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पाइअसहमहण्णवो
सत्थ-सद्दाव
[कोश] शत्र--औजार रखने का थैला सत्थि प.स्त्री स्वस्ति] १ आशीर्वाद; 'सत्थि (ठा ७–पत्र ३६०; विसे २१८१)। ३ (णाया १,१:-पत्र १८१), वज्भ वि करेइ कविलो' (पउम ३५, ६२)। २ क्षेम, छन्द-विशेष (पिंग)। ४ नाम, पाख्या
["वध्य हथियार से मारने योग्य (णाया कल्याण, मंगल । ३ पुण्य प्रादि का स्वीकार (महा)। ५ प्रसिद्धि (प्रौप; रणाया १, १, १६-पत्र १६६)ोवाडण न [वपा- (हे २, ४५; संक्षि २१)1 मई स्त्री [मती] १ टी-पत्र ३)- वेहि विवेधिन्] टन] शस्त्र से चीरना (णाया १, १६-पत्र १ एक विप्र-स्त्री, क्षीरकदम्बक उपाध्याय की शब्द के अनुसार निशाना मारनेवाला (णाया २०२; भग)।
स्त्री (पउम: १,)। २ एक नगरी (उप १, १८--पत्र २३६; गउड) वाइ पुं सत्थ वि [दे] गत, गया हुआ (दे ८, १)।
निवेश-विशेष (स १०३)। [पातिन्] एक वृत्त वैताब्य पर्वत (ठा २, सत्थ देखो स-स्थ = स्व-स्थ । देखो सोस्थि ।
३-पत्र ६६ ८०४,२–पत्र २२३; इक)। सत्थ न स्वास्थ्य स्वस्थता (णाया १, सस्थिअस्तिस्तिक] १ माङ्गलिक विन्यास- सद्दल न [शाद्वल] हरित हरा घास (पाम:
विशेष, मंगल के लिए की जाती एक प्रकार पाया १, १-पत्र २४; गउड)।सत्थ पुं[सार्थ] १ व्यापारी मुसाफिरों का की चावल प्रादि की रचना-विशेष (श्रा २७
सद्दलिय वि [शादलिल] हरा घासवाला समूह (गाया १, १५-पत्र १६३; उत्त सुपा ५२)। २ स्वस्तिक के आकार का
प्रदेश (गउड)। ३०, १७; बृह १; अणु; सुर १. २१४)। पासन-बन्ध (बृह ३)। ३ एक देव-विमान
सद्दह सक [श्रद् + धा] श्रद्धा करना, विश्वास २ प्रारिण-समूह (कुमाः हे १,६७)। ३ वि. (देवेन्द्र १४०) पुर न [पुर] एक नगर
करना, प्रतीति करना। सद्दहइ. सद्दहामि अन्वर्थः यथार्थनामा (चेइय ५७२) ३ वह, का नाम (श्रा २७) । देखो साथि
(हे ४, ६, भगः उवा)। भवि. सद्दहिस्सइ वाह पंस्त्री [वाह] सार्थ का मुखिया. संघ- सथिवि सार्थिक] १ सार्थ-सम्बन्धी, (1ि ५३०)। वकृ. लद्दहत, सद्दनाण नायक (श्रु ५५उवाः विपा १. २-पत्र सार्थ का मनुष्य प्रादि (कुप्र ६२; स १२६
सदहाण (नव ३६; हे ४, ६ श्रु २३) । ३१) । स्त्री. ही (उवा; विपा १, २-पत्र सुर ६, १९६; सुपा ६५१; धर्मवि १२४) । संकृ. सद्दहित्ता (उत २६, १)। कृ. ३१), वाहिक [वाहिन्] वही पूर्वोक्त २ . साथं का मुखिया (बृह १)
सहहियव्व (उवः सं ८६: कुप्र १४६)। अर्थ (भवि)। ह देखो वाह धर्मवि ४१ः |
