Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 923
________________ संविकिण्ण-संवेल्लिअ पाइअसहमहण्णवो ८५३ सुर ४, २४३)। २ वहन किया हुमा संविभा [संविभाग] १ विभाग | कुप्र ४३५; किरात १७; स्वप्न १७; अभि (भवि) संविभाग करना, बाँट (गाया १,२- ८२: उत्तर १४१; महा सण) . संविकिा वि [संबिकीर्ण] अच्छी तरह पत्र ८६; उवा प्रौप)। २ आदर, सत्कार संवुद देखो संवुड (प्राकृ८; १२ प्राप्र)। ध्याप्त (पएण २-पत्र १००) (स ३३४)। संवुदि स्त्री [संमृति] संवरण (प्राकृ ८; संविक्स सक [संवि + ईक्ष ] सम भाव | संविभागि वि [संविभागिन् दूसरे को दे १२) से देखना, रागादि-रहित हो कर देखना । कर भोजन करनेवाला (उत्त ११, ६; दस संवूढ वि [संव्यूढ] १ तय्यार बना हुआ, वकृ. संचिक्खमाण (उत्त १४, ३३)। ६, २, २३) सजित; 'जह इह नगरनरिंदो सवबलेणंपि संविग्ग वि संविग्न संवेग-युक्त, भव-भीरु. संविभाव सक [ संवि + भावय ] पर्या एइ सबूढो' (सुरा ५८५; सुर ६, १५२)। मुक्ति का अभिलाषी, उत्तम साधु (उवः पंचा लोचन करना, चिन्तन करना। संकृ. संवि २ बह कर किनारे लगा हुग्रा, बह कर स्थित; ५, ४१; सुर ८, १६६; ओघभा ४६) भाविऊण (राज)। 'तए णं ते मार्गादयदारगा तेणं फलयखंडेणं संविक्षिण्ण वि [संविचार्ण] संविचरित, संचिराय प्रक [संवि + राज्] शोभना । उवु- (?)ज्झमाणा २ रयणदीवंतेण सवुसंविचिन्न प्रासेवित (णाया १, ५ टीवकृ. संविरावंत (पउम ७, १४६) (?)ढा यावि होत्या' (गाया १, ६-पत्र पत्र १०० णाया १, ५--पEEN संविल्ल देखो संवेल्ल। वकृ. संविल्लंत (वै १५७) संविज अक [सं+ विद् ] विद्यमान | ४२)। संकृ. संविल्लिऊग (कुप्र ३१५)। विसंवेद्या अनुभव-योग्य (विसे होना । संविज्जइ (सूम १, ३, २, १८)। संविल्लिअ वि[संवेल्लित] चालित (उवा)। ३००७)। संविट्ठ सक [सं+ वेष्टय ] १ वेटन करना, संविल्लिअ देखो संवेल्लिअ = संवेष्टित (कुमा) संवे [संवेग १ भय आदि के कारण लपेटना। २ पोषण करना । संकृ. संविट्ठमाग संविल्लिअ देखो संवेल्लिअ = (दे) (उवा संवेग से होती त्वरा-शीघ्रता (गउड)। (णाया , ३-पत्र ६१) जं१) २ भव-वैराग्य, संसार से उदासीनता। ३ मुक्ति संविढत्त वि[समर्जित] पैदा किया हुआ, संविह पुं[संविध] गोशाले का एक उपासक का अभिलाष, मुमुक्षा (द्र ६३; सम १२६; उपाजित (स ५) (भग ८, ६-पत्र ३६६) भगः उवः सुर ८, १६५, सम्मत्त १६६ संविणीय वि[संविनीत ] विनय-युक्त १६५, सुपा ५४१) (प्रोघभा १३४) संविहाण न [संविधान] १ रचना, बनावट संवेयण न [संवेदन] १ ज्ञान (धर्मसं ४४: (सुपा ५८६; धर्मवि १२७; माल १५१; संवित्त देखो संबीअ (सूअ १, ३, १, १७) कुप्र १४६) । २ वि. बोध-जनक । स्त्री. °णी १६३) । २ भेद, प्रकार (वै १०) संवित्त वि [संवृत्त १ संजात, बना हुआ (ठा ४, २-पत्र २१०)। संवीअ वि[संवीत] १ व्याप्त (सूभ १, ३, (सुर ६, ८९)। २ वि. अच्छा प्राचरण संवेयण वि [संवेजन] संवेग-जनक । स्त्री. वाला। ३ बिलकुल गोल (सिरि १०६३) १,१६)।२ परिहित, पहना हुआ: 'संवी णी (ठा ४, २-पत्र २१०)। संवित्ति स्त्रो सित्तिा संवेदन, ज्ञान (विसे यदिव्यवसणो (धर्मवि ६)IV संवेषण वि संवेगन] ऊपर देखो (ठा ४, १६२६, धर्मसं २६६)। संवुअ देखो संवुड (हे १, १३१; संक्षि ४ २-पत्र २१०)। संविद सक [सं+ विद्] जानना, प्रौप) संवेल्ल सक [सं+ वेल्ल ] चालित करना, 'जिच्चमाणो न संविदे (उत्त ७, २२)। संवुट्ट देखो संवुत्त (रंभा ४४)। कंपाना (से ७, २६)। संविद्ध वि [संविद्ध] १ संयुक्त (उबर संबुड वि [संवृत] १ संकट, सकड़ा, अवि संवेल्ल सक[सं+ वेष्ट ] लपेटना । संवेल्लइ १३३)। २ अभ्यस्त । ३ दृष्ट; 'संविद्धपहे' वृत (ठा ३, १-पत्र १२१)। २ संवर-युक्त, (हे ४, २२२; संक्षि ३६)। (पाचा १, ५, ३, ६) सावद्य प्रवृत्ति से रहित (सूत्र १, १, २, संवेल्ल सक [दे सकेलना, समेटना, संकुचित संविधा स्त्री [संविधा] संविधान, रचना, २६ पंचा १४, ६, भग)। ३ निरुद्ध, निरोध करना । संवेल्लेइ (भग १६, ६-पत्र बनावट (चारु १)। प्राप्त (सूत्र १, २, ३, १)। ४ प्रावृत । ५ संविधुण सक ७१२) । वकृ. सवेल्लंत; संवेल्लेमाण (उव संवि + धू] १ दूर करना। संगोपित (हे १, १७७)। ६ न. कषाय और भग १६, ६)। संकृ.क्वेलऊण (महा) । २ परित्याग करना । ३ अवगणना, तिरस्कार इन्द्रियों का नियन्त्रण (पएह २, ३–पत्र करना । संकृ. संविधुणिय, संविधुणित्ताणं १२३)। संवेल्लिअ वि [दे] संवृत, संकुचित; 'संवे(प्राचा १, ८, ६, ५; सूप १, १६. ४६ संवुड्ढ वि [संवृद्ध] बढ़ा हुआ (सूम २, ल्लिनं मउलिमं' (पान; दे ८, १२; भग १६, औप) १, २६; प्रौप) ६-पत्र ७१२, रायं ४५) संविभत्त वि [संविभक्त] बाँटा हुआ, संवुत्त वि [संवृत्त] संजात, बना हुमा संवेल्लिअ वि [संवेल्लित] चलित (से ७, 'देवगुरुसविभत्त भत्तं' (कुप्र १५३) ! 'पवइया ते संसारतकरा संवुत्ता' (वसुः । २६) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010