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७०६ पाइअसहमहण्णवो
रयण-रयय रयण वि [रचन] करनेवाला, निर्माता ( इकः सुर ३, २०)। संचया श्री 'अर, कर पुं [कर] चन्द्रमा (हे १,८ 'चेडीसचितारयणु' (सण)।
[संचया] १ मंगलावती नामक विजय की टि: कप्प) णाह, 'नाह [नाथ] रयण पु[रदन] दाँत, दशन (उप ६८६ टीः |
राजधानी (ठा २, ३–पत्र ८०) । २ ईशा- चन्द्रमा ( पात्रः सुपा ३३) भत्त न
नेन्द्र की वसुन्धरा-नामा इन्द्राणी की एक भक्त] रात्रि में खाना (सुपा ४६५)। पाप कार १५२ ना. रातु १३)।
राजधानी (इक)। सनया स्त्री [समया] रमण पुं [रमण ] चन्द्रमा (सण)। रयण ऍनरल मायिदि बहुमूल्य
मंगलावती नामक विजय को एक राजधानी वल्लह पुं [वल्लभ] चन्द्रमा (कप्पू)। पत्थर, मरिण; 'दुवे रयणा समुप्पन्ना' (निर
(इक)। "सार पुं [सार] १ एक राजा "विराम ' [विराम] प्रातःकाल, सुबह १, १, उप ५६३; गाया १,१: सुपा
(राज) । २ एक शेठ का नाम (उप ७२८ १४७; जी ३; कुमा; है २, १०१)। २
टी) । °सिंह पुं[सिंह] एक जैन आचार्य, रयणिंद पुं[रजनीन्द्र] चन्द्रमा (सण)। श्रेष्ठ, साजाति में उत्तम (राग २६; कुमा ३, संवेगचूलिकाकुलक कर्त्ता (संवे १२)। सिंह रयणिद्धय न [दे] कुमुद, कमल (दे ७, ४; ४७); 'तहवि हु चेद-सरिच्छा विरला रय
[शिब एक राजा ( १०३१ टी) । णायरे रयणा' (वज्जा १५६)। ३ छन्द
सेहर पुं [शेखर] १ एक राजा (रयण विशेष (पिंग)। ४ द्वीप-विशेष (णाया १,
रयणी स्त्री [रत्नी] देखो रयणि = रत्नि (ठा ३)।२ विक्रम की पनरहवीं शताब्दी में सम १२: जीवस १७७; जी ३३; औप)। ६; पउम ५५, १७)। ५ पर्वत-विशेष का
विद्यमान एक जैन प्राचार्य और ग्रंथकार एक कूट (ठा ४, २; ८)। ६ पुं. ब. रत्न
रयणी स्त्री [रजन] १ रात्रि, रात (पान (सिरि १३४०)। अर, गर पुं[कर] द्वीप का निवासी (पउम ५५, १७)। उर
प्रासू १३६: कुमा)। २ ईशानेन्द्र के लोकपाल १ रत्न की खान (षड् )। २ समुद्र (पाम: न [पुर] नगर-विशेष (सरण) चित्त पुं
की एक पटरानी (ठा ४, १-पत्र २०४) । सुपा ३७, प्रासू ६७; रणाया १, १७–पत्र ["चित्र] विद्याधर वंश का एक राजा
३ चमरेन्द्र की एक अन-महिषी (ठा ५.१२२८)। भा स्त्री [भा] देखो पभा | (पउम ५, १५)। दीव [दी] द्वीप
पत्र ३०२)। ४ मध्यम ग्राम की एक मूच्र्छना (उत्त ३६, १५७ ) मय देखो मय विशेष (णाया १, ६-पत्र १६५)। निहि
(ठा ७–पत्र ३६३)। ५ षड्ज ग्राम की (महा: प्रोप)जयरसुअ पुं [करसुत] १ [निधि) समुद्र, सागर (सुपा ७,
एक मूच्र्छना; 'मंगो कोरव्वीया हरी य रयचन्द्रमा । २ एक वणिक-पुत्र (श्रा १६) १२६) पुढवी स्त्री [पृथिवी] पहली
