Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 931
________________ सत्तंग-सत्थ पाइअसहमहण्णवो (कम्म, १६: पउम १७. १२३; पब ४६)। सताईसवाँ, २७ वाँ (पउम २७, ४२) सामर्थ्य (ठा ३, १-पत्र १०६; कुमाः प्रासू 'रह देखो रस = "दशन् (षड) रे स्त्री वीसविह विविंशतिविधा सताईस २६)। ४ विद्या विशेष (पउम ७, १४२)। [ति] सत्तर, ७० (सम ८१, कप्प पड़) प्रकार का (पराण १७-पत्र ५३४), वीसा म, मंत वि [मत् ] शक्तिवाला (ठा रिसि [ ऋषि] सात नक्षत्रों का मंडल- स्त्री. देखो वीस (हे १, ४; षड्)। सीइ ६-पत्र ३५२; संबोध ८ उप १३६ टो)विशेष (सुपा ३५४) । °वण्ण, वन्न पुं स्त्री [शीति सतासी, ८७ (सम १३) सत्ति पुंसप्ति अश्व, घोड़ा (पा)[पणे] १ वृक्ष-विशेष, सतौना (प्रौपः विशीतितम सतासोबॉ. सत्तिअ वि [सात्त्विक] सत्त्व-युक्त, सत्त्वभाग)। २ देव-विशेष (राय ८०)। वन्नव- ८७ वाँ (पउम ८७, २१)। प्रधान (सूअनि ६२: हम्मीर :६; स ४)। डिसय [पर्णावतंसक] सौधर्म देवलोक सत्तिअणा स्त्री [दे] आभिजात्य, कुलीनता सत्तंग वि [सप्ताङ्ग] , राजा, मन्त्री, मित्र, का एक विमान (राय ५६) + "विह वि कोश-भंडार, देश, किला तथा सैन्य ये सात सात्तवण्ण) देखो सत्त-वण्ण (सम १५२; [विध सात प्रकार का (जी १६; प्रासू राज्याङ्गवाला (कुमा)। २ न. हस्ति-शरीर सत्तिवन्न । पि १०३; विचार १४८)१०४: पि ४५१) वसइ, वीसा स्त्री के ये सात अवयव-चार पैर, ढूँढ, पुच्छ [मिति सताईस, २७ (पि ४४५: भग)। और लिंगः ‘सतंगपइट्टिय' (उवा १०१)। सत्तु पुं [शत्रु] रिपु, दुश्मन, वैरी (णाया सझ्य वि [ शतिक] सात सौ की संख्या १,-पत्र, कप्पू; सुपा ७)+ इ वि सत्तण्ह देखो स-त्तण्ड - स-तृष्ण । वाला (गाया १, १-पत्र ६४)4 °सट्र [जित् ] १ शत्रु को जीतनेवाला। २ पुं. सत्तत्थ वि [दे] अभिजात, कुलोन (दे ८; | वि [पष्ट] सड़सठवाँ, ६७वा (पउम ६७, एक राजा का नाम (प्राकू ६५) 'ग्य वि ५१), सढि देखो 'ट्रि (सम ७६), सत्त [न] १ रिपु को मारनेवाला (प्राकृ ६५) । सत्तम देखो सत्तम = सत्-तम । २. रामचन्द्र का एक छोटा भाई (पउम मिया श्री [सप्तमिका] प्रतिज्ञा-विशेष, २५, १४))°निहण [निन] वही पूर्वोक्त नियम-विशेष (अंत)। सिक्खावय वि सत्तर देखो स-त्तर % स-त्वर ।। अर्थ (पउम १०,६६) मद्दण वि [ मर्दन] [शिक्षावतिक] सात शिक्षाव्रतवाला (णाया सत्तर देखो सत्त-र = सप्त-दशन्, दश । शत्रु का मर्दन करनेवाला (सम १५२), सेण १, १२, औप)। हत्तर वि [सप्तत] सत्तल न [सप्तल] पुष्प-विशेष (गउड)। पुं[ सेन] एक अन्तकृद् मुनि (अंत ३)। सतहतरवा, ७७ वाँ (पउम ७७, ११८)। सत्तला स्त्री [सप्तला] लता-विशेष; नव हण देखो ग्घ (पउम ८०, ३८)। हत्तार स्त्री [सप्तति] १ संख्या-विशेष, सत्तली , मालिका का गाछ (पान; गा सतहतर की संख्या, ७७ । २ सतहतर संख्या- ६१६%; पउम ५३,७९) सत्तु ।'