Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 951
________________ सरी सहिह सरी की [दे] माला, हार (सुपा २३१) सरीर पुंन [शरीर ] देह, काय, तनु (सम ६७; उवा कुमाल जी १२); 'कइ णं भंते सरोरा पत्ता ( १२ ) नाम "नाम पुन नामन् ] कर्म-विशेष शरीर का कारण मृत कर्म (राजः समः ६७) | "पण [बन्धन] कर्म-विशेष (राम न ६७) संघायण न ['संघातन ] नाम कर्म का एक भेद (सम ६७ ) । सरोरि [ शरीरिन ] जीव धारमा प ११२ १७) । सरोव 1 [सरीसृप] १ सर्प, साँप (खा सरीसिव ११ सून १, २, २१४ ) । २ सर्प की तरह पेट से चलनेवाला प्राणी ( सम ६० ) । सख्य ( सरूर } देखो स-रूय = स्व-रूप । - सरुव देखो सरूव = सद्-रूप, स रूप । सरुवि[स्वरूपिन् ] जीव माती (ठा २. १-पत्र ३८ ) । सरेअव्व देखो सर = सृ, स्मृ । सरेक्य पुं [दे] १ हंस । प्रवाह मोरी (दे व ४०) २ वर का जल सरोअ न [सरोज] कमल, पद्म ( कुमा अऋतु ४२; सुपा ५६; २११३ कुप्र २६८) । सरोरुह न [सरोरुह ] ऊपर देखो (प्रा कुमा २०४) | सरोवर [ सरोवर] या पा २६०; महा) | सलभ देखो सलह् = शलभ (राज) । सलली स्त्री [दे] सेवा (दे ८. ३) । - सलह सक [श्लाघ] प्रशंसा करना । सलह (हे ४८८) कर्म सहिद (११२) । सहि (कुमा) देखो साइ सलह पुं [शलभ ] १ पतङ्ग (पाउड सुपा १४२ ) । २ एक वणिक्-पुत्र ( सुपा ६१७ ) 1 सलहण न [ श्लाघन] प्रशंसा, श्लाघा (गा ११४ पि १३२) । [] कुछ यादि का हाथा (दे ८, ११) 1 सर्लाहि बि [ श्लाघित] प्रशंसित (कुमा) । १११ Jain Education International पाइअसहमणवो सलहिज्ज देखो सल६ = श्लाघ् । सलाग न [शालाक्य] चिकित्सा शास्त्रश्रायुर्वेद का एक श्रृंग, जिसमें श्रवण श्रादि शरीर के ऊ भाग के सम्बन्ध में चिकित्सा का प्रतिपादन हो वह शास्त्र ( विपा १, ७— पत्र ७५) । सागा [] ) श्री } (सम १, सली, सलाई २, १० कपू)। सलाया २ पल्य-विशेष, एक प्रकार की नाप ( जीवस १३६६ कम्म ४, ७३३ (५) पुरिस [पुरुष]२४१२ वासुदेव । प्रतिवासुदेव तथा बलदेव ये ! ६३ महापुरुष (संबोध १२ ) । ह सलाह देखो सलह = श्वाघ् । सलाहइ ( प्राकृ २८) । वकृ. सलमाण (गा ३४६ सम्म १५९ ) । पञ्च, सलाहणिय, सलाहणीअ (प्राह २८ गाया ११६पत्र २०१; सुर ७, १७१, रयण ३५० पउम ८२, ७३;पि १३२) - सलाहण न [श्वन ] वाघा, प्रशंसा (गा ११४ उप पृ १०६ ) ~ सत्यहा श्री [लाचा ] पात्र १०१ यह 1सलाहिअ देखो सर्लाहि सलिल पुंन [सलिल ] २, (कुमा) 1 नी, जल; 'सलिला रण सदंति ण वंति वाया' (सुन १, १२, कुमादि [*निधि] सागर, समुद्र (से ६. ६) ५ °नाह ['नाथ ] वही (पउन ६, ६६) बिल न ['बिल ] भूमि-निर्भर, जमोन से बहता करना ( भग ७, ६ - पत्र ३०५ ) रासि [ राशि ] समुद्र (पान) । वाह [वाह मेघ (पउम ४२, ३४) हरपुं [र] वही (से, ε४) वई, ती स्त्री [ती] विजय क्षेत्र विशेष (राज गाया १, ८पत्र १२१) न [वर्त] वैताढ्य पर्वत पर उत्तर दिशा - स्थित एक विद्याधरनगर (इ) 1 一 सलिला श्री [सलिला]] महानदी बड़ी नदी ( सम १२२ ) । सलिच्छवि [सलिलोय ] प्लावित डुबोया टुमा (पाच) For Personal & Private Use Only ८८१ सलिस क [ स्वप् ] सोना, शयन करना । सलिल पड़ सलग देखो सलूग = स-लवण सलोग [श्लोक] खापा, प्रशंसा (सू १, १३, १२) । देखो सि सलोग देखो स-लोग = सलोक ॥ सोण को नग देखो = सल सलोय देखो लोगो १.६, २२) सह पुंन [राज्य] १ अत्र विशेष तोमर, साँग 'तम्रो सल्ला पण्णा' (ठा ३, ३--पत्र १८७) । २ शरोर हुआ कोटा, तीर आदि ( सू २२, पंचा १, १६ प्रात : २०)। ३ पारानुज्ञान, पापक्रियापार सूप १, १५, २४) । ४ पापानुष्ठान मे लानेवाला कर्म ( सू १, १५, २४० व १।। ५ पुं. भरत के साथ दीक्षा लेनेवाले एक राजा का ( पउम ८५, २) । ६ न. छन्द- विशेष (पिंग) गवि [] शल्यवाला, यदि शल्य शूल से पीडित ( परह २, ५ - पत्र १५०) ग [ग] परिज्ञान, जानकारी ( सू २२, ५७) 1 सह श्री [] हाथ से चलनेवाली जन्तु की एक जाति (सू २, ३, २५) सल्लइय वि[ल्यकित ] शल्य-युक्त, जिसको शल्य पैदा हुआ हो वह (गाया १, ७- पत्र ११६) । सलई बी [ सल्लको ] वृक्ष-विशेष (गाया १, ७ टी- पत्र ११६६ उप १०३१ टी. कुमा; धर्मवि १३०६ सुपा २६१) । सलग देखो सल्लाग= शल्य-क, शल्य-ग सलग देखो स-हग = सत्-लग | सहहत्त पुंन [शाल्यहत्य ] आयुर्वेद का एक अंग, जिसमें शल्य निकालने वा प्रतिपादन किया गया हो वह शास्त्र ( विपा १, ७७५)। सल्ला बी [शल्या ] एक महौषधि ती ५) । सहिल वि [शल्यित ] शल्य- पीडित ( गुर १२, १५२; सुपा २२७ महाः भवि) 1 सहिह देखो संलि से+लि (धारा ३५) । सहिदि = www.jainelibrary.org

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