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संकिट-संख पाइअसहमहण्णवो
८३१ संकि? देखो संकिलिट्र (राज)।
संकुचिय देखो संकुइय (दस ४.१) संकोड पुं[संकोट] सकोड़ना, संकोच (पएह संकिण्ण वि [संकीर्ण] १ सँकरा, तंग, अल्पा- | संकुड वि [संकुट] सँकरा, संकीणं, संकुचित;| १, ३-पत्र ५३) । वकाशवाला (पाना महा)।२ व्याप्त (राज)। 'अंतो य संकुडा बाहिं वित्थडा चंदसुराणं संकोडणा स्त्री [संकोटना ] ऊपर देखो ३ मिश्रित, मिला हुआ (ठा ४, २, भग २५, (सुज्ज १६)।
(राज)।७ टी-पत्र ६१९)। ४ पुं. हाथी की एक संकुडिअ वि [संकुटित] सकुचा हुमा, संकु- संकोडिय वि [संकोटित] सकोड़ा हुमा, जाति (ठा ४,२-पत्र २०८)
चित (भग ७,६-पत्र ३०७ धमस ३८७ संकोचित (पराह १.३-पत्र ५३; विपा संकित देखो संकिअ (णाया १, ३-पत्र स ३५८ सिरि ७८६)
१, ६–पत्र ६८ स ७४१)।संकुद्ध वि [संक्रुद्ध] क्रोध-युक्त (वज्जा १०)M संकित्तण न [संकीर्तन] उच्चारण (स्वप्न
संख पुंन [शङ्ख] १ वाद्य-विशेष, शंख (मंदि; संकुय देखो संकुच । संकुयइ (वज्जा ३०)।
रायः जी १५, कुमाः दे १, ३०)। २ पुं. वकृ. संकुयंत (वज्जा ३०) संकिन्न देखो संकिण्ण (ठा ४, २, भग
ज्योतिष्क ग्रह-विशेष (ठा २,३-पत्र ७८)। २५, ७)।.
संकुल वि [संकुल] व्याप्त, पूर्ण भरा हुआ ३ महाविदेह वर्ष का प्रान्त-विशेष, विजयसंकिर वि [शङ्कित] शङ्का करने की प्रादत
(से १, ५७; उवः महा; स्वप्न ५१, धर्मवि क्षेत्र विशेष (ठा २, ३-पत्र ८०)। ४ नव
५५; प्रासू १०) वाला, शंकाशील (गा २०६, ३३३, ५८२;
निधि में एक निधि, जिसमें विविध तरह के संकुलि। देखो सक्कुलि (पि ७४ ठा ४, बाजों की उत्पत्ति होती है (ठा -पत्र सुर १२, १२५; सुपा ४६८)। संकुली, ४-पत्र २२६ पव २६२ प्राचा
४४६, उप ६८६ टी)। ५ लवण समुद्र में संकिलिट्ठ वि [संक्लिष्ट ] संक्लेश युक्त, २, १, ४, ५)।
स्थित वेलन्धर-नागराज का एक प्रावास-पर्वत संक्लेशवाला (उब प्रौपः पि १३६) । संकुसुमिअ वि [संकुसुमित] अच्छी तरह
(ठा ४, २--पत्र २२६; सम ६८)।६ उक्त संकिलिस्स अक[सं+ क्लिश] १ क्लेश- | पुष्पित (राय ३८)
पावास-पर्वत का अधिष्ठाता एक देव (ठा ४, पाना, दुःखी होना । २ मलिन होना । संकि- संकेअ सक [सं+ केतय.] १ इशारा
२--पत्र २२६) । ७ भगवान् मल्लिनाथ के लिस्सइ, संकिलिस्संति (उत्त २६, ३४ भगः करना । २ मसलहत करना । संकृ. संकेइय
समय का काशी का एक राजा (णाया १, औप)। वकृ. संकिलिस्समाण (भग १३, जोगिरिसमेग' (सम्मत्त २१८)।
