Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 936
________________ ८६६ समणुवत्त वि[समनुवृत्त] संवृत्त, संजात ( पउम १०, १) 1 3 समणुवास सक [ समजु + वासय ] १ वासना युक करना । २ सिद्ध करना। ३ परिपालन करना प्रामवा जासि' (प्राचा १, २, १, ५, १, ४, ४; १, ५, ४, ५ १, ६, १, ६) समणुमट्ठ वि[समनुशिष्ट ] श्रनुज्ञात, अनुमत ( प्राचा २, ९, १०, ४ ) 1समणुसास सक [ समनु + शासय ] सम्यग् सीख देना अच्छी तरह सिखाना । समाति ( १, १४, १०) समणुसिद्धवि [समनुशिष्ट ] अच्छी तरह शिक्षित (ब) देखो समझाया २ १, १०, ४) । - समणुडो एक [ समनु+भू] अनुभव करना | समगुहो (वव १) 1 समण्णाय वि[समन्यागत ] १ समन्वित, सहित, छत्तीसगुणसमरालागएण' (गच्छ १, १२) । २ संप्राप्त (राय) समण्णाहार [समम्बादार] समागमन (राज) । समणिय देखो समन्निय (काल) 1 समति देसम खाया ११-पत्र ६३ ) । समतुरंग सक [ समतुरंगाय ] समान श्रश्व की तरह आपस में प्रारोहण करना, आश्लेष करना । चकृ. समतुरंगमाण (गाया १, ८-पत्र १३४ व १७४ टी) । समतपि [ समस्त ] संपूर्ण (१ ४ - पत्र ६८ ) २ सकल, सत्र ( बिसे ४७२) । ३ समासयुक्त ४ मिलित, मिला हुआ (हे २, ४५; षड् ) । समय [वि] [समाप्त] पूर्ण पूरा हो चुका हो वह (उवा श्रौष) समांत [समाप्त] पूर्णता (उप १४२; ७२८ टी; विसे ४१५ पव- गाथा ६५० स ५३; सुपा २५३ ४३५) । समत्थ सक [ सम् + अर्थ ] १ साबित करना, सिद्ध करना । २ पुष्ट करना । ३ पूर्ण करना । कर्म. समत्थीइ ( स १६५ ); ~ Jain Education International पाइअसहमण्णवो 'उहो त्ति समत्थिजइ दाहेण सरोरुहाण हेमंतो । चरिएहि राज जो संगोवंतोवि प्रवारणं' (गा ७३० ) । समत्थ देखो समत्त समस्त ( से ४, २८ सुर १, १८१३१६, ५५) समत्य वि[समर्थ शक्त, शक्तिमान् (पात्र: ठा ४, ४ - पत्र २८३ प्रासू २३३ १८२; औप ) । समस्थिवि [समर्थिन् ] प्रार्थक, चाहनेवाला (१५१) समस्थिवि [ समर्थित ] १ पूर्ण पूरा दिया हुआ (कु ११४ गुप २६६) पुष्ट किया हुआ (सुर १६, १५) । ३ प्रमाणित साबित किया हुआ (बग्न १२१) समद्धासिय वि[समाध्यासित] प्रविष्ठित ( स ३५ ६७६ ) । | समद्धि देखो समिद्धि (गा ४२६) । समन्नागय देखो समण्णागय (प्रोघ ७९४ खाया १, १ -पत्र ६४० श्रपः महाः ठा ३, १--पत्र ११७) । | समन्नि सक [समनु + इ] १ अनुसरण करना । २ श्रक. एकत्रित होना, मिलना । रामन्ने, समन्निति (विसे २५१७० प समन्निअ वि [समन्वित] युक्त, सहित (हे ३, ४६; सुर ३, ३० ४, २२० गउड) 1 समन्ने देखो समन्नि समप्प सक [ सम् + अर्पय] अर्पण करना, दान करना, देना। समप्पेइ (महा) । चकृ. समप्पंत, समप्यअंत, समप्र्पत (नाट— मृच्छ १०५: रत्ना ५५; पउम ७३, १४ ) । संकृ. समपि, समपिऊण (नाट - मृच्छ ३१५; महा) । हेकृ. समप्पि (महा) । कृ. समप्पियव्व (सुपा २५६) । समय देखो समाव सम् + आप् I समपणन [समर्पण] अपंण प्रदान (सुर ७, २२: कुप्र १३ वज्जा ६६ ) । - समप्पणया स्त्री [समर्पणा ] ऊपर देखो (उप १७१) 1 = For Personal & Private Use Only समणुवत्त-समय समय[समर्पित] दिया हुआ (महा काल) । समब्भस सक [समभि + अस ] श्रभ्यास करना । समन्भसह (द्रव्य ४७ ) 1समब्भहिअ दि [ समभ्यधिक ] मत्यन्त अधिक (से १५, ८५) । समभास पुं [ समभ्यास ] निकट, पास ( प ३३, १७) । समभिडिय वि [] भिड़ा हुम्रा, लड़ा हुआ ( पउम ८६,४८ ) 1समभिआपण वि [ समभ्यापन्न ] संस आया हुआ (सूत्र १, ४,२,१४ ) समभिजान सक [समभि + ज्ञा] १ निर्णय करना । २ प्रतिज्ञा - निर्वाह करना । समभिजाशिया समभिवाणाहि (धाचा). समभिजानमाण (चाचा) - सममिव एक [ समभिद्र ] राम करना । समभिवंति (उत्त ३२, १०) | समभिधंस सक [समभि + ध्वंसय ] नष्ट करना । समभिधंसेज, समभिधंसेति (भग) । समभिपड सक [समभि + पत् ] आक्रमण करना। हेकृ. समभिपडित्तए (अंत २१ ) 1 ससभिभूअपि [समभिभूत] परा भूत (उया धर्मव ३४)। समभिरूढ [[समभिरूढ ] नय- विशेष (ठा समभिलोअ सक [समभि + लोक् ] देखना, ७--पत्र ३६० ) । निरीक्षण करना । समभिलोएड (भग १५पत्र ६७० ) । वकृ. समभिलोएमाण ( पण १७- पत्र ५१८ ) । समभिलोइअ वि [समभिलोकित ] विलो - कित, दृष्ट (भग १५-पत्र ६७० ) ।. समय श्रक [ सम् +अय ] समुदित होना, एकत्रित होना 'सम्व साओ नया विरुद्धावि' ( विसे २२६७) । समय पुं [समय ] १ काल, वक्त, अवसर (माचा सूपनि २६ कुमा) २ काल-विशेष सर्व-सूक्ष्म काल, जिसका दूसरा हिस्सा न हो सके ऐसा सूक्ष्म काल (अणु इक कम्म २, २३; २४; ३० ) । ३ मत दर्शन ( प्राप) । ४ सिद्धान्त, शास्त्र भागम (प्राचा पिंड ६; www.jainelibrary.org

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