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सयालु-सरभ पाइअसहमहण्णवो
८७६ अठारहवें जिनदेव का पूर्वजन्मीय नाम (पव धनुष (सूध १, ४, २, १३ सण पुन सरग देखो सरय = शरक (णाया १,१८४६) सम १५४) । देखो भयालि
[सन] धनुष (विपा १, २–पत्र २४; पत्र २४१) । सयाल वि [शयाल] सोने की आदतवाला,
पापः प्रौप)। "सणपट्टी, सणवट्टिया सरग वि [शारक] शर-तृण से बना हुआ प्रालसी (कुम)
स्त्री [सनपट्टी, सनपट्टिका] १ धनुर्यष्टि, (शूपं प्रादि) (माचा २, १, ११, ३)।
धनुर्दएड । २ धनुष खींचने के समय हाथ की सयावरी स्त्री [सदावरी] श्रीन्द्रिय जन्तु की
सरग्गिका (अप) स्त्री [सारङ्गिका] छन्दरक्षा के लिए बाँधा जाता चमपट्ट-चमड़े का एक जाति (उत्त ३६, १३६, सुख ३६,
विशेष (पिंग)। पट्टा (विपा १, २-पत्र २४; औप) १३६)
सरि न [शरि] बारण-युद्ध (सिरि
सरड पुंसिरट कुकलास, गिरगिट (णाया सयावरी देखो सयरी = शतावरी (राज)।" १०३२)।
१,८-पत्र १३३; अोध ३२३, पुप्फ २६७, सयास देखो सगास = सकाश (कालः अभि सर पुं[स्मर कामदेव (कुमा; से ६, ४३)
दे ८, ११, उप पृ २६८ सुपा १७७) १२५; नाट-मृच्छ ५२)
सर वि [सर] गमन-कर्ता (दस १, ३, ६)M सरडु न [शलाटु, 'क] वह फल जिसमें सयासत्र वि [शताश्रव, सदाश्रव] सूक्ष्म सर [स्वर] १ वर्ण-विशेष, 'प्र' से 'नौ'
सरडुअ अस्थि-गुठली न बँधी हो, कोमल छिद्रवाला (भग)।
तक के अक्षर (पएह २,२ विसे ४६१)। फल (पिड ४५: प्राचा २,१,८,६ पि सय्यं देखो सज्ज = सद्यस् । 'सय्यंभवृत्ति सय्यं । २ गोत मादि को ध्वनिः प्रावाज, नाद (सुपा
८२, २५६)। भवोयहीपारगो जो तेणं' (धर्मवि ३८) ।
५६ कुमा)। ३ स्वर के अनुरूप फलाफल सरण पुंन [शरण] १ त्राण, रक्षा (माचा; सय्यंभव देखो सज्जभव (धर्मवि ३८) को बतानेवाला शास्त्र (सम ४६)
सम १: प्रासू १५६ कुमा)। २ वारण-स्थान सय्ह देखो सज्झ = सह्य (हे २, १२४ | सर पुंन [ सरस ] तड़ाग, तालाब (से ३,
(पाचा कुमा २, ४५)। ३ गृह, प्राश्रय, षड्६; उवाः कप्प; कुमाः सुपा ३१६)। पंति
स्थानः निवायसरणप्पईवमिव चित्तं (संबोध सर सक [स] १ सरना खिसकना। २ स्त्री [पङ्क्ति ] तड़ाग-पद्धति (ठा २, ४
५१) दय वि [दय त्राण-कर्ता (भगः अवलम्बन करना, प्राश्रय लेना । ३ अनुसरण पत्र ८६) रुह न [रुह] कमल, पद्म
पडि) “गय वि [°गत] शरणापन्न करना । सरह (हे ४,२३४), सरेज्जा (उपपं (प्रातः हे १, १५६; कुमा)। सरपंतिया (प्रासू ५) २५) । कृ. सरणीअ (चउ २७), सरेअव्व स्त्री [°सरःपङ्क्ति ] श्रेरिण-बद्ध रहे हुए अनेक सरण न [स्मरण] स्मृति, याद (मोघ ८ (सुपा ४१४)।
तालाब (पराह २, ५-पत्र १५०)। विसे ५१८ महा; उप ५६२; प्रौप; वि ६)। सर सक [स्मृ] याद करना। सर (हे ४,
सर देखो सरय = शरद् (गा ७१२). "दिंदु सरण न विरण] मावाज करना, ध्वनि करना ७४; गुरु १२ प्राप्र)। वकृ. सरंत (सुपा पुं[इन्दु] शरद् ऋतु का चन्द्र (सुर २,
(विसे ४६१)। ५६४), सरमाण (णाया १,६-पत्र १६५ ७०० १६, २४६)।
सरण न [सरण गमन (राज) पउम ८, १६४; सुपा ३३६)। हेकृ. सरि- | सरऊ स्त्री [सरयू] नदी-विशेष (ठा ५,
सरणि पुंस्त्री [सरणि] १ मार्ग, रास्ता (पाम; त्तए (पि ५७८) । कृ. सरणीअ, सरेअव्य, १-पत्र ३०८ ती ११, कस)।
सुपा २; कुप्र २२); 'सरलो सरणी समगं सरियव्व (चउ २७; धम्मो २०; सुपा सरंग (अप) पुं [सारङ्ग] छन्द-विशेष
कहियो' (साधं ७५)। २ अालवाल, क्यारी ३०७)। प्रयो. सरयंति (सूम १, ५, १, (पिंग)।
(गउड)। १६) सरंब पुं शरम्ब] हाथ से चलनेवाले सर्प की
सरण्ण वि [शरण्य] शरण-योग्य, त्राण के सर सक [स्वर ] आवाज करना। सरइ, एक जाति (पएह १,१-पत्र ८) ।
लिए पाश्रयणीय (सम १५३, पण्ह १, ४सरंति (विसे ४६२) सरक्ख सक [सं + रक्ष ] अच्छी तरह
पत्र ७२, सुपा २६१, अच्चु १५, संबोध सर पुंन [शर] १ बाणः 'मज्झे सराणि वरि- रक्षण करना। सरक्खए (सूत्र १, १, ४, सयंति' (णाया १, १४-पत्र १६१; कुमा; ११ टि)।
सरत्ति प्र[दे] शीघ्र, जल्दी, सहसा (दे ८, सुर १, ६४ स्वप्न ५५)। २ तृण-विशेषः सरक्ख वि [सरजस्क, सरक्ष] १ शैव-धर्मी, 'सो सरवणे निलोणो रहियो तक्खिव्व पच्छन्नों शिव-भक्त, भौत, शैव (प्रोघ २१८; विसे (धर्मवि ६२; परण १-पत्र ३३; (कुप्र १०४०; उप ६७७)। २ वि. रजोयुक्त |
सरद देखो सरय = शरत (प्राप्र)। १०)। ३ छन्द-विशेष। ४ पाँच की संख्या (प्राव ४)।
सरन्न देखो सरण (सुपा १८३)।(पिंग)। पण्णी स्त्री [पर्णी ] तृण-विशेष,
सरभ देखो सरह = शरण (भग; गाया := मुज का घास (राज)) पत्त न [पत्र] 'ससरक्खेहिं पाएहि' (दस ५, १, ७)। २ १--पत्र ६५; परह १,१-पत्र , अस्त्र-विशेष (विसे ५१३)। पाय न [पात] | भस्म (पिंड ३७, प्रोघ ३५६) ।
७४२; पिग)।
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