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पाइअसहमहण्णवो
साव-सासण
साव सक [श्रावय ] सुनाना। सार्वति सावणा स्त्री [श्रावगा] सुनाना (कुप्र ६०) साविक्ख वि [सापेक्ष अपेक्षा-युक्त, अपेक्षा(प्रौप)। वकृ. सावंत, सावित, सावेत सावणी स्त्री स्वापनी] देखो सायणी (ठा वाला (श्रा & संबोध ४१) (प्रौप; राजा पउम १०, ५७) १०--पत्र ५१६) ।
साविगा देखो साविआ (ठा १:-पत्र साव पुं[शाप] १ सराप, आक्रोश (प्रौपः
सावतेन्ज , देखो सावएज्ज (णाया १, १-- ४६६ णाया १, २-पत्र ६०; महा) । कुमाः प्रति RE)। २ शपथ, सौगंध (प्राप्र;
सावतेय पत्र ३९; औपः सूत्र २, १, साविट्ठी स्त्री [श्राविष्ठी] १ श्रावण मास की हे १, २३१) ३६)।
पूर्णिमा । २ श्रावण की अमावस (सुज १०; साव पुं[शाव] बालक, बच्चा (समु १५६;
सावत्त देखो सावक (दे १, २५ भवि सिरि ६ इक)।
४६; कप्पू) प्राकृ८५)
| सावित्ती स्त्रो [सावित्री] ब्रह्मा को पत्नी साव पुं [स्वाप] स्वपन, शयन, सोना (विसे
सावस्थिगा स्त्री [श्रावस्तिका] एक जैन मुनि- (उप ५९७ टी कुप्र ४०३)। १७५५) शाखा (कप्प-पृ८१)।
साविह पुं [श्वाविध] श्वापद पशु-विशेष, साव (अप) देखो सव्व = सर्व (हे ४, ४२०)। सावत्थी स्त्री [श्रावस्ती] कुणाल देश की
साही (दे २, ५० ८, १५) प्राचीन राजधानी (णाया १,८-पत्र १४०%; सावइज देखो सावएज (कप्प)।
सावेक्ख देखो साविक्ख (पउम १००, ११
उवा) सावइत्त वि [श्रावयित] सुनानेवाला (सूप सावन (अप) देखो सामन्न = सामान्य
उप ८७०) २, २.७६)।
सास सक [शास] १ सजा करना। २ (भवि)
सीख देना । ३ हुकुम करना। भूका, सासित्था सावरज न [स्वापतेय] धन, द्रव्य (कप्प) सावय देखो सावग (भगः उवा; महा), 'एयं
(कुप्र १४) । कम. सासिजइ, सोसइ (नाटसावक न [सापत्न्य सपत्नीपन, सौतिनपन कहेहि सुंदर सवित्थरं सच्चसावो तुयं'
मृच्छ २००, कुप्र ३६६)। वकृ. सास, (कुप्र २५५) (पउम ५३, २६) ।
सासंत (उत्त १, ३७, प्रौपः पि ३९७)। सावक वि [सापत्न सौतेली माँ की संतान सावय पुं[श्वापद] शिकारी पशु, हिंसक
३.. सासणीअ (नाट -विक्र १०४)। कवकृ. (धर्मवि ४७)।जानवर (णाया १,१-पत्र ६५, गउड;
सासिज्जत (उप १४६ टी) सावक्का स्त्री [सपत्नी] सौतेली माँ, विमाता;
प्रासू १५४; महाः सण)।
सास सक [कथय ] कहना। सासइ गुजराती में 'सावकी', 'सावका सुयजणरणी सावय पुं[4] १ शरभ, श्वापद पशु-विशेष
(षड् ) । कर्म. सासइ (प्राकृ ७७)। पासत्था गहिय वायए लेह (धर्मवि ४७)। (दे ८, २३)। २ बालों की जड़ में होनेवाला
सास पुंश्वास १ साँस (गा १४१, १४७)। सावग पुन [श्रावक] १ जैन उपासक, अहंद्एक तरह का क्षुद्र कीट (जी १६)।
२ रोग-विशेष, श्वास-रोग (णाया १, १३भक्त गृहस्थ (ठा १०-पत्र ४६६; उवा; सावय [शावक] बालक, बच्चा, शिशु
पत्र १८१, उवाः विपा १,१) हरा स्त्री पाया १,२--पत्र०)। २ ब्राह्मण। ३ (नाट)
[ धरा] जीवन धारण करनेवाली (दश वृद्ध श्रावक (गाया १. १५-पत्र १९३; सावरी स्त्री [शावरी] विद्या-विशेष (सूम २,
वृ० हारि० पत्र ६४, २)। अरण २४); तो सागरचंदो कमलामेला २, २७)।
सास पुन [शस्य, सस्य १ क्षेत्र-गत धान्य य"गहियाणुव्वयाणि सावगाणि संवुत्ताणि' सावसेस विसावशेष] अवशिष्ट, बाकी
(पराह १, ४-पत्र ७२, स १३१); 'सासा (प्राक ३१)। ४ वि. सुननेवाला। ५ सुनाने| बचा हुअाः 'जावाऊ सावसेस' (उव)।
प्रकिटजाया' (पउम ३३, १४)। २ वृक्ष वाला (हे १. १७७)। धम्म पुं ["धर्म] सावहाण वि [सावधान] प्रवधान-युक्त, आदि का फल । ३ वि. वध-योग्य (हे १, प्राणातिपात-विरमण प्रादि बारह व्रत, जैन सचेत (नाटः रंभा) ।
४३)। देखो सस्स = शस्य ।। गृहस्थ का धर्म (णाया १,१४-पत्र १६१) साविअ वि [शापिन] १ जिसको शाप दिया सावज वि [सावद्य] पाप-युक्त, पापवाला गया हो वह । २ जिसको सौगंध दिया गया पुलगवइरिंदनीलसासगककेयणलोहियक्ख -' (भगः उव; मोघ ७६३; विसे ३४६६; सुर हो वह (गाया १,१--पत्र २६, भग १५
(कप्प) ४, ८२)। पत्र ६८२; स १२६) ।
सासग [सासक] वृक्ष-विशेष, बीयक नाम सावण न [श्रावण] १ सुनाना (उप ७२८ साविअ वि [श्रावित] सुनाया हुआ (भग का पेड़ (णाया १, १-पत्र २४) ।। टी सुपा २८८)। २. मास-विशेष, सावन १५-पत्र ६.२ गाया १,१--पत्र २६७ सासण न शासना१द्वादशांगी. बारह का महीना (पउम ६७,७; कप्प; हे ४, ३५७; पउम १०२, १५, ६६ सार्ध १८)। जैन अंग-ग्रन्थ, पागम, सिद्धान्त, शास्त्र; 'अणु३६६)। ३ वि. श्रवणेन्द्रिय-सम्बन्धी श्रावण- साविआ स्त्री [श्राविका] जैन गृहस्थ-धर्म सासरणमेव पक' (सूम १, २,१, ११ प्रणु प्रत्यक्ष का विषय, जो कान से सुना जाय वह पालनेवाली स्त्री (भगः पाया १,१६-पत्र ३८ सम्म १; विले ८६४)। २ प्रतिपादन (धर्मसं १२८१). २०४ कप्प; महा)
(णंदिउप ३७४)। ३ शिक्षा, सीख
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