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८३४ पाइअसद्दमहण्णवो
संगहिअ-संघट्टा संगहिअ वि [संग्रहिक] संग्रहवाला, संग्रह- संगिल्ल वि [सङ्गवत् ] बद्ध, संग-युक्त संगोविअ वि [संगोपित] १ छिपाया हुआ नय को माननेवाला (विसे २८५२) । (पान)।
(स ८६)। २ संरक्षित (महा)। संगहिअ वि [संग्रहीत]१ जिसका संचय ! संगिल्ल देखो संगेल्ल (राज)।
संगोवित्तु । वि [संगोपयितु] संरक्षण-कर्ता किया गया हो वह (हे २, १९८)। २ संगिल्ली देखो संगेल्ली (राज)।
संगोवेत्तु (ठा ७-पत्र ३८५) ।। स्वीकृत, स्वीकार किया हुआ (सरण)। ३ संगिहीय वि संग्रहीत]१ आश्रित (ठा संघ सक [कथ ] कहना। संघइ (हे ४, पकड़ा हुआ; 'संगहिरो हत्थी' (कुप्र८१)। ८-पत्र ४४१)। २ देखो संगहिअ = २), संघसु (कुमा) । देखो संगिही। संगृहीत ।
संघ पुं[संघ] १ साधु, साध्वी, श्रावक और संगा सक [सं+गै] गान करना। कवकृ. संगीअन [संगोत] १ गाना, गान-तान श्राविकाओं का समुदाय (ठा ४, ४–पत्र
संगिज्जमाण (उप ५९७ टी)। । (कुमा)। २ वि. जिसका गान किया गया २८१; दिः महानि ४; सिग्घ १, ३, ५) । संगा स्त्री [दे] वल्गा, घोड़े की लगाम (दे हो वह तेण संगोप्रो तुह चेव गुणग्गामो'
२ समान धर्मवालों का समूह (धर्मसं (सुपा २०)
१८८)। ३ समूह, समुदाय (सुपा १८०)। संगाम सक [ सडग्रामय 7 लड़ाई करना। संगुण सक [सं+गुगय ] गुणकार ४ प्राणि-समूह (हे १, १८७)। दास पुं
[दास] एक जैन मुनि और ग्रंथ-कतो (ती संगामेइ (भगः तंदु ११)। वकृ. सगामेमाण करना। संगुगए (सुज्ज १०, ६ टी)।
३, राज)। पालिय, वालिय [पालित (णाया १, १६-पत्र २२३, निर १, १)। संगुण वि [संगुण] गुणित, जिसका गुणकार | संगाम पुं[सनाम] लड़ाई, युद्ध (प्राचा; .
एक प्राचीन जैन मुनि, जो आर्यवृद्ध मुनि के किया गया हो वह (सुज्ज १०, ६ टी)।
शिष्य थे (कप्प; राज)। पात्र महा) । सूर पुं [शूर] एक राजा संगुणिअ वि [संगुणित] ऊपर देखो (प्रोध ,
संघअ वि [संहत] निबिड़, सान्द्र (से १०, का नाम (श्रु २८)। २१, देवेन्द्र ११६; कम्म ५, ३७)।
२६)। संगामिय वि [सामामिक] संग्राम-संबंधी, संगुत्त वि [ संगुप्त ] १ छिपाया हुआ, संघस संघर्ष१ घिसाव. रगड । २ लड़ाई से संबन्ध रखनेवाला (ठा ५, १-पत्र प्रच्छन्न रखा हुआ (उप ३३६ टी)। २
प्राघात, धक्का (णाया १, १-पत्र ६५ ३०२, प्रौप)।
गुप्ति-युक्त, अकुशल प्रवृत्ति से रहित (पव श्रा २८)। संगामिया श्री [साङग्रामिकी] श्रीकृष्ण १२३)।।
संघट्ट सक [सं+ घट्ट] १ स्पर्श करना, वासुदेव की एक भेरी, जो लड़ाई की खबर संगेल्ल ' [दे] समूह, समुदाय (दे ८, ४;
छूना । २ अक. प्राघात लगाना। संघट्टइ देने के लिए बजाई जाती थी (विसे १४७६)। वब १)।
(भवि), संघट्ट इ (णाया १, ५-पत्र ११२; संगामुडामरी स्त्री सङग्रामोडामरी विद्या- संगेही स्त्री [दे] १ परस्पर अवलम्बन;
भग ५, ६-पत्र २२६), संघट्टए (दस ८, विशेष, जिसके प्रभाव से लड़ाई में आसानी हत्थसंगेल्लीए' (गाया १, ३-पत्र १३)।
७)। वकृ. संघटुंत (पिंड ५७५)। संकृ. से विजय मिलती है (सुपा १४४) २ समूह, समुदाय (भग ६, ३३-पत्र
संघट्टिऊण (पव २)। संगार ([दे] संकेत (ठा ४, ३-पत्र ४७४ आप) .
संघट्ट पुं[संघट्ट] १ आघात, धक्का, संघर्ष २४३, णाया १, ३, प्रोघभा २२, सुख २, सर सख २. संगोढण वि [दे] व्रणित, व्रण-युक्त (दे
(उवः कुप्र १६; धर्मवि ५७सुपा १४)। १७; सूअनि २६ धर्मसं १३८८ उप ३०६)। ८, १७) ।
२ अर्ध जंघा तक का पानी (ोघभा ३४)। संगाहि वि [संग्राहिन्] संग्रह-कर्ता (विसे
संगोप्फ [संगोफ] बन्ध-विशेष, मर्कटसंगोफ बन्ध रूप गुम्फन (उत्त २२, ३५)
३ दूसरा नरक का छठवाँ नरकेन्द्रक--स्थान १५३०)। संगोल्ल न [दे] संघात, समूह ( षड् )।
विशेष (देवेन्द्र ६)। ४ भीड़; जमावड़ा संगि वि [सङ्गिन संग-युक्त (भगः संबोध
सगाल्लो स्त्री [दे] समूह, संघात (दे ८, ४) (भाव) । ५ स्पर्श (राय)। ७; कप्पू)
संगोव सक [सं+ गोपय 1१ छिपाना, संघट्ट वि [संघट्टित] संलग्न (भवि)। संगजमाण देखो संगा = सं + गै।
गुप्त रखना। २ रक्षण करना। संगोवइ संघट्टण न [संघटन] १ संमर्दन, संघर्ष संगिण्ह देखो संगह =सं + ग्रह । संगिएहइ (प्राकृ६६)। वकृ. संगोवमाण,संगोवेमाण (णाया १,१--पत्र ७१; पिंड ५८६)। २ (विसे २२०३)। कर्म. संगिज्जते (विसे (णाया १, ३-पत्र ६१; विपा १, २- स्पर्श करना (राज)। २२०३)। वकृ. संगिण्हमाण ( भग ५, पत्र ३१)।
संघट्टणा स्त्री [संघट्टना] संचलन, संचार ६-पत्र २३१) । संकृ. संगिण्हित्ताणं (पि संगोवग वि [संगोपक] रक्षण-कर्ता (गाया 'गब्भे संघट्टणा उ उठेंतुवेसमाणीए' (पिंड
१,१८-पत्र २४०)। संगिण्हण न [संग्रहण] आश्रय-दान (ठा संगोवाव देखो संगोव। संगोवावसु (स संघट्टा स्त्रो [संघट्टा] वल्ली-विशेष (पएण ८-पत्र ४४१) । देखो सगहण ।
।१-पत्र ३३)।
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