Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 879
________________ विद-विहर विह पुंखी [विध] १ भेद, प्रकार ( उवा कप्प ) । २ पुंन. आकाश, गगन (भग २०, २- पत्र ७७५ श्राचा १, ८, ४, ५ दसनि १, २३) । - बिही [दे] (दे ७, ६३ ) 1 विहंग पुं [विहङ्ग] पक्षी, चिड़िया, पखेरू (पान) गउड कप सुर ३, २४५: प्रासू १७२ ) + णाह पुं [नाथ ] गरुड़ पक्षी (गउड ८२३ ८२४ १०२२) । - विहंग [विभङ्ग] विभाग, टुकड़ा ( परह १, ३ - पत्र ५४; गउड ४०४ ) । देखो विभंग (गउड भवि ) - विहंगम [ग]पक्षी चिड़िया (उड श मोह ३२: श्रु ७७; सरण) । - हिंज तक [वि] भांगना, तोड़ना, विनाश करना सं. हिजिवि (ब) (भ) 1 की बैंगन का गा [विभक्त] वटामा 'आगम वृत्तिपमाणविधि (भवि) 1विट क [वि + खण्डय ] विच्छेद विहंड सक करना, विनाश करना | विडइ (भवि) 1 विहंडण न [विखण्डन] १ विच्छेद, विनाश (सम्मत्त ३०)। २ वि. विच्छेद - कर्ता, विनाशक (सण) 1 विडव [विभण्डन ] भाँड़नेवाला, गालिसूचकः 'भएसि जव (गा ε१२) । - विडिअ वि [विखण्डित ] विनाशित (पिंग) सरण) । विहग पुं [ विहग ] पक्षी, चिड़िया (पउम १४, ८०; स ६६७; उत्त २०, ६० ) । हिवपुं [[धिप] गरुड़ पक्षी ( सम्मत २१६) । विहग पुंन [विहायस ] आकाश, गगन । 'गइ स्त्री [गति ] १ आकाश में गमन (पंचा ३, ६) । २ कर्म- विशेष, श्राकाश में गति कर सकने में कारण-भूत कर्म ( सम ६७ कम्म १, २४३ ४३) । Jain Education International विहट्ट देखो विघट्ट । विहट्टइ (भवि ) 1विहट्ट [विपति] बलि द्विषाभूत ( से २, ३२) । १०२ , पाइअसद्दमण | विहड अक [ वि + घट] नियुक्त होना, अलग होना, टूट जाना । विहडद, विहडे (महाः प्राह ७१) वह वित से १४) । ~ विहड तक [विघटय ] तोड़ना खडित - करना । संकृ. विहडिऊण (सण) । विहड देखो विहल = विह्वल ( से ४,५४) । - विहडण न [विघटन] १ अलग होना, वियोग (११६२४३) २ करना । ३ खोलना 'तह भोरगा जह मउलियलो उडविणे वि श्रसमत्था' ( वजा ८८) । विहडण पुं [] श्रनथं ( षड् ) । - विणा श्री [विपटना ] वियोजन, अलग करना संघवावावडे विहिणा जो डिप्रो' (धर्मवि ४२) । डिफड वि [दे] १ व्याकुल व्यय है २, १७४) । २ स्वरित, शीघ्र (भवि ) । पिडा भी [विघटा] विमेव अक्ट फुट; 'जह मह कुडु बविहडा न घडइ कइयावि (४२१) । विद्यायक [विघटय ] वियुक्त करना, अलग करना । विहडावइ (महा) । विहडावण न [विघटन] वियोजन (भवि ) । - विडाविय वि[विघटित ] वियोजित ( सार्धं 08) 1~ विडिय [विपटित] वियुक्त, विभिन्न (महा ३६, ५) २ (महा ३० ३०) । चिणदेखी निति ( प ४१०) विहन्तु (१५ १,२१) - विहणु वि [दे] संपूर्ण, सकल (सण) ।विहण न [दे] पिंजन, पींजना, धुनना (दे ७, ६१) । - वित्त देखो विभत्त ( से ७, १५; चेइय २७४ सुर १, ४७; सुपा ३६९ ) । - वित्ति देखो विभत्ति ( पउम २४, ५, उप १४७) - विहन्तु देखोवण | विहत्य वि[विहस्त] १ व्याकुल, व्यग्र (से १२, ४९ कुप्र ४०६; सिरि ३८६६ ८३६६ सम्मत्त १६१) । २ कुशल, दक्षः 'पहरणवि For Personal & Private Use Only ာင် हत्थहत्था ( कुप्र १०३ २०६ ) । ३पुं. विशिष्ट हाथ, किसी वस्तु से युक्त हाथ 'पढमं उत्तरिऊणं धवलो जा जाइ पाहुडविहत्थो' (सिरि ६६१ ); ' सद्दवभारण विहत्थो' ( उव ) । ४ फ्लोब ( सम्मत्त १६१) । - विहत्थि पुंत्री [वितस्ति ] परिमाण-विशेष, बारह अंगुल का परिमाण (हे १, २१४; कुमाः ए १५७)। विहदि श्री [विधृति] विशेष २ निहित] ( संक्षि 8 ) 1 विदन्न सक [वि + हन्] १ मारना, विहम्म } ३ अतिक्रमण करना। विनई (उत्त २, २२) कर्मवित्रि (उत २ १) वह विम्ममाण, विमाण (२६२ उत २७, ३) । कवक विहम्ममाण (सूत्र १, ७, ३०) विम्म वि [विधर्मन ] धर्माला विभिन्न विण मोरासा वत्थु विम्मम्म' (विसे २२४१) । - विहम एक [विधर्मय ] धर्मरहित करना। बिम्मेमा (दिपा १, १ - ११) - [वैधर्म्य ] चिताविरुद्ध २ तर्कशास्त्र प्रसिद्ध उदाहरण-भेद, दृष्टान्तसम्म १४१) - विहम धर्मता विमाणा श्री [विधर्मणा विनन] क थंना, पीड़ा ( परह १, ३ – पत्र ५३३ विसे २३५०) - विद्दय वि [दे] पंडित घुगा हुआ (३७, ६४) । विवि [विहत] १ मारा हुआ, श्राहत विहय देखो विहग = विहग (गउड सण) 1( पउम २७, २८) २ विनाशित (महा) । - विहय देखो विव= विभव (दे ३ २९; नाट - मालवि ३३) ।बिहर एक [वि.] कड़ा करना खेलना । २ रहना, स्थिति करना। ३ सक गमन करना, जाना । विहरइ (हे ४, २५६; उप उप विहरति (भग), विहरे ( प १०४) भूका विहारिणु विहरिभा ( उत्त २३, ९पि ३५० ५१७ ) । भवि. (२२) वह बिहत و www.jainelibrary.org

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