________________
पाइअसद्दमहण्णवो
८२७
समान धर्मवाला (द्र १७) । २ तरफदार (कुप्र इच्छावाला (राज) । कामणिज्जरा स्त्री | उत्सुक (से १, ४६)। त्तर वि [त्वर] ११६) । ३ अपना पक्ष (सम्म २१) । पाय | [कामनिर्जरा] कर्म-निर्जरा का एक भेद | १ त्वरा-युक्त, वेगवाला । २ न. शीघ्र, न [पात्र] निज का नाम, खुद की संज्ञा (राज) काममरण न [काममरण] | जल्दी (सुपा १५६)। द्ध वि [ ] (राज)। पभ वि [प्रभ] निज से ही मरण-विशेष, पण्डित-मरण (उत्त ५, २) अर्ध-सहित, डेढ़ (पउम १८, ५४) । धवा शोभनेवाला (सम १३७)। ब्भाव, भाव केय वि [केत] १ गृहस्थ । २ प्रत्याख्यान- स्त्री [ववा] सौभाग्यवती स्त्री, जिसका पुं[ भाव] प्रकृति, निसर्ग; 'कणियारतरू विशेष (पव ४)। क्खर वि [क्षर] | पति जीवित हो वह स्त्री (सुपा ३६५) ।। नवकरणपारसुंदेरदरिप्रसन्भायो' (कुमा ३, विद्वान्, जानकार (वज्जा १५८ सम्मत्त 'नय वि [नय] न्याय-युक्त, व्याजबी (सुपा ४४ सम्म २१, सुर १, २७, ४, १२५); १४३)। गार वि [गार] गृहस्थ (ोघभा ५०४) । पक्ख वि [पक्ष १ पाखवाला, 'कुवियस्स पाउरस्स य
२०)। 'गार वि [पर प्राकार-युक्त | पाँखों से युक्त (से २, १४)। २ सहायता वसरणासत्तस्स पायरत्तस्स ।
(धर्मवि ७२) । गुण वि [गुण] गुणवान्, करनेवाला, सहायक, मित्र (पव २३६; स मत्तस्स मरंतस्स य
गुणी (उव; सुपा ३४५; सुर ४, १६६)। ३६७)। ३ समान पाववाला, दक्षिण आदि सब्भावा पायडा हुति"
'ग्ग वि [ ] श्रेष्ठ, उत्तम (से ६, ४७)। तरफ से जो समान हो वह (निर १, १)
(प्रासू ६४)। गह वि [ग्रह ] अरक्त, ग्रहण-युक्त, । 'पुन्न वि [पुण्य] पुण्यशाली, पुण्यवान 'भावन्नु वि [ भावज्ञ] स्वभाव का जान- दुष्ट ग्रह से आक्रान्त (पान बव १) । घिण (सुपा ३८४), पभ वि [प्रभ] प्रभाकार (पउम ८६, ४१), "यण देखो जण
वि [घृण] दयालु (अच्चु ५०) । चक्खु, युक्त (सम १३७, भग)। परिआव, (उवा; हे २, ११४; सुर ४, ७६; प्रासू
चक्खुअवि [चक्षुष , चक्षुष्क नेत्र- परिताव वि ["परिताप] परिताप७६, ६५), रूय, रूव न [ रूप] स्व
वाला, देखता (पउम ६७, २३, वसुः सं संताप से युक्त (श्रा ३७ षड्)। "प्पिसभाव (गउड धपंसं ६१३; कुमाः भविः सुर
७८ विपा १, १-पत्र ५) चित्त वि ल्लग वि [°पिशाचक] पिशाच-गृहीत, पागल २, १४२)। संवेयण न [संवेदन] स्व
[चित्त चेतनावाला, सजीव (उवाः पडि)।- (पएह २, ५-~-पत्र १५०)। प्पिवास वि प्रत्यक्षज्ञान (धर्मसं ४४)+ हाअ, हाव 'चेयण वि [चेतन] वही अर्थ (विसे
[पिपास] तृषातुर, सतृष्ण (हे २, ६७) देखो भाव (से ३, १५, ७, १७; गउड; १७५३) चित्त देखो चित्त (प्रोघ २२; |
"प्पिह वि [स्पृह] स्पृहावाला (दे ७, सुर ३, २२; प्रासू २; १०३), हाववाद
