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५४०)।
पाइअसहमहण्णवो
संभोगि-संरंभ संभोगि वि [संभोगिन् ] देखो संभोइअ समाणेमो (भविः उवा, महा: कप्पा पि समुच्छिम वि [संमूच्छिम] स्त्री-पुरुष के (कुप्र १७२)
४७०)। भवि. संमाणेहिति (पि ५२८)। समागम के बिना उत्पन्न होनेवाला प्राणी संभोगिय देखो संभोइत्र (ठा ३, ३--पत्र वकृ. संमाणंत, संमाणेत (सुपा २२४; (प्राचा ठा ५, ३–पत्र ३३४ सम १४६ १३६)।
पउम १०५, ७६)। संकृ. संमाणिऊण, जो २३) संमइ स्त्री [संमति] १ अनुमति (सूग्र १, ८)
संमाणेऊण, संमाणित्ता (महा: कप्प)। संमुच्छिअ वि[संमूच्छित उत्पन्न (सुज १४. विसे २२०९)।२ पुं. वायुकाय, पवन ।
कवकृ. संमाणिजमाण (काल)। कृ. संमा- ९)३ वायुकाय का अधिष्ठाता देव (ठा ५, १--
णणिज (णाया १, १ टी-पत्र ४ उवा) संमुज्म अक [सं+ मुह.] मोह करना, पत्र २६२)
संमाण पुं[संमान] प्रादर, गौरव (उब हे मुग्ध होना संमुज्झइ (संबोध ५२) संमन्ज पं[संमाज] संमार्जन, साफ करना ४, ३१६; नाट-मालवि ६३)।
संमुत्त देखो संमुत्त (राज)। (विसे ६२५)।
संमाणण न [संमानन] ऊपर देखो (सुपा संमुस सक [ सं + मृश ] पूर्ण रूप से स्पर्श संमज्जग पुं[संमजक] वानप्रस्थ तापसों । २०८)
करना । वकृ. संमुसमाण (भग ८, ३की एक जाति (प्रौप)
पत्र ३६५) संमाणिय वि [संमानित] जिसका आदर संमजण न [संमार्जन] साफ करना, प्रमार्जन
संमुह वि [संमुख सामने आया हुआ (हे १, किया गया हो वह (कप्प; महा)। (अभि १५६)।
२६ ४, ३६५, ४१४; महा)। स्त्री. ही संमिद (शौ) वि[संमित] १ तुल्य, समान । संमजणी स्त्री [संमार्जनी] झाडू (दे ६,
(काप्र ७२३) । २ समान परिमाणवाला (अभि १८६)।
संमूढ वि [संमूढ] जड़, विमूढ (पात्र; सुपा समाजय वि [संमार्जित] साफ किया हुआ
संमिल प्रक[सं+ मिल] मिलना । संमि
लइ (भवि) (सुपा ५४ औप; भवि)।
संमेअ ' [संमेत] १ पर्वत-विशेष जो संमिलिअ वि [संमिलित] मिला हुआ अाजकल 'पारसनाथ पहाड़' के नाम से प्रसिद्ध संमट्ठ वि [संमृष्ट] १ प्रमाजित, सफा किया (भवि)
है (णाया १,८-पत्र १५४ कप्प; महा। हुप्रा (राय १००; प्रौप, पव १३३) । २ पूर्ण
सुपा २११, ५८४ विवे १८)। २ राम का संमिल्ल अक [सं+ मील] सकुचाना, भरा हुअा (जीवस ११६ पव १५८)।
संकोच करना । संमिल्लइ (हे ४,२३२ षड़, एक सुभट (पउम ५६, ३७) संमड्ड पुं[संमद] १ युद्ध, लड़ाई (हे २, धात्वा १५५)।
संमेल पुं [संमेल] परिजन अथवा मित्रों का ३६)। २ परस्पर संघर्ष (हे २, ३६; संमिस्स वि [संमिश्र] १ मिला हुआ, युक्त
जिमनवार, प्रीति-भोजन (पाचा २, १, कुमा)।(महा)। २ उखड़ी हुई छालवाला- (प्राचा
४, १)। संमड्डिअ वि [संमर्दित] संघट (हे २, ३६)।
२, १, ८, ६)
संमोह पुं [संमोह] १ मूढता, प्रज्ञान (अणुः संमद्द सक [सं + मृद्] मदना करना।
स ३५८) । २ मूर्छा (सिक्खा ४२)। ३ संकृ. संमद्दआ (दस ५, २,१६) संमील देखो संमिल्ल । संमीलइ (हे ४, २३२;
दुःख, कष्ट (से ३, १३)। ४ संनिपात रोग संमद देखो संमड्ड (उप १३६ टी; पान; दे षड् )
(उप १९०)। १, ६३; सुपा २२२ प्राकृ ८६)। संमीलिअ वि[संमीलित] संकुचित (से १२,
ममोह मिथ्यात्व का एक संमदा स्त्री [संमर्दा] प्रत्युपेक्षणा-विशेष, वस्त्र
भेद-रागी को देव, संगी--परिग्रही को के कोनों को मध्य भाग में रखकर अथवा संमीस देखो संमिस्स (सुर २, १११; सण) गुरु और हिंसा को धर्म मानना (संबोध ५२)। उपधि पर बैठकर जो प्रत्युपेक्षणा--निरी- संमुइ समुचि] भारतवर्ष में भविष्य में! २ वि. संमोह-संबन्धी (ठा ४, ४--पत्र क्षण को जाय वह (ोघ २६६: ओघभा होनेवाला एक कुलकर पुरुष (ठा १०-पत्र २७४)। स्री.हा, 'ही (ठा ४, ४ टी-पत्र १६२) ।
२७४; बृह ?). संमय वि [संमत] १ अनुमत । २ अभीष्ट संमुच्छ अक [सं+भूई 1 उत्पन्न संमोहण न [संमोहन] १ मोहित करना । (उव) ।
होना, 'एतासि ण लेसाणं अंतरेसु भएणत- २ मूच्छित करना (कुप्र २५०)। संमविय वि [संमापित नापा हुआ (भवि) रीमो छिएणलेसानो संमुच्छंति' (सुज ६) संमोहा स्त्री [संमोहा] छन्द-विशेष (पिंग) । संमा अक [सं + मा] समाना, अटना । संमुच्छण स्त्रीन [संमच्छन] स्त्री-पुरुष के संरंभ पुं[संरम्भ] १ हिंसा करने का संकल्प, समाइ (कुप्र २७७)।
संयोग के बिना ही युकादि की तरह होती संकप्पो सरंभो' (संबोध ४१, श्रा ७)।२ संमाग सक [ सं + मानय ] आदर करना, जीवों की उत्पत्ति (धर्मसं १०१७)। स्त्री. °णा आटोप (कुमा १.२१, ६, ६२)। ३ उद्यम गौरव करना। संमारणइ, संमाणेइ, संमारिणति, (धर्मसं १०३१)।
(कुमा ५, ७०)। ४ क्रोध, गुस्सा (पान)
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