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समउ-समणुभूअ
पाइअसहमहण्णको समउ (अप) नीचे देखो (भवि)।
समच्छाग्रग वि [समाच्छादक] ढकनेवाला समणकख देखो स-मणक्ख = स-मनस्क - समं म[समम् ] साथ, सह (गा १०२ (स ६६)
समणुगच्छ। सक [समनु + गम] १ १६४ २६५, उत्त १६, ३; महा; कुमा)। समज । सक सम् + अर्ज 1 पैदा समणुगम अनुसरण करना। २ अच्छी समंजस वि [समञ्जस] उचित, योग्य समज्जिण करना, उपार्जन करना । समज्जइ, तरह व्याख्या करना । ३ अक. संबद्ध होना, (माचा; गउड; भवि)
समज्जिणइ (सणः पव १०; महा) । वकृ. जुड़ जाना । वकृ. समणुगरछमाण (णाया समंत देखो समंता: 'वसियो अंगेसु समंत- सज्जिणमाण (विपा १,१-पत्र १२)। १, १--पत्र २५) । कवकृ. समणुग मंत, पीणकरणकब्बुरो सेमो' (गउड) संकृ. समजिवि (अप) (सण)।
समणुगरमसाण (प्रौपः सूअ २, २, ७६; समंत देखो सामन्त (उप पृ ३२७) समजिणिय) वि [समाजत] उपार्जित रणाया१. -पत्र ३२ कप्प) - समंत (अप) देखो समत्थ = समस्त (पिंग)। समज्जिय (सण; ठा ३, १-पत्र
समणुगः वि [समनुगत] १ अनसत (स समंतओम[समन्ततस ] सर्वतः, चारों ११४; सुपा २०५; सण)।
७२०) : २ अनुविद्ध, जुड़ा हुआ (पंचा, तरफ (गा ६७३; सुर २, २३८)। समझासिय वि [समध्यासित] अधिष्ठित समंता । [समन्तात् ] ऊपर देखो (सुज्ज १०, १)।
समणुचिया वि [समनुचीर्ण] प्राचरित, समंतेण (पामः भगः विपा १, २–पत्र सम? वि [समर्थ] संगत अर्थ, व्याजबी, विहितः 'तवो समणुचिएणो' (पउम ६, २६ से ६, ५१, सुर २, २८; १३, १९५)
न्याय-युक्त (गाया १,१-पत्र ६२; उवा)। समकंत वि [समाक्रान्त] १ जिसपर देखो समत्थ = समर्थ ।।
समणुजाण सक [समनु + ज्ञा] १ अनुमोदन आक्रमण किया गया हो वह (से ५, ५७)। समण न [शमन] १ उपशमन, दबाना, शान्त
करना, अनुमति देना । २ अधिकार प्रदान २ अवरुद्ध, रोका हुमा (से ८, ३३)। करना (सुपा ३६६)। २ पथ्यानुष्ठान (उवर
करना । समणुजाणइ, समणुजाणाइ. समणुसमक्ख न [समक्ष] नजर के सामने, प्रत्यक्ष १४०)। ३ एक दिन का उपवास (संबोध
जाणेजा (प्राचा) । वकृ. समणुजाणमाण (गा ३७०; सुपा १५०; महा)। देखो ५८) । ४ वि. उपशमन करनेवाला, दबाने
(आचा)। समच्छ । वाला (उप ७८२, पंचा ४, २६; सुर ४,
समणुजाय वि [समनुजात] उत्पन्न, संजात समक्खाय । वि [समाख्यात ] उक्त, २३१)
(पउम १००, २४; सुपा ५७८)। समक्खिअ कथित (उप २११ टी ६६४, समण देखो स-मण =स-मनस् ।
समणुनाय वि [समनुज्ञात] अनुमत, जी २५ श्रु १३३)। समण देखो सवण = श्रवण (पउम १७,
अनुमोदित (पउम ८० ७)। समगं देखो समयं = समकम् (पव २३२; १०७ राज)।
ससणुन्न वि [समनुज्ञ] अनुमोदन-कर्ता सुपा, ८७; सण) समण पुं[समण सर्वत्र समान प्रवृत्तिवाला,
(प्राचा १, १, १, ५)। समग्ग वि[समग्र] १ सकल, समस्त (सुपा मुनि, साधु (अणु)।
समणुन्न वि [समनोज्ञ] १ सुन्दर, मनोहर । ६६)। २ युक्त, सहित (पएह १, ३-पत्र
२ सुन्दर वेष आदिवाला (प्राचा १, ८, १, समण पुं[श्रमण] १ भगवान महावीर ४४. कुप्र ७)
१)। ३ संविग्न, संवेग-युक्त मुनि (पाचा १, (प्राचा २, १५, ३)। २ पुंस्त्री, निर्ग्रन्थ मुनि समग्गल वि [समर्गल] अत्यधिक (सिरि
८, २, ६)। ४ समान समाचारीवालासाधु, यति, भिक्षु, संन्यासी, तापस; 'निग्गंथ८६७; सुपा ३६७, ४२०)।
सांभोगिक मुनि (ठा ३, ३-पत्र १३६% सक्कतावसगेरुयप्राजीवं पंचहा समणा' (पव समग्गल (अप) देखो समग्ग (पिंग)।
स्व १) ६४ अणुः प्राचा) उवाः कप्पः विपा १, १, समग्ध पि [समर्घ] सस्ता, अल्प मूल्यवाला धण २१; सुर १०, २२४)1 स्त्री. णी (भगः
समणुन्ना स्त्री [समनुज्ञा] १ अनुमति, संमति (सुपा ४४५, ४४७ सम्मत्त १४१) गच्छ १, १५)। सीह पुं[सिंह] १ एक
२ अधिकार-प्रदान (ठा ३,३-पत्र १३९)। समञ्चण न [समर्चन] पूजन, पूजा (सुपा६) जैन मुनि जो दूसरे बलदेव के पूर्वभवीय गुरू समणुन्नाय देखो समणुनाय (आचा २,१, समच्चिअ वि [समर्चित] पूजित (पउम थे (पउम २०, १६२)। २ श्रेष्ठ मुनि (पएह १०, ४)।
२,५-पत्र १४८) वासग, वासय समणुपत्त वि [समनुप्राप्त संप्राप्त (सुर १, . समच्छ प्रक[सम् + आस ] १ बैठना। पुत्री [ोपासक] श्रावक, जैन गृहस्थ । १८३, १०, १२० सिरि ४३०, महा)। २ सक. अवलम्बन करना । ३ अधीन रखना। (उवा)। स्त्री. सिया (उवाः रणाया १, समणुबद्ध वि[समनुबद्ध] निरन्तर रूप से वकृ. समच्छेत (उप ६६८ टी) १४-पत्र १८७)।
व्याप्त (गाया १, ३--पत्र ६१; प्रौप; उव)। समच्छ वि [समक्ष] प्रत्यक्ष का विषय | समणतरु (अप) न [समनन्तरम्] अनन्तर, समणुभूअ वि [समनुभूत] अच्छी तरह (संक्षि १५)। देखो समक्ख ।। बाद में, पीछे (सरण) ।
जिसका अनुभव किया गया हो वह (वै ६२)
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