टी; कप्पू)। ५ देश-विशेषः सिन्ध देश (मुद्रा २४२; भवि; सिंजिर वि [शिञ्जित] अस्फुट आवाज करने कुमा)। ६ द्वीप-विशेष । ७ पद्म-विशेष (जं सिंबीर न [दे] पलाल, घास (दे ८, २८)। वाला, 'सद्दालं सिजिरं करिणरं' (पान)। ४-पत्र २६०) णद न [ नद] नगर. सिंभ पुं[श्लेज्मन् ] श्लेष्मा, कफ (हे २, सिंझ पुंन [सिध्मन् कुष्ठ रोग-विशेष (भग विशेष (पउम ८, १६८)। णाह पु ७४, तंदु १४. महा) । ७,६-पत्र ३०७) ["नाथ] समुद्र (समु १५१), देवी स्त्री सिंभाल देखो सिंबलि = शाल्मलि (सुपा सिंड वि [दे] मोटित, मोड़ा हुअा (दे ८, [देवी] सिन्धु नदी की अधिष्ठायिका देवी ८४)। (उप ७२८ टो)। "देवीकूड पुं["देवीकूट] सिभि वि [श्लेषितन्] श्लेष-युक्त, श्लेष्मसिंढ [दे] मयूर, मोर (दे ८, २०)। क्षुद्र हिमवंत पर्वत का एक शिखर (जं ४- रोगी (सुपा ५७६) । सिंढा श्री [दे] नासिका-नाद, नाक को पत्र २६५). पवाय पुन [प्रपात] कुण्ड- सिंभिय वि [श्लैष्मिक] श्लेष्म-सम्बन्धी आवाज (दे८, २६) विशेष, जहाँ पर्वत से सिन्धु नदी गिरती है (तंदु १६; रणाया १,१-पत्र ५०; प्रौप: सिंदाण न [दे] विमान (उप १४२ टी) (ठा २,३-पत्र ७२) राय पु [राज] . पि २६७) । सिंदी स्त्री [दे खजूरी, खजूर का गाछ (दे ॥ राजा (मुद्रा २४२)4 वइ सिंह [सिंह], श्वापद पशु-विशेष, मुग८, २६; पानः प्रावम)। [पति] १ समुद्र, सागर (स २०२)। राज, केसरी (प्रासू १५४ १६६) । २ एक सिंदीर न [दे] नूपुर (दे ८, १०)। २ सिन्ध देश का राजा (कुमा) सोवीर राज-कुमार (उ7 ६८६ टो)। ३ एक राजा सिंदु स्त्री [] रज्जु, रस्सो (दे८,२८)। [सौवीर] सिन्धु नदी के समीप का देश (रयण २६)। ४ भगवान महावीर का एक सिंदुरय न [दे] १ रज्जु, रस्सी। २ राज्य विशेष (भग १३, ६; महा)। शिष्य, मुनि-विशेष (राज)। ५ व्रत-विशेष, (दे ८, ५४)। सिंधुर पु [सिन्धुर] हस्ती, हाथी (सुपा त्रिविधाहार को संलेखना-परित्याग (संबोध सिंदुवण पु [दे] अग्नि, आग (दे ८, ३२) । ५८), अलोअण (अप) न वलोकन सिंदुवार पु [सिन्दुवार] वृक्ष-विशेष, सिंप देखो सिंच । सिंपइ (हे ४, ६६)। सोना १ सिंह की तरह पीछे देवना। २ छन्दनिगु एडी, सम्हालु का गाछ (गउड कुमाः कर्म. सिप्पइ (हे ४, २५५) कवकृ. सिप्पंत विशष (पिग) उर नपु] उप १०१६; कुप्र ११७)। (कुमा ७, १०) , का एक प्राचीन नगर (भवि), कण्णी स्त्री सिंदूर न [दे] राज्य (दे ८, ३०)11 [कर्णी] बनस्पति-विशेष (पएण-पत्र सिंदूर न [सिन्दूर] १ सिंदूर, रक्त-वर्ण, र सिपिअ देखो सिंचिअ (कुमा) ३५), केसर पुं [केसर] एक प्रकार चूर्ण-विशेष (पउम २, ३८ गउड; महा)। सिंपुअवि [दे] पागल, भूत-गृहीत, भूताविष्ट का उत्तम मोदक-लड्डू (उप २१ १ टी) २ पुं. वृक्ष-विशेष (हे १, ८५; संक्षि ३)। , (दे ८, ३०)। दत्त [दत्त] १ व्यक्ति-वाचक नाम । सिंदूरिअ वि [सिन्दूरित सिन्दूर-युक्त किया सिंबल पुं [शाल्मल] सेमल का गाछ (रंभा २ वि. सिंह ने दिया हुअा (हे १, ६२)। हुआ (गा ३००) २०) ।। दुवार न [दूर] राज-द्वार (मोह १०३)।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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