८-पत्र १४१)। ८ भगवान महावीर के १-पत्र ५६९) संकेअ [संकेत १ इशारा, इंगित (सुपा
पास दीक्षा लेनेवाला एक काशी-नरेश (ठा संकिलेस पुं[संहश] १ असमाधि, दुःख, ४१५; महा)। २ प्रिय-समागम का ८--पत्र ४३०)। तीर्थंकर-नामकर्म उपाकष्ट, हैरानी (ठा १०-पत्र ४८९; उव)।
गुप्त स्थान (गा ६२६; गउड )। ३ वि. जित करनेवाला भगवान् महावीर का एक २ मलिनता, अविशुद्धि (ठा ३, ४-पत्र
चिह्न-युक्त । ४ न. प्रत्याख्यान-विशेष (प्राव) श्रावक (ठा ६-पत्र ४५५, सम १५४ पव १५६ पंचा १५, ४)। संकेअवि [साङ्केत] १ संकेत-संबन्धी । २
४६ विचार ४७७) । १० नववें बलदेव का संकीलिअ वि [संक्रीलित] कील लगाकर न. प्रत्याख्यान-विशेष (पव ४)
पूर्वजन्मीय नाम (पउम २०, १९१)। ११ संकेइअ वि [संकेतित] संकेत-युक्त (था | जोड़ा हुअा (से १४, २८)।
एक राजा (उप ७३६)। १२ एक राज-पुत्र १४ धर्मवि १३४; सम्मत्त २१८)। (सुपा ५६६)। १३ रावण का एक सुभट संकु [शङ्क] १ शल्य अस्त्र । २ कोलक,
संकेल्लिअ वि [दे] सकेला हुआ, संकुचित (पउम ५६,३४)। १४ छन्द-विशेष (पिंग)। खूटा, कील; 'अंतोनिविट्ठसंकुव्व' (कुप्र ४०२;
किया हुआ (गा ६६४) राय ३०; प्रावम) । कण्ण न [कर्ण एक
१५ एक द्वीप । १६ एक समुद्र । १७ शंखवर संकेस देखो संकिलेस (उप ३१२; कम्म द्वीप का एक अधिष्ठायक देव (दीव)। १८ विद्याधर-नगर (इक) ५, ६३)।
पुंन. ललाट की हड्डी (धर्मवि १७ हे १, संकुइय वि [संकुचित] १ सकुचा हुआ, संकोअ सक [सं+ कोचय ] संकुचित १०)। १६ नखी नामका एक गन्ध-द्रव्य । संकोच-प्राप्त (औप; रंभा)। २ न. संकोच |
करना । वकृ. संकोअंत (सम्मत्त २१७) । २० कान के समीप की एक हड्डी। २१ एक (राज)।
संकोअ [संकोच संकोच, सिमट (राय नाग-जाति । २२ हाथी के दाँत का मध्य संकुक पुं[शङ्कक] वैताब्य पर्वत की उत्तर
१४० टीः धर्मसं ३६५; संबोध ४७)। भाग । २३ संख्या-विशेष, दस निखर्व की श्रेणी का एक विद्याधर-निकाय (राज)।
संकोअण न [संकोचन] संकोच, सकुचाना संख्यावाला (हे १, ३०)। २५ अाँख के संकुका स्त्री [शङ्कका] विद्या-विशेष (राज)
(दे ५, ३१; भग; सुर १, ७६; धर्मवि समीप का अवयव (णाया १, ८-पत्र संकुच अक [ सं + कुच् ] सकुचना, संकोच
१३३) उर देखो 'पुर (ती ३; महा) । करना । संकुचए (प्राचाः संबोध ४७) वकृ. संकोइय वि [सकोचित] संकुचित किया णाभ पुं [ नाभ] ज्योतिष्क महाग्रह-विशेष संकुचमाण, संकुचेमाण (प्राचा)। हुमा, सकेला हुआ (उप ७२८ टी)। (सुज्ज २०) 'णारी स्त्री ["नारी छन्द
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