Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 946
________________ ८७६ पाइअसद्दमण्णवो समोआर-सम्म उतरना। ३ जन्म-ग्रहण करना। समोअरइ पि ६७ भग; णाया १, १-पत्र ३६ समोहण सक [समुद् + हन् ] समुद्घात (अणु २४६; उव; विसे ६४५), समोअरति प्रौपः सुपा ११) करना, प्रात्म-प्रदेशों को बाहर निकाल कर सूत्र २, २, ७६; अणु ५६)। समोसर सक समव + स] १ पधारना, उनसे कम-निर्जरा करना। समोहणइ, समोआर पुं [समवतार] अन्तर्भाव (अणु प्रागमन करना । २ नीचे गिरना । समोसरेजा समोहणंति (कप्पः प्रौप; पि ४६६)। संकृ. २४६) । (ौपः पि २३५)। हेकृ. समोसरिउ (औप)। समोहणित्ता (भगः कप्प, औप) । समोइन्न वि [समवतीर्ण] नीचे उतरा वकृ. समोसरंत (से २, ३६) ।. समोहय वि [सनुद्धत] जिसने समुद्घात हुप्रा (सुर ७, १३४)। समोसर अक [समप+जू] १ पीछे हटना। क्रिया हो वह (ठा २, २-पत्र ६१) । समोगाढ वि [समवगाड] सम्यग अबगाढ २ पलायन करना । समोसरइ (काप्र १६६), समोहय वि [समवहत प्राघात-प्राप्त (सुर (औप)। समोसर (हे २, १९७)। वकृ. समोसरंत । ७, २८)। समोच्छइअ वि[समवच्छादित ] (गा १६२) । सम्म अक श्रम १ खेद पाना । २ थकना। प्राच्छादित, अतिशय ढका हुआ (पुर १०, समोलरण पंन [समवसरण १ एकत्र | सम्मइ (उत्त १,३७) १५७)। मिलन, मेलापक, मेला (सूअनि ११७ राय सम्न प्रक[शम्] शान्त होना, ठण्ढा समोणम सक [समय+नम् सम्यग् १३३)। २ समुदाय, समवाय, समूह होना । सम्मइ (धात्वा १५५)। नमना-नोचा होना। बकृ. समोणमंत 'समोसरण निचय उवचय चए य जुम्से य सम्म न [शहन सुख (हे १, ३२: कुमा)। (ौपः सुर ६, २३७)। रासीय(प्रोध ४०७)। ३ साधु-समुदाय, सम्म वि [सम्पाऊच ] १ सत्य, . सच्चा (सूत्र समोणय वि [समबनत] अति नमा हुग्रा साधु-समूह (पिड २८५; २८८ टी)। ४ १,८, २३, कप्प; सम्म ८७; वसु)। २ (गा २८२)। जहाँ पर उत्सव आदि के प्रसंग में अनेक साधु अविपरीत, अविरुद्ध (ठा १-पत्र २७; समोत्थइअ वि [समवस्थगन] आच्छादित, लोग इकट्ठे होते हों वह स्थान (सम २१ । ३, ४–पत्र १५६)। ३ प्रशंसनीय, (से ६, ८४)। ५ परतीथिकों का समुदाय, जैनेतर दार्शनिकों श्वाघनीय (कम्म ४, १४, पर ६)। ४ समोत्थय वि सिमवस्तृत ऊपर देखो (उप का समवाय (सूप्र १, १२, १)। ६ धर्म- शोभन, सुन्दर । ५ संगत, उचित, व्याजबी ७७३ टी)। विचार, आगम-विचार (सूघ २, २, ८१ (सूत्र २, ४, ३)। ६ न. सम्यग्-दर्शन समोत्थर सक [समव + स्तु] १ आच्छादन | ८२)। ७ 'सूत्रकृताङ्ग सूत्र' के प्रथम श्रुतस्कंध (कम्म ४, ६, ४५), 'त्त न [व] १ करना, ढकना। २ आक्रमण करना। वकृ. का बारहवाँ अध्ययन (सूअनि १२०)। ८ समकित, सम्यग् -दर्शन, सत्य तत्त्व पर समोत्थरंत (गाया १, १ - पत्र २५; पधारना, आगमन (उवा; औप; विपा १, श्रद्धा (उवाः उव; पव ६३; जी ५०; कम्म पउम ३,७८)। ७–पत्र ७२)। ६ तीर्थंकर-देव की पर्षद् । ४, १४)। २ सत्य, परमार्थः 'सम्मत्तदंसिणो' समोसार पु[समवतार अन्तर्भाव, समावेश १० जहाँ पर जिन-भगवान् उपदेश देते हैं (प्राचा: सून १, ८, २३) स्ट्रिय, (विसे ६५६; अणु)। वह स्थान (प्रावमः पंचा २, १७, तो ४३) दिट्ठीय वि[दृष्टिक] सत्य तत्त्व पर श्रद्धा समोयारणा स्त्री [समवतारणा] अन्तर्भाव | तव पुं [तपस् ] तप-विशेष (पव रखनेवाला (ठा १-- पत्र २७, २, २-पत्र (विसे ६७३)। २७१)। ५६) सण न [ दर्शन] सत्य तत्त्व पर समोयारिय वि [समयतारित] अन्तर्भावित, समोसरिअ वि [समपतृत] १ पीछे हटा श्रद्धा (ठा १:--पत्र ५०३), दिदि वि समावेशित (विसे ६५.६) । हुमा (गा ६५६; पउम १२, ६३)।२ [दृष्टि] देखो दिट्टिय (सूअनि १२१)। पलायित (से १०, ५) समोलक्ष्य वि [दे] समुत्क्षिप्त (गउड) नाग न [ज्ञान] सत्य ज्ञान, यथार्थ ज्ञान समोसरिअ वि [समवसृत ] समायात, (सम्म ८७ वसु)- सुय न [भूत] १ समोलुग्ग वि [समवरुग्ण] रोगी, रोग-ग्रस्त समागत (से ७, ४१: उवा) । सत्य शान्न । २ सत्य शास्त्र-ज्ञान (णंदि)। (से ३, ४७) - सनोसब सक [दे] टुकड़ा टुकड़ा करना । मिच्छदिदि वि [मथ्या दृष्टि मिश्र समोवअ सक [समव+पत्] १ सामने समोसवेंति (सूत्र १, ५, २, ८)। दृष्टिवाला, सत्य और असत्य तत्त्व पर श्रद्धा माना । २ नीचे उतरना। वकृ. समोक्यंत, समोलिअ अक [समय + सद्] क्षीण होना, रखनेवाला (सम २६; ठा --पत्र २८)। समोवयमाण (स १३६; ३३०)। नाश पाना, नष्ट होना। वकृ. सनसिअंत वाय [वाद] १ अविरुद्ध वाद । २ समोवइअ वि [समवपतित] नीचे उतरा दृष्टिवाद, बारह्वाँ जैन अंग-ग्रंथ (ठा १०हुमा (णाया १, १६-पत्र २१३) समोसिअ [दे] १ प्रातिवेश्मिक, पड़ोसी पत्र ४६१)। ३ सामायिक, संयम-विशेष; समोसढ़ वि [रूमनस्तृत ] समागत, (दे८, ४६; पात्र)। २ प्रदोष । ३ वि. | 'सामाइयं समइयं सम्मावाप्रो समास संखेवो समोसढ पधारा हुया (सम्मत्त १२% । वध्य, वध-योग्य (दे ८, ४६)। (आव १) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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