Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 927
________________ सगडब्भि-सच्चा पाइअसहमहण्णवो सगडब्भि देखो स-गडब्भि = स्वकृतभिद्M सग्ग देखो सग= स्वक (उत्त २०, २६ २६) "भामा स्त्री [भामा] श्रीकृष्ण की सगडाल पु[शकटाल] राजा नन्द का राज) । एक पत्नी (अंत १५) वाइ वि [[वादिन] सुप्रसिद्ध मंत्री और महर्षि स्थूलभद्र का पिता | सग्गइ देखो स-ग्गर = सद्गति ।। सत्य-वक्ता (पउम १, ३१) संध वि (कुप्र ४४३) सग्गह वि [दे] मुक्त, पुक्ति प्राप्त (दे. [सन्ध] सत्य प्रतिज्ञावाला, प्रतिज्ञा-निर्वाहक सगडिया स्त्री [शकटिका ] छोटी गाड़ी ४ टी)। (उप पू ३३३; सुपा २८३) 'सिरी स्त्री (भग; विपा १, १--पत्र ८ गाया १, सग्गह देखो स-गह = स-ग्रह ।। [ श्री] पाँचवें पारे की अन्तिम श्राविका १-पत्र ७४) । सग्गीय वि [स्वर्गीय] स्वर्ग-सम्बन्धी (विसे | (विचार ५३४) सेण पुं सेन] ऐरवत सगडी स्त्री [शकटी] गाड़ी (णाया १,७- १८००)। वर्ष में होनेवाला एक जिनदेव (सम १५४)। पत्र ११८) सग्गु देखो सिग्गु (उप १०३१ टी)। 'हामा देखो "भामा (पि १४) वाइ सगण देखो स-गण = स-गरण । सग्गोकस पुस्विौकस.] देव, देवता देखो वा. (माचा १, ८, ६, ५; १, सगन्न देखो सकन्न (कुप्र ४०३) (धर्मा ६)। सगय न [दे] श्रद्धा, विश्वास (दे ८, ३)। सग्ध सक [क्थ ] कहना । सग्घइ (षड् )।- सच्चइ सित्यकि] १ भागामी काल में सगर पुं[सगर] एक चक्रवर्ती राजा (सम सग्घ वि [श्लाघ्य] प्रशंसनीय (सूम १, ३, बारहवां तीर्थकर होनेवाला एक साध्वी-पुत्र ८२ उत्त १७, ३५)।.. २, १६, विसे ३५७८) 10 (ठा -पत्र ४५७ सम १५४; पव ४६)। सगल्ल देखो सयल = सकल (णाया १, सघिण देखो स-घिण = स-घृण ।। २ विषय-लम्पट एक विद्याधर (उव; उर १६-पत्र २१३; भग; पंच १, १३, सुर सचक्खु देखो स-चक्खु % स-चक्षुष् । ७, १ टी)। ३ श्रीकृष्ण का संबन्धी एक १, ११६; पव २१६; सिक्खा ३७)। सचक्खु व्यक्ति (रुक्मि ४६), सुय पुं [तुत] सगसग अक [ सगसगाय ] 'सग-सग' सचित्त देखो स-चित्त = स-चित्त । ग्यारह रुद्रों में अन्तिम रुद्र पुरुष (विचार मावाज करना। वकृ. सगसगेत (पउम | सचिव देखो सइव (सरण) । ४७३) ४२, ३१) सची देखो सई = शची (धर्मवि ६६; नाट- सञ्चंकार वि [सत्यकार] सत्य साबित करनेसगार देखो स-गार = सागार, साकार । शकु ६७), वर पुं [°वर] इन्द्र (सिरि वाला, लेन-देन की सच्चाई के लिए दिया सगार देखो स-गार = स-कार । ४२)। जाता बहाना: 'गहिरो संजमभारो सच्चंकारु सगास न [सकाश] पास, निकट, समीप सचेयण देखो स-चेयण = स-चेतन । व्व सिद्धीए' (धर्मवि १४, आप ६६; (भोप; सुपा ४५२, ४८८ महा)। सञ्च न [सत्य] १ यथार्थ भाषण, अमृषा रयण ३४) सगुण देखो स-गुण = स-गुण । कथन (ठा १०-पत्र ४८६; कुमाः परह सञ्चव सक [दृश.] देखना । सच्चवड (हे ४, सगुणि देखो सउणि (पएह १, ४-पत्र २, ५-पत्र १४८ स्वप्न २२.प्रासू १५०% १८१; षड्, सण)। कर्म. सच्चविज्जइ १७७)। २ शपथ, सोगन । ३ सत्य युग। | (कुप्र ६८)। सगुत्त वि [सगोत्र] समान गोत्रवाला, ४ सिद्धान्त (हे २, १३)। ५ वि. यथार्थ, सञ्चव सक [सत्यापय 1 सत्य साबित एकगोत्रीय (कप्प) सच्चा, वास्तविक; 'सच्चपरक्कमें' (उत्त | करना। सच्चवइ (सुपा २६२)। कर्म, सगेद्द न [दे] निकट, समीप (दे८, ६). १८, ४६ श्रा १२, ठा ४, १-पत्र १९६; 'अलिग्रंपि सचविजइ पहुत्तरणं तेरण रमरिज' कुमा)। ६ पुं. संयम, चारित्र (प्राचा; उत्त सगोत्त देखो सगुत्त (कुप्र २१७)। (सूक्त ८५)। ६, २) । ७ जिनागम, जैन सिद्धान्त (प्राचा)। सग्ग पुंन [स्वर्ग] देवों का प्रावास-स्थान सञ्चवण न [दर्शन] अवलोकन, निरीक्षण ८ अहोरात्र का दसवाँ मुहूर्त (सम ५१) । (णाया १, ५-पत्र १०५, भग; सुपा (कुमा; सुपा २२६) ६ एक वणिक् - पुत्र (उप ५१६)। 'उर २९३); 'वेरग्गं चेवमिह सग्ग' (श्रु५८)। न [पुर] भारत का एक प्राचीन नगर, सञ्चवय वि [दर्शक] द्रष्टा (संबोध २४) । 'तरु [तरु] कल्पवृक्ष (से ११, ११)। जो आजकल साचोर' नाम से मारवाड़ में सच्चविध वि [दृष्ट] देखा हुआ, विलोकित 'सामि पुं[स्वामिन्] इन्द्र (उप २६४ प्रसिद्ध है (ती ७ सिग्ध ७)- उरी स्त्री (गा ५३६, ८०६; सुर ४, २२५ पान; टी)। वह स्त्री [वधू ] देवांगना, देवी [पुरी] वही अर्थ (पडि) °णेमि, नेमि महा)। (उप ७२८ टी)। j [नेमि भगवान् अरिष्टनेमि के पास सच्चविअ वि [दे] अभिप्रेत, इष्ट (दे ८, सग्ग पुं[सगें] १ मुक्ति, मोक्ष, ब्रह्म (प्रौप)। दीक्षा ले मुक्ति पानेवाला एक मुनि जो राजा १७ भवि)।२ सृष्टि, रचना (रंभा)। समुद्रविजय का पुत्र था (अंत; अंत १४)। सच्चा स्त्री [सत्या] १ सत्य वचन (पएण सग्ग देखो स-ग्ग = सान । - प्पवाय न [प्रवाद] छठवा पूर्व-ग्रंथ (सम । ११-पत्र ३७६)। २ श्रीकृष्ण की एक १०८ Jain Education International For Personal & Private Use Only wwwinelibrary.org

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