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पाइअसद्दमहण्णवो
संवत्तय-संवाहि
संवत्तय वि संवर्तक] १ अपवर्तन-कर्ता । | (पएह २, १--पत्र १०१)। २ संकोचित | | "इय नामो संवायो तेसि पुत्तस्स कारणे गरुयो। २ पुं. बलदेव । ३ वडवानल (हे २, ३० (दे८, १२) । ३ आच्छादित (बृह ३)। त कीरेणं भणियं रायसमीवे समागच्छ ।' प्राप्र) | संवलण न [संवलन] मिलन (गउडः नाट
(सुपा ३६०)।संवत्तवत्त पुं[संवतॊद्वत] उलट-पुलट (स मालती ५७)
संवाय सक [सं+ वादय ] खबर देना, १७४; २५८)। संवलिअ वि [संवलित १ व्याप्त (गा ७५;
समाचार कहना । संवाएमि, संवाएहि (स
२६१, २६६)IV संबद्धण न [संवर्धन] १ वृद्धि, बढ़ाव । २ सुर ६, ७६; ८, ४३; रुक्मि ६०)। २ वि. वृद्धि करनेवाला (भवि; स ७२७) । युक्त, मिलित, मिश्रित (सुर ३, ७८; धर्मवि
संवायय पुं[दे] १ नकुल, न्यौला । २ श्येन
पक्षी (दे ८, ४८) संवय सक [सं+ वद्] १ बोलना, १३६); 'सरसा वि दुमा दावारणलेण डझंति
संवास सक [सं + वासय ] साथ में रहने कहना। २ प्रमाणित करना, सत्य साबित सुक्खसंवलिया' (वजा १४) ।।
देना । हेकृ. संवासेउं (पंचा १०, ४८ टी)। करना। संवयइ, संवएज्जा (कुप्र १८७७ संववहार युं [संव्यवहार]. व्यवहार (विसे
संवास पुं[संवास] १ सहवास. साथ में सूत्र १, १४, २०)। वकृ. संवयंत (धर्मसं । १८५३)।
निवास (उव २२३; ठा ४,२-पत्र १९७; ८८३) संवस प्रक[सं+ वस 1१ साथ में
मोघ ६७ हित १७ पंच: ६, १३)। २ संवय वि [संवृत] प्रावृत्त, प्राच्छादित रहना । २ रहना, वास करना। ३ सभोग
मैथुन के लिए स्त्री के साथ निवास (ठा ४, (कुप्र ३६)। करता। संवसइ (कस)। वकृ. संवसमाण
१-पत्र १९३) संवर सक [सं +] १ निरोध करना, (ठा ५, २-३१२ ३१४; गच्छ १, ३)।
संवासिय (अप) वि साश्वासित] जिसको रोकना।२ कर्म को रोकना । ३ बँध करना संकृ. संवसित्ता (गच्छ १, २)। हेक.
आश्वासन दिया गया हो वहः ति वयरिंग ४ ढकना। ५ गोपन करना। संवरइ, संवसित्तर (ठा २, १-पत्र ५६)। कृ.
धरणवइ संवासिउ' (भवि)। संवरसि, संवरेमि (भगः भकि सण हास्य संवसेयव्व (उप पृ १६)
संवाह सक [सं+ याहय ] १ वहन १३०, पव २३६ टी) संबरेहि (कुप्र ३११)। संवह सक [सं + वह ] १ वहन करना ।
करना। २ तय्यारी करना। अंग-मदनवकृ. संवरेमाण (भग)। संकृ. संवरेवि २ अक. सज्ज होना, तय्यार होना। वकृ.
चप्पी करना । संवाहइ (भवि)। कवकु. (महा)। संवहमाण (सुपा ४६४; पाया १; १३
संवाहिज्जत (सुपा २००; ३४६) संवर पुं[संवर] १ कर्म-निरोध, नूतन कर्म- पत्र १८०)। संकृ. संवहिऊण (सण)।
संवाह पुं[संवाह] १ दुर्ग-विशेष, जहाँ बन्ध का अटकाव (भगः परह १, १; नव संवहण न [संवहन] १, ढोना, वहन करना। कृषक-लोग धान्य प्रादि को रक्षा के लिए १)। २. भारतवर्ष में होनेवाले अठारहवें (राज)। २ वि. वहन करनेवाला (पाचा ले जाकर रखते हैं (ठा २, ४-पत्र ८६; जिनदेव (पव ४६ सम १५४) । ३ चाथ २, ४, २, ३, दस ७, २५) IV
पएह १, ४-पत्र ६८: औपः कस)। २ जिनदेव के पिता का नाम (सम १५०)। संवहणिय वि[सांवनिक देखो संवाहणिय
लग्न, विवाह (सुपा २५५)। ३ गिरिशिखरस्थ ४ एक जैन मुनि (पउम २७, २०)। ५
ग्राम। पशु-विशेष (कुप्र १०४)। ६ दैत्य-विशेष।
(उवा)। ७ मत्स्य की एक जाति (हे १, १७७)। संवहिअ वि [संमृढ] जो सज्ज हुमा हो
| संवाहण न [संवाहन] १ अंग-मदन, चप्पी
(पएह २,४-पत्र १३१ सुर ४, २४% संकरण न [संवरण] १ निरोध, अटकाव वह, तय्यार बना हुमा 'सामिम पूरिअपोमा
गा ४६४)। २ संबाधन, विनाश (गा (पंचा १, ४४), पासवदाराण संवरणं' अम्हे सब्वेवि संबहिमा' (सिरि ५६६;
४६४)। ३ पुं. एक राजा का नाम (उव)। (श्रु ७) । २ गोपन (गा १६६ सुपा ३०१)। सम्मत्त १५७)
४ वि. वहन करनेवाला (माचा २, ४, ३ संकोचन समेटन (गा २७०)। ४ । संवाइ वि [संवादिन] प्रमाणित करनेवाला, प्रत्याख्यान, परित्याग (मोघ ३७ विसे २६१२; सबूत देनेवाला (सुर १२, १७६)। संवाहणा स्त्री [संवाहना] ऊपर देखो (कप्पा श्रावक ३३३)। ५ श्रावक के बारह व्रतों संवाइय वि [संशदित] १ खबर दिया औप)।' का अंगीकार (सम्मत्त १५२)। ६ अनशन, हुमा, जनाया हुमा (स २९६)।२ प्रमाणित संबाहणिय वि [सांवाहनिक भार-वहन आहार परित्याग (उप पृ १७६)। ७ (स ३१५)
___ करने के काम में आता वाहन (उवा) विवाह; लग्नः शादी (पउम ४६, २३)। संवाद । [संवाद] १ पूर्वज्ञान को सत्य संवाह्य वि [संवाह.. चप्पी करनेवाला ८ वि. रोकनेवाला (पव १२३)
संवाय ) साबित करनेवाला ज्ञान, सबूत, (चारु ३६) संवरिअ विसं १ प्रासेवित, पाराधिता - प्रमाण (धर्मसं १४८ स ३२६; अ ७२८ संवाहिअ वि [संवादित] जिसका अंग
प्रमाण (धर्मसं १४८ स ३२६; अ ७२८ संचा 'एबामणं संवरा दार सम संवरियं होइ' टी)। २ विवाद, वाक्-कलह
मदन-चप्पी किया गया हो वह (कप्पा
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