तणी(? यणी) सारकंता य' (ठा ७-पत्र विलि, वली स्त्री [वलि, वली] १ नरक-भूमि, रत्नप्रभा नामक नरक-पृथिवी (स
३६३) 'भोअण न [ भोजन] रात में रत्नों का हार (सम्म २२)। २ तप-विशेष १३२)। 'पुर देखो °उर (कुप्र ६ महा; सण)।
खाना (श्रा २०), "सार न [सार] सुरत, (अंत २५) । ३ ग्रन्थ-विशेष (दे ८, ७७)। पभा, पहा स्त्री ["प्रभा] १ पहली |
मैथुन (से ३, ४८)। देखो रयणि = रजनि ४ एक विद्याधर-राजकन्या (पउम ६, ५२)। नरक-भूमि (ठा ७-पत्र ३८८; औप: भग)।
वह न विह] नगर-विशेष (महा)। यी ती जिनी1 प्रौषधि-विशेष२ भीम नामक राक्षसेन्द्र को एक पटरानी
सिव पुं[स्रव रावण का पिता (पउम (ठा ४, १--पत्र २०४) । ३ रत्न का तेज
पिंडदारु । २ हरिद्रा, हलदी (उत्तनि ३)। ७, ५६; ७१) सवसुअ ' [स्रवसुत] (स १३३)। "मय बि ["मय] रत्नों का
रयणुच्यय । [रत्नोच्चय] १ मेरु-पर्वत
रावण (पउम ८, २२१)। हिय वि बना हुआ (महा) । माला स्त्री [°माला] [धिक] ज्येष्ठ, अवस्था में बड़ा (राज)।
रयणोञ्चय (सुज ५ टी-पत्र ७७ इक)। छन्द-विशेष (अजि २४)। मालि पुं
२ कूट-विशेष (इक) । ["मालिन] विद्याधर-वंश में उत्पन्न नमिरयणप्पभिय वि [ रात्नप्रभिक ] रत्नप्रभा
रयणोच्चया स्त्री [रत्नोच्चया] वसुगुप्ता नामक राज का एक पुत्र (पउम ५, १४)। मुस संबन्धी (पंच २, ६६)।
इन्द्राणी की एक राजधानी (इक)। वि [मुप्] रत्नों को चुरानेवाला (षड्). रयणा स्त्री [रचना] निर्माण, कृति (उत्त
| रयत न [रजत] १ रूप्य, चाँदी (णाया 'रह [रथ] विद्याधर वंश का एक राजा १५, १८; चेइय ८६६; सुपा ३०४, रंभा)।
रयद १, १-पत्र ६६; प्राकृ १२ प्राप्र; (पउन ५, १४) + रासि पुं[ राशि] समुद्र रयणा स्त्री [रत्ना] रत्नप्रभा नामक नरक- रयय पामः उवाः प्रौप)। २ एक देव(प्रारू)। वइ पुं[पति] रत्नों का मालिक, भूमि (पव १७५) ।
विमान (देवेन्द्र १३१)। ३ हाथी का दाँत । धनी, श्रीमंत (सुपा २६६) वई स्त्री रयणि पुंस्त्री [रनि] एक हाथ को नाप, बद्ध- ४ हार, माल।। ५ सुवर्ण, सोना । ६ रुधिर, [वती] एक रानी (रयण ३) । वज्ज पुं मुष्टि हाथ का परिमाण (कसः पव ५८ खून । ७ शैल, पर्वत । ८ धवल वर्ण। । [व] विद्याधर-वंशीय एक राजा (पउम १७६)।
शिखर-विशेष । १० वि. सफेद, वर्णवाला, ५, १४)। वह वि [वह] रत्न-धारक | रयणि स्त्री [रजनि] देखो रयणी = रजनी श्वेत (प्राकृ १२, प्रातः हे १, १७७; १८०; (गउड १०७१)। संचय न [संचय १ (णाया १, २–पत्र ७६; कप्प) । अर पु! २०६) "गिरि पुं [गिरि] पर्वत-विशेष रुचक पर्वत का कूट (इक) । २ एक नगर ' [चर] १ राक्षस (से १०, ६६, पान) । (णाया १,१ औप)। "वत्त न [ पात्र]
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