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सारूविअ-सालूर
पाइअसदमद्दण्णवो साधु और गृहस्थ के बीच की अवस्थावाला सालंकी स्त्री [दे] सारिका, मैना (दे ८, २४) के करिणश-बाल का तीक्ष्ण अग्रभाग (राज जैन पुरुष (संबोध ३१; ५४ बृह १; वव सालंगणी स्त्री [दे] सीढ़ी, निःश्रेणी (दे, उवा) रक्खिआ स्त्री [रक्षिका धान २६; कुप्र १२०) ।
का रक्षण करनेवाली स्त्री, कलम-गोपी सारू विअ न [सारूप्य] समान रूपता (सूम सालंब वि [सालम्ब] अवलम्बन-युक, पाश्रय
(पान) + वाहण पुं [वाहन एक २, ३, २: २१)। युक्त (गउड राज)
सुप्रसिद्ध राजा (सम्मत्त १३७) । देखो मालसारेच्छ देखो सारिच्छ = सादृक्ष्य (गउड)। सालकल्याण g[शालकल्याण] वृक्ष-विशेष
वाहण सच्छिय पुं[साक्षिक मत्स्य (भग ८, ३ टी-पत्र ३६४) । देखो
की एक जाति (पराग १- पत्र ४७)। सारोहि वि संरोहिन] संरोहण-कर्ता (पि सारकल्लाण ।
"सित्थ पुं[सिस्थ] मत्स्य-विशेष (पारा
६३) सालकिआ स्त्री [दे] सारिका, मैना (षड् ) साल पुंसाल, शाल] १ ज्यौतिष्क महाग्रह
°सालि वि शालिन] शोभनेवाला (गउड
. विशेष (ठा २, ३--पत्र ७८)। २ वृक्ष
सालग न [दे] १ वृक्ष की बाहरी छाल मा विशेष, साखू का पेड़ (सम १५२: औपः
। (निचू १५) । २ लम्बी शाखा (प्राव १)। सालिआ स्त्री शालिका घर का कमरा, कुमा)।। वृक्ष, पेड़ । ४ किला, प्राकार | ३ रसः 'अंबसालगं वा अंबदालगं वा भोत्तए।
एण्हि सुवंति घरमज्झिमसालिग्रासु' (कप्पू) ।। (सुपा ४६७) । एक राजा; 'साल महासाल-! । वा पायए वा' (माचा २, ७, २, ७)।
__सालिआ देखो साडिआ (राज)। सालिभहो य' (पडि)। ६ पक्षि-विशेष (पएह । सलगय न [सारणक] कढ़ी के समान एक
। सालिणिआ। स्त्री [शालिनिका, 'नी] १ १, १ टी-पत्र १०)। ७ पुन, एक देव- तरह का खाद्य (भवि)।
सालिगी। शोभनेवालीः 'पीणसोरिणथविमान (सम ३५), कोट्ठ्य न कोष्टक सालभंजी देखो सालहंजी (धर्मवि १४७; सालिरिणयाहिं' (अजि २६)। २ छन्दचैत्य-विशेष (राज) - वाहण, ण कुमा) ।
विशेष (पिंग) । [वाहन] एक सुप्रसिद्ध राजा (विचार सालस वि [सालस] पालस्य-युक्त, अलसी ।
सालिभंजिया स्त्री [शालिभञ्जिका] पुतली ५३१, हे १, २११; प्रापः पि २४४० षड्; (गउड सुपा २५१) ।
(पउम १६, ३७) कुमा)।
| सालहजिया स्त्री [शालभजिका, साल देखो सार = सार (सुपा ३८४ णाया। सालहंजी जी] काठ
सालिय पुं [शालिक] तन्तुवाय, जुलाहा
आदि की: १,१६-पत्र १६६) इय वि ["चिता
(विसे २६०१)। बनाई हुई पुतली (सुपा ४३; ५४)।सार-युक्त (गाया १, १६)
सालहिआ। स्त्री [द] सारिका, मैना (पामः सालिय वि [शाल्मलिक] शाल्मलि वृक्ष का,
सालही । श्रा २८, दे ८, २४)।- सेमल के गाछ काः 'एग सालियापोंडं बद्धो साल न [शाला घर, गृहः 'मायामहमालंपि
'साला स्त्री [शाला] १ गृह, घर । २ भित्ति- आमेलगो होइ' (उत्तनि ३)। हु कालेणं सयलमुच्छन्नं' (सुपा ३८४)।
रहित घर (कुमाः उप ७२८ टो)। ३ छन्द- सालिस देखो सारिस = सदृश (गाया १, साल माल साला, बहू का भाई (मोह। विशेष (पिग) ।
-पत्र १३ ठा ४, ४-पत्र २६५; ८८; सिरि ६८८ भवि: नाट मृच्छ ३५) साला स्त्री[दा शाखा (दे८, २२; पएह १,
कप्प)साल पुं. देखो साला%3D (ये), 'जस्स सालस्स ३ पत्र ५४: दस ७, ३१ राय ८८)। सालिहीपिउ [शालिहीपित एक जैन भग्गस्स'; 'परित्तजीवे उसे साले (परण सालाइय देखो सलाग (राज)
गृहस्थ (उवा)। १-पत्र ३७ ठा -पत्र ४२६), मंत सालाणय वि [दे] १ स्तुत, जिसकी स्तुति
साली स्त्री [श्याली] पत्नी-भगिनी, भार्या को वि [वन् ] शाखावाला (णाया १, १ की गई हो वह । २ स्तुत्य, स्तुति-योग्य (दे
बहन (दे ६, १४८) टी-पत्र ४ औप)। ___८,२७)
सालू अ पुन [शालू क] जल-कन्द विशेष, साल देखो साला शाला। गिहघर न सायहण देखो साल-हण = शाल-बाहन - कमल कन्द (पाचा २, ५, ६, ३० दस, [गृह] १ भित्ति-रहित घर (निचू ८)। २
सालि पुंन [शाले] १ व्रीहि, धान, चावल बरामदावाला घर (राय)।
(सूम २,२,११ गा ५६६६६१, कुमा; सालअनदे] १ शम्बूक, शंख । सूखे यव सालक्ष्य देखो सारइय = शारदिक (णाया १, गउड) । २ वलयाकार वनस्पति-विशेष, वृक्ष
। प्रादि धान्य का अग्र भाग (दे ८, ५२) । १६ पत्र १९६)।
विशेष (पएण -पत्र ३४)M भद्द पुं सालूर खो [शालर] १ भेक, मेंढक (पान; सालंकायण न शालङ्कायन] १ कौशिक [भ] एक प्रसिद्ध धष्ठि-पुत्र, जिसने सुर , ७४; सुपग ६२; साधं १०६; सूक्त गोत्र का एक शाखा-गोत्र । २ पुंस्त्री. उस भगवान महावीर के पास दीक्षा ली थी (उवः । २ ।। स्त्री. री (गा ३६१)। २ न. छन्दगोत्रवाला (ठा ७-पत्र ३६०)।
पडि) भसेल, भसेल्ल पु[] घान विशेष (पिंग)।
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