Book Title: Paia Sadda Mahannavo
Author(s): Hargovinddas T Seth
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 926
________________ ८५६ सक्कणो (शौ) देखो सकुण । सकणोमि ( अभि ९२: पि १४ = ), सक्करणोदि (नाट - रत्ना १०२ ) । सकय देखो सक्कय = सत्कृत 14 सारिय [रित ] सम्मानित (मुख २, १३० महा ) [वि][संस्कृत] संस्कारयुक्त (सारि [संस्थारित] संस्कारयुक्त किया हुधा (धर्म) - सक्काल देखो सक्कार = संस्कार ( हे १, २५४) । सधिअ देखो मक्क = शाक्य 'अहं खु कलव्यकरत्यीकिदसंकेदो विश्र सक्किग्रसमराम्रो निमावि (बास ५६) - सक्किअ देखो सक्क = शक् । सचिन [] जो समर्थ हुआ हो वह (श्रा २८ कुप्र ३ ) 1 सक्किवि [स्वकीय] निज का, आत्मीय; 'सि (? स ) कियमुवहि च तहा पडिलेहंतो न बेमि सया' (कुलक ७; 2 ) 1 सक्किअ देखो सक्किअ = सत्कृत सक्किरिआ श्री [संस्क्रिया ] संस्कार, संस्कृति (प्राह ३३) । १९१२ भाषा म १, २००२, ४) परमेमोर (?) भासा समए ( ४ ) स्त्री. 'या; 'सक्कया पायया चैव भरिगईश्रो होति दा (धरण १३१) सकर न [शर्कर] खराब, टुकड़ा (उद) 1 सर देखोसकरा पुढची श्री ["पृथिवी] दूसरी नरक भूमि (पउम ११२) प्पभा श्री [प्रभा] नही थी (ठा पत्र ३८८ इक) सकरात्री [शर्करा] १ नोनी पीड (छाया १, १७ – पत्र २२६; सुपा ८४: सुर १, १४) । २ उपलखण्ड, पत्थर का टुकड़ा, कंकड़ ( सू २, ३, ३६: प्रर) । ३ बालु, रेती (महा) ज भ न [भ] १ गोत्रविशेष, जो गोतम गोत्र की एक शाखा है । २ पुंखी, उस गोत्र में उत्पन्न (ठा ७–पत्र ३०)/ भात्री [झा] दूसरी नरक- पृथिवी (उत्त १६, १५७) - सक्कार [सत्कार ] संमान, आदर पूजा (भगः स्वप्न ८ः भवि हे ४,२६० ) । सक्कार पुं [ संस्कार ] १ गुणान्तर का प्रधान । २ स्मृति का कारण भूत एक गुण । ३ वेग । ४ शास्त्राभ्यास से उत्पन्न होती व्युत्पत्ति । ५ गुरण-विशेष. स्थिति स्थापन ६ व्याकरण के अनुसार शब्द- सिद्धि का प्रकार ७ गर्भाधान आदि समय की जाती धार्मिक क्रिया । ८ पाक, पकाना (हे १, २८ २, ४ प्राकृ २१) सक्कार सक [ सत्कार ] सत्कार करना, सम्मान करना । सकारेइ, सकारिति, सकारेमो ( उवा कप्प भग ) । संक्र, सक्कारिता (भगः कप ) । कृ. सक्काराणज्ज (खाया १, १ टी पत्र ४ उवा) IV सकारण न सत्कारण ] सत्कार सम्मान ( दस १०, १७) । - पाइअसहमणवो सक्कारि वि [ सत्कारिन् ] सत्कार करनेवाला, सम्मानकर्ता (गड) | Jain Education International सक्कुण देखो सकुण । सक्कुादि (शौ ) ( प्राकृ ६४ ), सक्कुरणोमि ( स २४; मोह ७ ) 1सक्कुलि स्त्री [शष्कुलि] १ क- विवर कान का छिद्र (गाया १, ८ – पत्र १३३) । २ तिलपापड़ी, एक तरह का खाद्य पदार्थ ( परह २, ५ - पत्र १४८; दस ५, १, ७१; सः विसे २६१) कण्ण Î [कर्ण] एक अन्तद्वीप । १ उसमें रहनेवाली मनुष्यजाति (इक) Iv सक्ख देखो सक्क = शक् सक्ख न [सरुव] मैत्री, दोस्ती (उत १४, २७) 1 सक्ख न [साक्ष्य ] साक्षिपन, गवाही (सुपा २७६; संबोध १७) सक्खं [ साक्षात् ] प्रत्यक्ष, आँखों के सामने, प्रकट (हे १, २४;पि ११४) । सक्खय देखो सक्कय = संस्कृत (जं २ टीपत्र १०४) । सक्खर देखो स-क्खर साक्षर सक्खा देखो सक्खं (पंचा ६, ४०; सुर ५, २२११२, ३ प ११४) । For Personal & Private Use Only सकणो---सगड | सक्खि वि [ साक्षिन् ] माक्षी साखो, गवाह ( परह १, २ - पत्र २६ धर्मसं १२००; कपूः श्रा १४; स्वप्न १३१) IV सक्खि देखो सक्ख सख्य, 'कादंबरीसक्खियं भ्रम्हाणं पढमसोहिदं इच्छी प्रदि (प्रभि १८८ ) 1 सक्खिज्ज न [ साक्षित्व ] गवाही, साख ( श्रावक २६० ) । सक्खिण देखो सक्खि (हे २, १७४ः षड् ; सुर ६४४) सग [ स्वक] देखो स= स्व (भगः परण २१- पत्र ६२८ पउम ८२ ११७ उत्त २०, २६ २७ संबोध ५०; चेइय ५६१) 1सग देखो सन्त = सप्तन् ( रयण ७२; उर ५, ३३ २, २३) । वण्ण, वन्न स्त्रीन [ पञ्चाशत् ] सत्तावन, पचास और सात (कम्म ६, ६० १११म्म २, २०) वीस बीन [विंशति ] सताईस (श्रा २८ रयरण ७२; संबोध २६) सयरि स्त्री ['सप्तति] सतहत्तर (कम्म २, ६ ) सीइ स्त्री [शीति ] सतासी (कम्म २, १६) । सग देखो सत्तम (कम्म ४, ७९ ) 1 देश, सग पुं [ शक ] १ एक श्रनायें अफगानिस्तान के उत्तर का एक म्लेच्छ देश ( सूनि ६६ पउम ६८, ६४ इक) । २ उस देश का निवासी (काल) । ३ एक सुप्रसिद्ध राजा जिसका शक संवत् चलता है ( विचार ४६५ ५१३ ) ५ कूल न ["फूल] एक देश का किनारा (काल) 1 सग श्री [ख] ] माला 'सगर्भदाविख सत्थाइजोगमो तस्स ग्रह य दीसंति' (श्रावक १८१ ) 1 सगड न [शकट] १ गाड़ी (ठवा आचा २, ३, १६) । २ पुं. एक सार्थवाह पुत्र ( विपा १, १ –पत्र ४ १, पत्र ५५ ) । *महिआ श्री ["भद्रिका] नंतर विशेष (दि १६४० ध मुद्दन ["मुख ] पुरिमताल नगर का एक प्राचीन उद्यान (कल्प) "वूह ["ब्युर] कलाविशेष, गाड़ी के प्रकार से सैन्य की रचना ( श्रप) । देखो सअढ ३ www.jainelibrary.org

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