सस्थिअन[सक्थिक] ऊरु, जाँघ (स २६२) सदहग देखो सद्दहाण (हे ४, २३८; कुमा)। सण) हिव पुंधिप] सार्थ-नायक (सुर २, ३२; सुपा ५६४)। हिवइ पुं
सत्थिआ स्त्री [शस्त्रिका] छुरी (प्राप्र)। सद्दहणया। स्त्री [श्रतान] श्रद्धा, विश्वास, [धिपति वही अर्थ (सुपा ५९४)
सत्थिग देखो सस्थिअ = स्वस्तिक (पंचा सद्दहणा प्रतीति (ठा ६-पत्र ३५५, सत्थ पुंन [शास्त्र] हितोपदेशक ग्रन्थ, हित
८, २३)।
पंचभा)। शिक्षक पुस्तक, तत्त्व-ग्रंथ (विसे १३८४० सथिल्ल देखो सथिअ = साथिक (सुर १०, | सद्दहा देखो सड्ढा = श्रद्धा (सट्ठि १२७)। कुमा), 'नाणासत्थे सुएंतोवि' (श्रा ४)।
सदहाण न [श्रद्धान] श्रद्धा. विश्वास (श्रावक °ण विज्ञाशास्त्र का जानकारः 'समि- सात्थल्लय देखो सत्य = सार्थ (महा: भवि) - ६२ पव ११६: हे४.२३)
सत्थराणू (उप ६८६ टी उप पृ ३२७) सत्थु वि [शास्तु] शास्ति-कर्ता, सीख देने- सद्दहाण देखो सह ।'गार वि कार] शान-प्रणेता (धर्मसं वाला (प्राचाः सूत्र २,५,४१, १३,२) सहहिअ वि श्रिद्धित] जिस पर श्रद्धा की १००३; सिक्खा ३१)। त्थ पुं थ ]| सत्थुअ देखो संथुअ (प्राकृ ३३; पि ७६) गई हो वह, विश्वस्त (ठा ६--पत्र ३५५; शास्त्र-रहस्य (कुप्र ६, २०६; भवि) यार सदा देखो सआ = सदा (राज)।
पि ३३३)। देखो गार (स ४, धर्मसं १८२), "वि वि सदावरी देखो सयावरी- सदावरी (उत्त
सदाइद (शौ) वि [शब्दायित पाहूत, [विद्] शास्त्र ज्ञाता (स ३१२) ३६, १३६)
बुलाया हुआ (नाट-मृच्छ २८६)। सत्थइअ वि [द] उत्तेजित (दे ८, १३)।
सदिस (शौ) देखो सरिस = सदृश (नाट- सदाण देखो संदाण । सद्दाणइ (षड् )।सत्थर पुं[दे] निकर, समूह (दे ८, ४)। |
मृच्छ ११३)
सहाल बि [शब्दवत् ] शब्दवाला (हे २, सत्थर । पुन त्रिस्तर] शय्या, बिछौना सद्द अक [शब्दय ] १ आवाज करना। १५६ पउम २०, १०० प्राप्र; सुर ३, ६६ सत्थरय) (दे८.४ टी सुपा ५८३, पाम:
२ सक. आह्वान करना, बुलाना। सद्दइ पान; मौप)।षड् ; हास्य १३६ सुर ४, २४४) । (पिंग)।
सद्दाल न [दे] नूपुर (दे ८, १०; षड्)। सत्थव देखो संथव = संस्तव (प्राकृ ३३; | सद्द पुंन [शब्द] १ ध्वनि, आवाज (हे १, पुत्त पुं[पुत्र] एक जैन उपासक (उवा)। पि ७६)।
२६०; २, ७६; कुमा; सम १५); 'सद्दाणि सहाव सक [शब्दय , शब्दायय ] सत्थाम देखो म-स्थाम= स-स्थामन् । विरूवरूवाणि' (सूत्र १, ४, १, ६), 'सद्दाई' आह्वान करना, बुलाना । सद्दावेइ, सद्दाविति, सत्थाव देखो संभव = संस्तव (प्राकृ ३३)। (भाचा २, ४, २, ४)। २ पृ. नय-विशेष । सद्दावेंति (प्रौपा कप्प; भग)। सद्दावेहि
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