सुपा ६२५, ६२६; पि १६६; ३५०)। २६) फंद वि [स्पन्द] चलायमान [ भाववाद] स्वभाव से ही सब कुछ
"जिय देखो जोअ (सुर १२, २१०)। (दे८,८)। °फल, फल वि [फल] होता है ऐसा माननेवाला मत (उप १००३)।
जोइ विज्यातिष् ] प्रकाश-युक्त (पि सार्थक (से १५, १४ हे २, २०४ प्राप; हअन [हित] १ निज का भला, स्वीय
४११; सूत्र १, ५, १, ७)। जोणिय वि उप ७२८ टी)। "ब्बल वि [बल] बल. अपनी भलाई। २ वि. निज का भला करने
वान्, बलिष्ठ (पिंग)+ भल देखो फल [ योनिक] उत्पत्ति-स्थानवाला, संसारी (ठा वाला, स्वहितकर (सुपा ४१०)।
२, १--पत्र ३८), 'जीअ, जीव वि (हे १, २३६ कुमा), मण वि [मनस ] स वि [स] १ सहित, युक्त (सम १३७; [जीव] १ ज्या-युक्त, धनुष की डोरी- १ मनवाला, विवेक-बुद्धिवाला (धरण २२) । भगः उवाः सुपा १६२, सण)।२ समान, वाला । २ सचेतन, जीववाला (पि १९६; से
२ समान मनवाला, राग-द्वेष आदि से रहित, तुल्या 'सगुत्ते', 'सपक्खे' (कप्प, निर १, १)। । १, ४५) । ३ न. कला-विशेष, मृत धातु
मुनि, साधु (अणु)। मणक्ख वि [ मनस्क] अण्ह वि [तृष्ण] उत्कण्ठित, उत्सुक वगैरह को सजीवन करने का ज्ञान (प्रौप;
पूर्वोक्त अर्थ (सूत्र २, ४, २) मय वि (से १२, ५८ गा ३४८; गउड सुपा ३८४)। रायः जं २ टी-पत्र १३७), 'ड्ढ वि
[मद] मद-युक्त (से १, १६; सुपा९८८)। अर वि [कर] कर-सहित (से २, २६)। [I] डेढ़ । 'ड्ढकाल [र्धिकाल]
महिड्ढि अ वि [ महद्धिक] महान् वैभवअर वि [ गर] विष-युक्त, जहरीला (से तप-विशेष, पुरिमड्ड तप (संबोध ५८)। वाला (प्रासू १०७) । मिरिईअ, "मिरीय २, २६) इण्ड देखो अग्ह (सुपा °णप्पय, णप्फद, गप्फय वि [ नखपद] वि [मरीचिक] किरण-युक्त (भगः प्रौप; ४१२)4 °उण वि [गुण] गुण-युक्त (सुपा नख-युक्त पैरवाला, सिंह आदि श्वापद जंतु ठा ४, १-पत्र ३२६)। 'मेर वि १८५), उग्ण, उन्न वि [ पुण्य] पुण्य- (सूत्र २, ३, २३, ठा ४, ४-पत्र २७१ [मर्याद] मर्यादा-युक (ठा ३, २-पत्र युक्त, पुण्य-शाली (महा; सुर २,६८; सुपा सूत्र १, ५, २, ७; परण १-पत्र ४६ १२६)। यह वि [तृष्ण तृष्णा-युक्त ६३५) । ओस वि [तोष] सन्तुष्ट (उप पि १४८)। णाह वि [नाथ] स्वामी- (गउड, सुपा ३८४M याण वि [ज्ञान] ७२८ टी) ओस वि ['दोष दोष-युक्त वाला, जिसका कोई मालिक हो वह (विपा सयाना, जानकार (सुपा ३८५), योगि (उप ६२८ टो), काम वि [ काम] १ समृद्ध १, २-पत्र २७, रंभाः कुमा)। त्तण्ड वि [योगिन्] १ व्यापार-युक्त, योगवाला। मनोरथवाला (स्वप्न ३०)। २ मनोरथ-युक्त. वि [तृष्ण] तृष्णा-युक्त, उत्कण्ठित, २ न. तेरहाँ गुण स्थानक (कम्म २, ३१)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org