Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 930
________________ पाइअसदमणव ८६० सद्धि देवसिद्धि ( २, १०१ कुमा) सवा [ शनैः प्रपात ] जीवों से भरी हुई पोलिक वस्तु-विशेष (ठा २, ४ ८६) । सणेह [स्नेह] प्रेम प्रीति (पभि २७० कुमा) । २ घृत, तैल आदि स्निग्ध रस । ३ चिकनाई, चिकनाहट (प्रात्र; हे २, १०२ ) 1 सण देखो सन्न (से १२, ७२) । सण्णज्जन [सान्न्याय्य ] मन्त्र श्रादि से संस्कारा जाता धृत आदि (प्राकृ १६ ) 1सत्तिवि [] परितापित (दे ८ २८ ) 1. सणव[] १चिन्तित २ म. सांनिध्य, मदद के लिए समीपगमन (दे ८, ५०) 1 अवि [] चा पीला (दे ८ ५) सतर न [सतर] दधि, दही (घोष ४८ ) 1सण्णिर देखो समिर (राम) 1 सति देखो सइ = स्मृति (ठा ४, १-पत्र १८७ श्रौष) । - समिवि [] संनिहित २ माति नापा हुआ । ३ अनुनीत, अनुनय-युक्त (दे ४८) सत देखो सत्त= सप्तन् (पिंग ) र त्रि ["दशन] सतरह, १७ जं चारणंतगुणंपि हु वरान् सतरमेघदवमेध' (सिरि वरिगज्जइ १२८८; कम्म २, ११६) ५ र सय न [" दशशत] एक सौ सतरह (कम्म २, १३) । सतंत देखो सतं = स्वतन्त्र ॥ सतत देखो सय = सतत (राज) 1 सतय देखो सयय = शतक (सम १५४) । समज देखो सम्नुमिअ (दे, ८, ४० टी) सणे [दे] यक्ष-देवता (दे ८, ६) । सहवि [क्ष्ण] १ मटण, चिकना (कप्प औप ) । २ छोटा, बारीक (विपा १, ८-पत्र ८३ ) । ३न, लोहा ( है २, ७५: षड् ) । ४. वृक्ष-विशेष (एग ११५ ११) । की बी [करणी] पोसने की शिला (भग १६, ३ - पत्र ७६६) मच्छ पुं [ मत्स्य ] मछली की एक जाति (विपा १, ८--पत्र ८३; पण १ - पत्र ४७ ) 1 "साआ["] १ लक्ष्णश्लक्ष्णका का एक नाप (इक) 1 सव[सूक्ष्म] छोटा बारीक (कुमा २ न. कैतव, कपट ३ अध्यात्म । ४ अलंकार- विशेष (हे २, ७५) । देखो सुहम, सुहुम सहाई स्त्री [दे] दूती (दे ८, ६) । सत देखो सय = शत (गा ३ ) + क्कतु पुं [ ऋतु] इन्द्र (कप्प ) + ग्घी स्त्री [नी] अस्त्र - विशेष ( परह १ १ - पत्र ८ वसु) 1 "दु श्री ["द्र ] एक महानदी (ठा ५, ३-पत्र ३५१ ) | 'भिसया स्त्री ["भिषज् ] Jain Education International रिसभ गृह (सम [ वत्स ] पक्षि-विशेष ( पण १ - पत्र ५२ ) । 'वाइया स्त्री [["पादिका ] श्रीन्द्रियजन्तु को एक जाति नक्षत्र-विशेष (सम २९) [ऋषभ ] महोरात्र का २१)वच्छ ( पण १ - पत्र ४५) । = सती देवी सई पती (६०) सतीणा देखो सणा (५ पत्र २४१) - तेरा श्री [शतेश] निदिग्रुप पर रहने पाली एक कुमारी देवी (डा ४, १पत्र १६८, इक ) 1 सत्त वि [शक्त ] समर्थ (हे २, २ षड् ) । सन्त वि[शप्त ] शापन्यस्त्र विसारधारा किया गया हो वह (पउम ३५ ६०७ पत्र १०६ टी० प्रति ८६ ) 1 सन्त देखो सच = सत्य (प्रभि १८६ पिंग ) । सत्त वि[सक्त] प्रासक्त, गृद्ध, लोलुप (सूत्र १, १, १, ६; सुर ८, १३६० महा) । सत्तन [स] सदाव्रत, जहाँ हमेशा अन्न आदि का दान दिया जाता हो वह स्थान ( कुप्र १७२ ) । २ यज्ञ (अजि ८) साल श्री [शाला] सदावत स्थान दान-क्षेत्र (ख) गार न [गार] नही ( धर्मेंवि २६) । सन्त वि [दे] गत, गया हुआ (पड् ) ।चेतन सत्त पुंन [सत्त्व] १ प्राणी, जीव, ( श्राचाः सुर २,३६० सुपा १०३३ धर्मसं ११८६) । २ श्रह. रात्र का दूसरा मुहूर्त (सम ५१) । ३ न बल पराक्रम । ३ मानसिक 5 For Personal & Private Use Only सणित -सत्त उत्साह (पिंड ६३३, श्रगु प्रासू ७१ ) । ५ विद्यमानता ( घर्मंसं १०५ ) । ६ लगातार सात दिनों का उपवास (संबोध ५८ ) 1 सत्त वि[सप्तन्] सात संख्यावाला, सात (विपा १, १ - पत्र २ कप्पा कुमाः जी ३३ ४१) । खित्ती, खेत्ती स्त्री ['क्षेत्री ] नि-चैत्य, विन-विन्य, जैन धागम, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका ये सात धनव्यय-स्थान ( ती ८ श्रु १२१ राज ) । गन [क] सात का समुदाय (दं ३५३ कम्म २, २६ २७ ६, १३) । चत्ताल वि [' चत्वारिंग] सैंतालीसवाँ, ४७ वाँ (पउम ४७२८) शासन [चत्वारिं शत् ] सैंतालीस, ४७ सम ६७ ) च्छ [] विशेष सरावन का पेड़, सतौना (पान से १, २३३ णाया १, १६– पत्र २११६) श्री [] संख्या - विशेष, सड़सठ ६७ । २ सड़सठ संख्या वाला (सम १०६३ कम्म १, २३३ ३२० २, " ६) द्विधा [पहिया] सह प्रभार का (१२-पत्र २२०) देखो ss (राज) तीसइम वि [निशन्तम ] सइतीसवाँ ३७ वां (पउम ३७, ७१) तंतु [ तन्तु ] यज्ञ (पा) । दस ि ["दशन] सतरह, १७ (पउम ११७, ४७) । - "पण देखो बण्ण (राज) भूम वि ["भूम] सात तलावाला प्रासाद (श्रा १२ ) I "भूमिय वि [ भूमिक] वही पूर्वोक्त अर्थ (महा) मवि [म] सातवाँ, ७ वाँ (कप्प)। स्त्री. भा (जी २९ ) । मासिअ वि [मासिक] सात मास का (भग) 1 "मासिआ श्री ["मासिकी ] सात मास में पूर्ण होनेवाली एक साधु-प्रतिज्ञा व्रत विशेष (सम २१) मिया, श्री ["मित्र, १७ वीं (महासन २१ चिर ३०० कम्म ३ ६ प्रासू १२१ ) २ समय ६८२ राजव देखो 'ग (कम्म ६, ६६ टी) रवि [त ] सतवाँ ७० (पउन ७०७२) [दशन] सतरह १० (२३) र [[["रात्र] सात रातदिन का समय (महा)।"रस त्रि ["दशन] सतरह १७ (ग) "रस, रेसम वि["दश] सतरहवा www.jainelibrary.org

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