Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 948
________________ ८७८ पाइअसहमहण्णवी सयंजय-सयालि २६६ टी) । ६ न. एक नगर का नाम, स्वेच्छानुसार वरण, एक प्रकार का विवाह | सयय वि [सतत] निरन्तर (उव; सुर १, राजा रावण के लिए कुबेर द्वारा बनाया जिसमें कन्या निमन्त्रित विवाहार्थियों में से १३; महा)। हुमा एक नगर (पउम ७, १४६)। १० वि. अपनी इच्छानुसार अपना पति वरण कर ले सयय [शतक] १ वर्तमान अवसर्पिणीपाप से प्रकाश करनेवाला (पउम ३६, ४) (उवः गउड अभि ३१), 'वरी स्त्री ["वरा] काल में उत्पन्न ऐरवत वर्ष के एक जिन-देव पभा स्त्री [प्रभा] १ प्रथम वासुदेव की अपनी इच्छानुसार वरण करनेवाली (पउम (सम १५३)। २ आगामी उत्सर्पिणी में पटरानी (पउम २०, १८६)। २ एक रानी १०६, १७) । संबुद्ध वि [संबुद्ध] स्वयं | भारतवर्ष में होनेवाले एक जिनदेव के पूर्वजन्म का नाम (उप १०३१ टी) पह देखो पभ ज्ञात-तत्त्व (सम १) नाम, जो भगवान् महावीर का श्रावक था (पउम ८, २२)। बुद्ध बि [°बुद्धअन्य सयंजय पु[शतजय] पक्ष का तेरहवाँ (ठा -पत्र ४५५) । ३ न. सौ का के उपदेश के बिना ही जिसको तत्त्व-ज्ञान दिवस (सुज्ज १०, १४)। समुदाय (गा ७०६; अच्चु १०१) हुआ हो वह (नव ४३)। भु पु [भु] १ सयंजल [शतजल] १ एक कुलकर-पुरुष सयर देखो सायर = सागर (विसे ११८७)।ब्रह्मा (पएह १, २-पत्र २८)। २ भारत (सम १५०)। २ वरुण लोकपाल का विमान सयरहं देखो सयराहं (स ७६२) ।। में उत्पन्न तीसरा वासुदेव (सम ९४)। ३ (भग ३, ७-पत्र १९८) देखो जय-जल। सतरहवें जिनदेव का गणधर-मुख्य शिष्य सयरा देखो सक्करा; 'सयरं दहिं च दूद्धं तुरंतो ३ ऐरवत वर्ष में उत्पन्न चौदहवें जिनदेव (सम १५२) । ४ जीव, आत्मा, चेतन (भग (पव ७)। कुणसु साहीणं (पउम ११५, ८)। २०,२-पत्र ७७६)। ५ एक महा-सागर, सयंभरी स्त्री [शाकम्भरी] देश-विशेष (मुरिण | सयराहं । अ[दे] १ शोघ्र, जल्दी (दे ८, स्वयंभूरमण समुद्रः 'जहा सयंभू उदहीण | १०८७३)। सयराहा, ११ कुमाः गउड चेइय ६१०)। सेठे' (सूत्र १, ६, २०)। ६ न. एक देव- सयग देखो सयय (पव ४६ कम्म ५, १००) २ युगपत्, एक साथ (विसे ६५६)। ३ विमान (सम १२) । देखो भू । भुरोहिणी सयग्वी स्त्री [द] जाँता, चक्की, पीसने का अकस्मात् (प्रौप)। स्त्री [भुगहिनी] सरस्वती देवी (अच्चु २)। यन्त्र (दे ८, ५) सयरि देखो सत्त- रिसप्तति (पि २४५; 'भुरमण पुं[भुरमण] देखो भूरमण सयड पुंन [शकट] १ गाड़ी (पउम २६, ४४६) । (पएह २, ४–पत्र १३०; पउम १०२, २१); 'सयडो गंती' (पान)। २ न. नगर- सयरी स्त्री [शतावरी] वृक्ष-विशेष, शतावर ६१; स १०७ सुज १६; जी ३, २-पत्र विशेष (पउम ५, २७) । मुह न [ मुख] का गाछ (पएण १-पत्र ३१)। ३६७; देवेन्द्र २५५) भुव, भू पुं[भू] उद्यान-विशेष, जहाँ भगवान् ऋषभदेव को सयल न [शकल] खंड, टुकड़ा (दे १, २८)। १ अनादि-सिद्ध सर्वज्ञः 'जय जय नाह सयंभुव' केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था (पउम ४, १६) सयल वि [सकल] १ संपूर्ण, पूरा । २ सब, (स ६४७) उवर १२२) । २ ब्रह्मा (पाय; सयडाल देखो सगडाल (कुप्र ४४८) समग्र (गा ५३०; कुमाः सुपा १९७; दं पउम २८, ४८ ती ७ से १४, १७)। ३ सयण देखो स-यण = स्व-जन । ३६; जी १४ प्रासू १०८; १६४), चंद तीसरा वासुदेव (पउम ५, १५५) । ४ रावण सयण न [सदन] १ गृह, घर (गउड सुपा | पुं[चन्द्र] 'श्रुतास्वाद' का कर्ता एक जैन का एक योद्धा (पउम ५६, २७) । ५ भगवान् ३६६) । २ अंग-ग्लानि, शरीर-पीड़ा (राज)। मुनि (श्रा १६६), भूसण पुं[भूषण] विमलनाथ का प्रथम श्रावक (विचार ३७८)। सयण न [शयन] १ वसति, स्थान (प्राचा एक केवलज्ञानी मुनि (पउम १०२, ५७) । ६ कुच, स्तन (प्राकृ ४०) + देखो भु। १, ६, १, ६) । २ शय्या, बिछौना (गउड; देस पुं[देश सर्वापेक्षी वाक्य, प्रमाणभूरमण पुं[भूरमण] १ समुद्र-विशेष । कुमाः गा ३३) । ३ निद्रा (कुमा ८, १७) । वाक्य (अज्झ ६२)। २ द्वीप-विशेष (जीव ३, २-पत्र २६७ / ४ स्वाप, सोना (परह २, ४, सुपण ३६६) | सयलि पुं [शकलिन् ] मीन, मछली (दे ३७०) । ३ एक देव-विमान (सम १२) सणिज्ज न [शयनीय] शय्या, बिछौना ८, ११) भूरमणभद्द [ भूरमगभद्र] स्वयंभूरमण (गाया १, १४–पत्र १६०; गउड) । सयहस्थिय वि [सौवस्तिक] १ स्व-हस्त द्वीप का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३, २- सयणिजग देखो स-यण = स्व-जन; 'सेहस्स | से उत्पन्न । २ न. शस्त्र-विशेषः 'महकालोवि पत्र ३६७)। भूरमणमहाभद्द पुं [भूर- सयरिणज्जगा प्रागया' (प्रोघभा ३० टी)। नरिंदो मिल्हइ सयहत्थियं सहत्थेणं' (सिरि मणमहाभद्र वही अर्थ (जीव ३, २)। सयणीअ देखो सयणिज्ज (स्वप्न १२१८ ४५१; ४५२) भूरमणमहावर पुं [भूरमणमहावर] | सुर ३, ६०)। सयाचार देखो स-याचार = सदाचार । .. स्वयंभूरमण-समुद्र का एक अधिष्ठायक देव सयण्ण देखो सकण्ण (महा) । (जीव ३, २-पत्र ३६७) । भूरमणवर सयाचार देखो सआ-चार - सदा-चार ।। सयह देखो स-यह = स-तृष्ण । पुं [ भूरमणवर] वही अनन्तर उक्त अर्थ सयत्त वि [दे मुदित, हर्षित (दे ८, ५) सयाण देखो स-याण = स-ज्ञान । (जीव ३, २)। वर [वर] कन्या का सयन्न देखो सकन्न (सुपा २८२)। सयालि पुं [शतालि] भारतवर्ष के भावी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010