[सक्तु] सत्तू , सतुपा, भुजे वाला (सम ८५; भग; श्रा २८) हा अ सत्तल्ली स्त्री [ने. सप्तला] लता-विशेष, सत्तअ ) हुए यव आदि का चूर्ण (पि [धा] सात प्रकार का, सप्तविध (पि शेफालिका का गाछ (दे ८, ४)। ३६७ निचू १; स २५३; सुर ५, २०६; ४५) हुत्तर देखो हत्तरि (नव ८) सत्तवीसंजोयण देखो सत्तावीसंजोअग सुपा ४०६; महा)। ईस (अप) देखो वीसा (पि ४४५) (चंड) सत्तुंज न [शत्रुञ्ज] १ एक विद्याधर-नगर गण उइ स्त्री [°नवति सतानबे, ६७ (सम सत्ता स्त्री सत्ता] १ सद्भाव, अस्तित्व (मंदि । (इक) । २ पुं. रामचन्द्रजी का एक छोटा १८) गणव्य वि [ नवत] १ सतानवेवा, १३६ टी)। २ प्रात्मा के साथ लगे हुए कर्मों । भाई, शत्रुध्न (पउम ३२, ४७) ६७ वा (पउम ६७, ३०) । २ जिसमें सता- का अस्तित्व, कर्मों का स्वरूप से अप्रच्यव-- सत्तुंजय पुं [शत्रुञ्जय] १ काठियावाड़ में नबे अधिक हो वह, 'सत्ताणउयजोयणसए' अवस्थान (कम्म २,१,२५) । पालीताना के पास का एक सुप्रसिद्ध पर्वत (भग) रह (अप) देखो रह (पिंग)- सत्तावरी स्त्री [शतावरी] कन्द-विशेष, 'सत्ता- जो जैनों का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है (सुर ५, "विण्ण वन्न स्त्रीन [पञ्चाशत् ] १ बरी विराली कुमारि तह थोहरो गलोई य' २०३) । २ एक राजा का नाम (राज) । संख्या-विशेष, सतावन, ५७ । २ सतावन (पव ४; संबोध ४४; श्रा २०)। सत्तुंदम पुं [शत्रुन्दम] एक राजा का नाम संख्याबाला (पडि: पिंगः सम ७३ नव२) सत्तावीसंजोअण पुंद चन्द्र, चन्द्रमा (दे। (पउम ३८.४५) स्त्री. यात्रा (पिंग पि२६५, ४४७) ८, २२); 'सत्तावीसंजोपणकरपसरी जाव । सन्तन देखो सज(कुप्र १२) विन्न वि [पञ्चा] सतावनवाँ, ५७वाँ अज्जवि न होई' (वान १५) । | सत्तत्तरि स्त्री सप्तसपति] सतहत्तर, ७७ (पउम ५७, ३७) । वीस न [विंशति] सत्ति स्त्री [दे] १ तिपाई, तीन पाया वाला १ संख्या-विशेष, सताईस । २ सताईस की गोल काष्ठ-विशेष । २ घड़ा रखने का पलंग सत्य विशस्त] प्रशस्त, श्लाघनीय (चेइय संख्यावाला; 'एवं मत्तात्रीसं भंगा रोयब्या' की तरह ऊँचा काष्ठ-विशेष (दे ८,१) ५७२) (भग) वीसइ नो [°विंशति । वही पूर्वोक्त सत्ति स्त्री [काति] अन्न-विशेष (कुमा)। सत्य न [शन] हथियार, प्रायुध प्रहरण अर्थ (कुमा)) 1.सम वि ["विशतितम] २ त्रिशूल (पएह १, १--पत्र १८)। ३ । (प्राचा उप; भग; प्रासू १०५)। कास पुं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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