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समुल्लस-समोअर
पाइअसद्दमण्णवो
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समुल्लस अक [समुत् + लस् ] उल्लसित समुव्वत्त वि [समुद्वृत्तऊँचा किया हुप्रा समुहय वि [समुद्धत] समुद्धात-प्राप्त होना, विकसना। समुल्लसइ (नाट-विक्र. (से ११, ५१)।
(श्रावक ६८) ७१)। वकृ. समुल्लसंत (कप्प; सुर २, समुव्वत्तिय वि [समुद्वर्तित] घुमाया हुप्रा, समुहि देखो स-मुहि - श्व-मुखि । ८५)।फिराया हुआ (सुर १३, ४३) ।
समूसण न [समूषण] त्रिकटुक-झूठ, पीपल समुल्लसिय वि [समुल्लसित] उल्लास-प्राप्त
समुव्वह सक [ समुद् + वह.] १ धारण तथा मरिच या मिरचा (उत्तनि ३)। (सरण)।
करना । २ ढोना । समुबहइ (भविः सण)।
समूसवय देखो समुस्सविय (पएह १, समुल्लालिय वि [समुल्लालित] उछाला हुआ
वकृ. समुव्वहंत (से ६, २, नाट---रत्ना ३-पत्र ४५) (णाया १, १५-पत्र २३७)।
समूसस प्रक[समुत् + श्वस ] १ ऊँचा समुल्लाव [समुल्लाप पालाप, संभाषण
समुव्वहण न [समुद्वहन] सम्यग् वहन- जाना। २ उल्लसित होना। ३ ऊर्ध्व श्वास (विपा १, ७-पत्र ७०; महा; गाया १, ढोना (उव)।
लेना। समूससति (पि १४३) । वकृ. समू१६-पत्र १६६)।
समुव्विग्ग वि [समुद्विग्न] अत्यन्त उद्वेग- ससंत, समूससमाण (गा ६०४; गउड; समुल्लास पु[समुल्लास] विकास (गउड)। वाला (गा ४६२)।
से ११, १३२)। समुवइट्ठ वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ (अ
| समुव्बूढ वि [समुव्यूढ] १ विवाहित समूससिअन [समुच्छ्वसित] १ निःश्वास २८८)।
(उप पृ १२७)। २ उत्तानित, ऊँचा किया (से ११, ५६)। २ देखो समुस्ससिय समुवउत्त वि [समुपयुक्त] उपयोग-युक्त, हुमा (से ११, ६०)।
(णाया १, १--पत्र १३, कप्पः गउड)सावधान (जीवस ३६३) ।
समुव्वेल्ल बि [समुद्वेल्लित] अत्यन्त कँपाया | समूसिअ देखो समुस्सिअ (भगः प्रौप, सूत्र समुवगय वि [समुपगत] समीप पाया हुआ हुमा, संचालितः ‘गयजूहसमायड्डियविसमस- १, ५, १, ११ टीः परह १, ३--पत्र ४५)। (वव ४)
मुब्वेल्लकमलसंघायं' (पउम ६४, ५२)। समूसुअवि [समुत्सुक] अति उत्कंठित (सुपा समुवज्जिय वि [समुपार्जित] उपाजित,
समुसरण देखो समोसरण (पिंड २)। ४७७ नाट-विक्र ६२)। पैदा किया हुआ (सुपा १०० सण)।
समुस्सय पुं[समुच्छ्य ] १ ऊँचाई, ऊध्यता समूह पुन [समृह] समुदाय, राशि, संघात; समुवत्थिय वि [समुपस्थित] हाजिर,
(सूप २, ४, ७)। २ उन्नति, उत्तमता (सूम
_ 'मंतीहि य उवसमियं भुयंगमाणं समूह व' उपस्थित (उप ४३५)।
१, १५, ७)। ३ कर्मों का उपचय (प्राचा)। (पउम १०६, १५; भोघ ४०७, गउडा समुवयंत देखो समुवे । ४ संघात, समूह, राशि, ढग (दस ६, १७;
भवि)। समुवविट्ठ वि [समुपविष्ट] बैठा हुआ (राय अणु २०)।
समूह (अप) देखो समुह (भवि) • ७५)।
समे सक [समा + इ] १ आगमन करना, समुवसंपन्न वि [समुपसंवन्न] समीप में हुआ (पउम ४०, ६)।
प्राना, संमुख पाना । २ जानना। ३ प्राप्त समागत (धर्म ३)।
समुस्ससिय वि [समुच्छ्वसित] १ उल्लास- करना। ४ अक. संहत होना, इकट्ठा होना । समुवहसिअ वि [समुपहसित] जिसका खूब | प्राप्त, 'समुस्ससियरोमकूवा' (कप्प)। २ समेइ, समेंति (भविः विसे २२६६)। वकृ. उपहास किया गया हो वह (सण)।
उच्छ्वास-प्राप्त (पउम ६४, ३८)। देखो समेमाण (प्राचा १, ८, १, २)। संकृ. समुवागय वि [समुपागत] समीप में प्रागत समूससि।
समिञ्च, समेञ्च (सूत्र १, १२, ११; पि (णाया १, १६-पत्र १९६; सण)।
समुस्सिअ वि [समुच्छित] ऊर्ध्व-स्थित, - ५६१; प्राचा १, ६, १,१६, पंच ३,४५) । समुवे सक[समुपा +३] १ पास में माना।। ऊँचा रहा हुआ (सूत्र १,५,१,१५; पि ६४) .
ऊँचा रहा हुमा (सूत्र १,५,१,१५; पि ६४) | समेअ) वि[समेत] १ समागत, समायात २ प्राप्त करना । समुवेइ, समुवेंति (यति समुस्सिणा सक[समुत् + श्रु] १ निर्माण समेत ) 'सीलवई परिणेउं गिहं समेग्रो ४२पि ४६३)। वकृ. समुवयंत (स | करना, बनाना । २ संस्कार करना, संवारना. महिड्डीए' (श्रा १६)। २ युक्त, सहितः 'तेहि ३७०)।
जीर्ण मन्दिर आदि को ठीक करना । समुस्सि- समेतो अहयं वयामि जा कित्तियंपि भूभागं' समुवेक्ख । सक [ समुत्प्र + ईक्ष. ] १ णासि, समुस्सिणामि (प्राचा १,८,२,१२)। (सुर १, १६३, ३, ५८; सुपा २५६ समुवेह निरीक्षण करना। २ व्यवहार । समुस्सुग देखो समसुअ (द्र ४८ महा)।
महा)। करना, काम में लाना। वकृ. समुवेक्खमाण, । समुस्सुय"
समेर देखो स-मेर=स-मर्याद ।। समुवेहमाण (णाया १, १-पत्र १; समुह देखो संमुह (हे १, २६, गा ६५६ समोअर अक [समव + तृ] १ समाना, आचा १, ५, २, ३)। कुमाः हेका ५१, महा: पाम)।
समावेश होना, अन्तर्भाव होना । २ नीचे
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